आसान नहीं है दो जून की रोटी ...

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 02-06-2025
It is not easy to earn two meals a day...
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आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली 
 
"आसान नहीं है दो जून की रोटी" एक कहावत है जिसका अर्थ है दो वक्त की रोटी पाना मुश्किल है.  यह कहावत गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों की आर्थिक कठिनाइयों को दर्शाती है. दो जून सिर्फ एक तारीख नहीं बल्कि एक मुकम्मल मुहावरा है. 'दो जून की रोटी' का अर्थ है दो वक्त की रोटी, जीवन यापन के लिए आवश्यक न्यूनतम भोजन या जीविका चलाने भर की आमदनी. 'जून' का मतलब है समय या वक्त.
 
हालांकि रोटी के लिए एक तारीख फिर भी है, अभागे पराठों या पूड़ियों के हिस्से किसी महीने की कोई तारीख नहीं आई. 'रोटी' का इस्तेमाल एक प्रतीक के रूप में भी किया जाता है. 'भोजन' को सिर्फ 'रोटी' कह देना, रोटी के महत्व को कई गुना बढ़ा देता है.
 
'इंसान की दो मूलभूत जरूरतें होती हैं, पहला भोजन और दूसरा संभोग. हालांकि संभोग की इच्छा एक आयु के बाद जाग्रत होती है और एक उम्र के बाद सिर्फ हरसतें रह जाती हैं लेकिन भोजन का संबंध हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक है. चाहे नवजात को मां का पहला दूध पिलाना या शहद चटाना हो या मृत्यु के बाद मुख में तुलसीदल डालना.'
 
'दो जून की रोटी' हर काल में प्रासंगिक रही. 1979 में शशि कपूर और नरगिस की एक फिल्म आई थी- 'दो जून की रोटी'. सिनेमा ने हमें बताया कि 'दो जून की रोटी' सिर्फ पेट भरने का साधन नहीं बल्कि सम्मान और अस्तित्व के संघर्ष का प्रतीक भी है. कई कवियों और लेखकों ने अपनी रचनाओं में 'दो जून की रोटी' का संदर्भ लेते हुए 'भूख' और 'रोटी' का जिक्र किया है.
 
'दो जून की रोटी' के सबसे बड़े झंडाबरदार मुंशी जी रहे. उन्होंने कई उपन्यासों और कहानियों में इसका इस्तेमाल किया लेकिन अपने पात्रों को कभी दो जून की रोटी नहीं खिलाई. 'गोदान' का होरी हमें दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करता दिखता है. 'कफन' का तो पूरा बिम्ब ही रोटी और भूख के इर्द-गिर्द बुना गया है. और 'पूस की रात' का हल्कू दो जून की रोटी के लिए तरसता ही रह गया. जयशंकर प्रसाद का 'छोटा जादूगर' रोटी के लिए ही हमें करतब करता दिखता है. रोटी सिर्फ दो जून की नहीं होती.
 
राजनीतिक रोटियां भी होती हैं, जिन्हें सेंकने के लिए एक विशेष किस्म की आग की आवश्यकता होती है. हाथ की बनी रोटी, रोटी मेकर से बनी रोटी, मेड की रोटी, मां के हाथ की रोटी, पिता के हाथ की दुर्लभ रोटी, नववधू के मेंहदी लगे हाथों की अतिरिक्त नर्म रोटी, गोल रोटी, बेगोल रोटी, गाय को खिलाने वाली रोटी, भीख में दी गई रोटी, ससुराल में मिली रोटी और मुफ्त की रोटी जिन्हें खाने से पहले तोड़ा जाता है. हर रोटी का स्वाद अलग होता है.