नागपुर (महाराष्ट्र)
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी आर गवई ने शुक्रवार को नागपुर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारतीय संविधान की महत्ता पर बल दिया और कहा कि यह संविधान सरकार की तीनों शाखाओं—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—की स्पष्ट सीमाएं तय करता है।
सीजेआई गवई ने कहा कि कानून बनाना विधायिका यानी संसद और राज्य विधानसभाओं की जिम्मेदारी है, जबकि कार्यपालिका को संविधान और कानून के दायरे में रहकर काम करना होता है।
उन्होंने न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) पर बोलते हुए कहा कि यह संविधान की रक्षा और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
“न्यायिक सक्रियता का बने रहना तय है और यह संविधान तथा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी भी है। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि भारतीय संविधान ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की अपनी-अपनी सीमाएं तय कर रखी हैं। कानून बनाना केवल विधायिका का कार्य है—चाहे वह संसद हो या राज्य की विधानसभाएं। कार्यपालिका से अपेक्षा की जाती है कि वह संविधान और कानून के अनुसार कार्य करे।”
हालांकि सीजेआई ने यह भी चेताया कि न्यायिक सक्रियता की आड़ में न्यायिक दुस्साहस (Judicial Adventurism) या न्यायिक आतंकवाद (Judicial Terrorism) की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
“अगर न्यायपालिका हर मुद्दे में कार्यपालिका और विधायिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगे, तो मैं हमेशा यह कहता हूं कि भले ही न्यायिक सक्रियता बनी रहे, लेकिन उसे न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद में बदलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि जब संसद या राज्य विधानसभा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कोई कानून बनाती है, और वह संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तब न्यायपालिका का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।
“जब कोई कानून संसद या विधानसभा की अधिकृत सीमा से बाहर जाकर बनाया जाता है और वह संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तब न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना चाहिए।”
सीजेआई गवई के इस बयान को लोकतंत्र में संवैधानिक संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है।