नई दिल्ली
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव में अपने कृषि जैसे कोर सेक्टरों को समझौते में नहीं देना चाहिए, क्योंकि ऐसी एक पक्षीय डील महिला राजनीतिक बदलावों के चलते टिकाऊ नहीं रह सकती।
रिपोर्ट में कहा गया है:"भारत को अपनी नीति बनाए रखनी चाहिए और कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। जल्दबाज़ी में दबाव में किया गया समझौता अपरिवर्तनीय परिणाम ला सकता है, खासकर जब वह अगले अमेरिकी राजनीतिक बदलाव को झेल नहीं पाए।"
GTRI ने यह भी बताया कि ट्रम्प की आक्रामक व्यापार धमकियाँ अब प्रभावहीन होती जा रही हैं। तीन महीने से अधिक समय तक की गई कोशिशों के बाद भी केवल दो देशों — ब्रिटेन और वियतनाम — ने ही अमेरिका की "एकपक्षीय व्यापार शर्तों" को स्वीकार किया है। अन्य देशों जैसे जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिकी दबाव को ठुकराया है।
रिपोर्ट इन समझौतों को MASALA डील्स का नाम देती है (Mutually Agreed Settlements Achieved through Leveraged Arm-twisting)। ये समझौते आमतौर पर दूसरे देशों को टैरिफ कम करने, अमेरिकी सामान की खरीद सुनिश्चित करने, और भविष्य में नई टैरिफ लगाने की अनुमति देकर उन्हें अमेरिका के पक्ष में झुकाने का उपकरण बनते हैं।
GTRI ने यह भी बताया कि ट्रम्प प्रशासन की इन बातों में असर न होने पर भीड़-भीड़ में दंडात्मक कदम उठाए जा रहे हैं। 7 जुलाई को जापान और कोरिया से आयातित वस्तुओं पर 25% सीमा शुल्क लगाया गया और 12 जुलाई को यूरोपीय संघ और मैक्सिको के वादों के बावजूद उन पर भी 30% तक का टैक्स लगाने की धमकी दी गई।
रिपोर्ट की सलाह:भारत को यह समझना चाहिए कि केवल वह ही दबाव झेल रहा है—अमेरिका वर्तमान में 20 से अधिक देशों के साथ वार्ता में है और 90 से अधिक से रियायतें मांग रहा है। हालांकि, अधिकांश देश इसे राजनीतिक मकसद से प्रेरित एकतरफा समझौता मानते हुए ठुकरा रहे हैं, क्योंकि ये व्यापार में स्थायीता नहीं लाते।