डॉ भीष्म साहनी: लेखनी में समाज का आईना, हिंदी साहित्य में बहुमूल्य योगदान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-08-2024
Dr. Bhishma Sahni: Mirror of society in his writings, valuable contribution to Hindi literature
Dr. Bhishma Sahni: Mirror of society in his writings, valuable contribution to Hindi literature

 

 
नई दिल्ली
 
डॉ. भीष्म साहनी कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार  के अलावा एक बेहतरीन शिक्षक भी थे. उन्होंने हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान दिया है। साहनी ने अपनी अद्भुत लेखनी से समाज के हर चेहरे को उजागर किया है. 
 
'समुद्र के घटते ज्वार की तरह, दंगों का ज्वार भी शांत हो गया था और अपने पीछे सभी प्रकार का कूड़ा-कचरा छोड़ गया था.’ ये उस 'तमस' में गढ़े गए भीष्म साहनी के शब्द हैं जो दंगों की विभीषिका की कहानी कहते हैं.
 
भीष्म साहनी का ये उपन्यास 1947 में बंटवारे का दंश झेल रहे लोगों की जिंदगी में झांकता है. इसमें लिखे एक-एक शब्द भीष्म साहनी की संवेदनशीलता को बयां करते थे. तमस नाम से ही एक टेली फिल्म बनी जिसे दूरदर्शन पर एक श्रृंखला के तौर पर प्रसारित किया गया.
 
1988 में प्रसारित सीरीज में दिग्गज कलाकार थे और प्रभावी तरीके से बंटवारे का दर्द पोट्रे किया गया था। भीष्म साहनी का लेखन बेमिसाल था.वो कलाकार, रचनाकार जिसका जन्म 8 अगस्त, 1915 को रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था.
 
प्रारंभिक शिक्षा रावलपिंडी में ही हुई. फिर उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी. उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एमए किया था.एमए की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने डॉ इन्द्रनाथ मदान के निर्देशन में 'कंसेप्ट ऑफ द हीरो इन द नॉवल' विषय पर शोध कार्य किया था.
 
साहनी को कॉलेज में नाटक, वाद-विवाद और हॉकी में रुचि थी. उनकी रचनाएं भारत के बहुलवादी लोकाचार और धर्मनिरपेक्ष नींव के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं.डॉ. साहनी को हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, संस्कृत, रूसी और उर्दू समेत कई भाषाओं का ज्ञान था.
 
साल 1958 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की. विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचार पत्रों में लिखने का काम शुरू किया था. इसके बाद वो इंडियन प्रोग्रेसिव थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) में शामिल हो गए.
 
बचपन में कहानियां लिखने वाले भीष्‍म साहनी ने कई उपन्यास और नाटक भी लिखे हैं. वो अपनी कहानी, नाटकों और उपन्यासों में सामाजिक-पारिवारिक मूल्यों को प्रमुखता से रखते थे. साथ ही उनके उपन्यासों में विभाजन की त्रासदी को भी बयान किया है.
 
बहुत कम लोग जानते हैं कि भीष्‍म साहनी हिंदी फिल्म जगत के प्रसिद्ध कलाकार बलराज साहनी के छोटे भाई थे. उन्होंने अपने भाई की बायोग्राफी ‘बलराज माई ब्रदर’ लिखी है. भीष्‍म साहनी के प्रमुख नाटकों की बात करें तो हानूश (1976), कबिरा खड़ा बजार में (1981), माधवी (1984), मुआवज़े (1993), रंग दे बसंती चोला (1996), आलमगीर (1999) काफी मशहूर है.
 
अपने पहला नाटक हानूश से वो काफी चर्चित हो चुके थे। उन्हें उपन्यास के लिए 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था.संत कबीर के जीवन को आधार बना उन्होंने‘कबीरा खड़ा बाजार में’(1981)लिखा। इसके बाद उनका तीसरा नाटक ‘माधवी’(1984)में आया.
 
इसका आधार महाभारत की कथा का एक अंश है. इसके बाद उनका चौथा नाटक ‘मुआवजे’(1993)में आया. पांचवा नाटक ‘रंग दे बसंती चोला’जलियांवाला बाग कांड पर आधारित था. भीष्‍म साहनी का आखिरी नाटक आलमगीर (1999) मुगल सम्राट औरंगजेब के जीवन पर आधारित था.
 
डॉ. भीष्म साहनी ने अपनी अद्भुत लेखनी के दम पर समाज के हर चेहरे को अपने नाटकों, कहानियों और उपन्यासों में उतारा. भीष्‍म साहनी ने 11 जुलाई 2003 को 87 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था.