संविधान हमारी सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेजः राष्ट्रपति

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 25-01-2022
राष्ट्रपति
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मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संविधान को राष्ट्र की सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज बताया है.

राष्ट्रपति ने कहा,“भारत विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के रूप में स्थापित हुआ और हम, भारत के लोगों ने एक ऐसा संविधान लागू किया जो हमारी सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज है. हमारे विविधतापूर्ण और सफल लोकतंत्र की सराहना पूरी दुनिया में की जाती है. हर साल गणतंत्र दिवस के दिन हम अपने गतिशील लोकतन्त्र तथा राष्ट्रीय एकता की भावना का उत्सव मनाते हैं. महामारी के कारण इस वर्ष के उत्सव में धूम-धाम भले ही कुछ कम हो परंतु हमारी भावना हमेशा की तरह सशक्त है.”

राष्ट्रपति ने गणतन्त्र दिवस को उन महानायकों को याद करने का अवसर भी बताया जिन्होंने स्वराज के सपने को साकार करने के लिए अतुलनीय साहस का परिचय दिया तथा उसके लिए देशवासियों में संघर्ष करने का उत्साह जगाया. उन्होंने कहा, “23 जनवरी को हम सभी देशवासियों ने ‘जय-हिन्द’ का उद्घोष करने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती पर उनका पुण्य स्मरण किया है. स्वाधीनता के लिए उनकी ललक और भारत को गौरवशाली बनाने की उनकी महत्वाकांक्षा हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है.” 

संविधान के बारे में राष्ट्रपति ने कहा, “संविधान की संक्षिप्त प्रस्तावना में लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मार्गदर्शक सिद्धांत, सार-गर्भित रूप से उल्लिखित हैं. इन आदर्शों से उस ठोस आधारशिला का निर्माण हुआ है जिस पर हमारा भव्य गणतंत्र मजबूती से खड़ा है. इन्हीं जीवन-मूल्यों में हमारी सामूहिक विरासत भी परिलक्षित होती है.”

राष्ट्रपति ने भारतीय जनमानस को उनके कर्तव्यों की याद दिलाते हुए कहा, “मूल अधिकारों तथा नागरिकों के मूल कर्तव्यों के रूप में हमारे संविधान द्वारा बुनियादी महत्व प्रदान किया गया है. अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्यों का नागरिकों द्वारा पालन करने से मूल अधिकारों के लिए समुचित वातावरण बनता है. आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करने के मूल कर्तव्य को निभाते हुए हमारे करोड़ों देशवासियों ने स्वच्छता अभियान से लेकर कोविड टीकाकरण अभियान को जन-आंदोलन का रूप दिया है. ऐसे अभियानों की सफलता का बहुत बड़ा श्रेय हमारे कर्तव्य-परायण नागरिकों को जाता है. मुझे विश्वास है कि हमारे देशवासी इसी कर्तव्य-निष्ठा के साथ राष्ट्र हित के अभियानों को अपनी सक्रिय भागीदारी से मजबूत बनाते रहेंगे.”

कोरोना वैश्विक महामारी के संदर्भ में देशवासियों को एक दूसरे के साथ की जरूरत के बारे में बताते हुए राष्ट्रपति ने कहा, “मानव-समुदाय को एक-दूसरे की सहायता की इतनी जरूरत कभी नहीं पड़ी थी जितनी कि आज है. अब दो साल से भी अधिक समय बीत गया है लेकिन मानवता का कोरोना-वायरस के विरुद्ध संघर्ष अभी भी जारी है. इस महामारी में हजारों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है. पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर आघात हुआ है. विश्व समुदाय को अभूतपूर्व विपदा का सामना करना पड़ा है. नित नए रूपों में यह वायरस नए संकट प्रस्तुत करता रहा है. यह स्थिति, मानव जाति के लिए एक असाधारण चुनौती बनी हुई है.”

इस महामारी से देश के संघर्ष का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, “महामारी का सामना करना भारत में अपेक्षाकृत अधिक कठिन होना ही था. हमारे देश में जनसंख्या का घनत्व बहुत ज्यादा है, और विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते हमारे पास इस अदृश्य शत्रु से लड़ने के लिए उपयुक्त स्तर पर बुनियादी ढांचा तथा आवश्यक संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे. लेकिन ऐसे कठिन समय में ही किसी राष्ट्र की संघर्ष करने की क्षमता निखरती है.”

कोरोना के खिलाफ राष्ट्र और सरकार के संघर्ष को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, “हमने कोरोना-वायरस के खिलाफ असाधारण दृढ़-संकल्प और कार्य-क्षमता का प्रदर्शन किया है. पहले वर्ष के दौरान ही, हमने स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को विस्तृत तथा मजबूत बनाया और दूसरे देशों की मदद के लिए भी आगे बढ़े. दूसरे वर्ष तक, हमने स्वदेशी टीके विकसित कर लिए और विश्व इतिहास में सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया. यह अभियान तेज गति से आगे बढ़ रहा है. हमने अनेक देशों को वैक्सीन तथा चिकित्सा संबंधी अन्य सुविधाएं प्रदान कराई हैं. भारत के इस योगदान की वैश्विक संगठनों ने सराहना की है.”  

राष्ट्रपति ने कोविड पीड़ित परिवारों के प्रति सद्भावना जताते हुए कहा, “अनगिनत परिवार, भयानक विपदा के दौर से गुजरे हैं. हमारी सामूहिक पीड़ा को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. लेकिन एकमात्र सांत्वना इस बात की है कि बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकी है. महामारी का प्रभाव अभी भी व्यापक स्तर पर बना हुआ है, अतः हमें सतर्क रहना चाहिए और अपने बचाव में तनिक भी ढील नहीं देनी चाहिए. हमने अब तक जो सावधानियां बरती हैं, उन्हें जारी रखना है. मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना कोविड-अनुरूप व्यवहार के अनिवार्य अंग रहे हैं. कोविड महामारी के खिलाफ लड़ाई में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा बताई गई सावधानियों का पालन करना आज हर देशवासी का राष्ट्र-धर्म बन गया है. यह राष्ट्र-धर्म हमें तब तक निभाना ही है, जब तक यह संकट दूर नहीं हो जाता.” 

राष्ट्रपति ने देशवासियों को संबोधन में इस बात उल्लेख किया कि कैसे हम सभी देशवासी एक परिवार की तरह आपस में जुड़े हुए हैं. उन्होंने कहा, “सोशल डिस्टेंसिंग के कठिन दौर में हम सबने एक-दूसरे के साथ निकटता का अनुभव किया है. हमने महसूस किया है कि हम एक-दूसरे पर कितना निर्भर करते हैं. कठिन परिस्थितियों में लंबे समय तक काम करके, यहां तक कि मरीजों की देखभाल के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर भी डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स ने मानवता की सेवा की है. बहुत से लोगों ने देश में गतिविधियों को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए यह सुनिश्चित किया है कि अनिवार्य सुविधाएं उपलब्ध रहें तथा सप्लाई-चेन में रुकावट न पैदा हो. केंद्र और राज्य स्तर पर जन-सेवकों, नीति-निर्माताओं, प्रशासकों और अन्य लोगों ने समयानुसार कदम उठाए हैं.”

कोविड बाद के दौर में अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के बारे में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, “हमारी अर्थ-व्यवस्था ने फिर से गति पकड़ ली है. प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत की दृढ़ता का यह प्रमाण है कि पिछले साल आर्थिक विकास में आई कमी के बाद इस वित्त वर्ष में अर्थ-व्यवस्था के प्रभावशाली दर से बढ़ने का अनुमान है. यह पिछले वर्ष शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता को भी दर्शाता है. सभी आर्थिक क्षेत्रों में सुधार लाने और आवश्यकता-अनुसार सहायता प्रदान करने हेतु सरकार निरंतर सक्रिय रही है. इस प्रभावशाली आर्थिक प्रदर्शन के पीछे कृषि और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्रों में हो रहे बदलावों का प्रमुख योगदान है.”

उन्होंने कहा कि लोगों को रोजगार देने तथा अर्थ-व्यवस्था को गति प्रदान करने में छोटे और मझोले उद्यमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. राष्ट्रपति ने इनोवेटिव युवा उद्यमियों के स्टार्ट-अप और उनकी कामयाबी का जिक्र भी अपने भाषण में किया.

उन्होंने कहा, “विश्व में सबसे ऊपर की 50 ‘इनोवेटिव इकॉनोमीज़’ में भारत अपना स्थान बना चुका है. यह उपलब्धि और भी संतोषजनक है कि हम व्यापक समावेश पर जोर देने के साथ-साथ योग्यता को बढ़ावा देने में सक्षम हैं.”

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में ओलिंपिंक के खिलाड़ियों की सराहना करते हुए कहा, “पिछले वर्ष ओलंपिक खेलों में हमारे खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन से लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई थी. उन युवा विजेताओं का आत्मविश्वास आज लाखों देशवासियों को प्रेरित कर रहा है.”

उन्होंने रक्षा क्षेत्र की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा, “भारतीय नौसेना और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड की समर्पित टीमों ने स्वदेशी व अति-आधुनिक विमानवाहक पोत ‘आई.ए.सी.-विक्रांत’ का निर्माण किया है जिसे हमारी नौसेना में शामिल किया जाना है. ऐसी आधुनिक सैन्य क्षमताओं के बल पर, अब भारत की गणना विश्व के प्रमुख नौसेना-शक्ति-सम्पन्न देशों में की जाती है. यह रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होने का एक प्रभावशाली उदाहरण है.”

राष्ट्रपति ने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा, “भारत के जो लोग अपने परिश्रम और प्रतिभा से जीवन की दौड़ में आगे निकल सके हैं उनसे मेरा अनुरोध है कि अपनी जड़ों को, अपने गांव-कस्बे-शहर को और अपनी माटी को हमेशा याद रखिए. साथ ही, आप सब अपने जन्म-स्थान और देश की जो भी सेवा कर सकते हैं, अवश्य कीजिए. भारत के सभी सफल व्यक्ति यदि अपने-अपने जन्म-स्थान के विकास के लिए निष्ठापूर्वक कार्य करें तो स्थानीय-विकास के आधार पर पूरा देश विकसित हो जाएगा.”  

तीनों सेनाओं को सर्वोच्च सेनापति राष्ट्रपति ने सैनिकों की वीरता का उल्लेख करते हुए अपने भाषण में जनरल रावत की शहादत का जिक्र भी किया. उन्होंने कहा, “आज, हमारे सैनिक और सुरक्षाकर्मी देशाभिमान की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. हिमालय की असहनीय ठंड में और रेगिस्तान की भीषण गर्मी में अपने परिवार से दूर वे मातृभूमि की रक्षा में तत्पर रहते हैं. हमारे सशस्त्र बल तथा पुलिसकर्मी देश की सीमाओं की रक्षा करने तथा आंतरिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए रात-दिन चौकसी रखते हैं ताकि अन्य सभी देशवासी चैन की नींद सो सकें. जब कभी किसी वीर सैनिक का निधन होता है तो सारा देश शोक-संतप्त हो जाता है. पिछले महीने एक दुर्घटना में देश के सबसे बहादुर कमांडरों में से एक - जनरल बिपिन रावत - उनकी धर्मपत्नी तथा अनेक वीर योद्धाओं को हमने खो दिया. इस हादसे से सभी देशवासियों को गहरा दुख पहुंचा.”

राष्ट्रपति ने अपने भाषण में खासतौर पर महिला सशक्तिकरण का जिक्र किया. उन्होंने कहा, “सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर के रूप में, मुझे यह उल्लेख करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि यह वर्ष सशस्त्र बलों में महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण रहा है. हमारी बेटियों ने परंपरागत सीमाओं को पार किया है, और अब नए क्षेत्रों में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन की सुविधा आरंभ हो गई है. साथ ही, सैनिक स्कूलों तथा सुप्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस एकेडमी से महिलाओं के आने का मार्ग प्रशस्त होने से सेनाओं की टैलेंट-पाइपलाइन तो समृद्ध होगी ही, हमारे सशस्त्र बलों को बेहतर जेन्डर बैलेंस का लाभ भी मिलेगा.”