बदायूंः जामा मस्जिद शम्सी है पुराना शिवालय, कोर्ट में याचिका, पूजा के अधिकार की मांग

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 03-09-2022
बदायूंः जामा मस्जिद शम्सी है पुराना शिवालय, कोर्ट में याचिका, पूजा के अधिकार की मांग
बदायूंः जामा मस्जिद शम्सी है पुराना शिवालय, कोर्ट में याचिका, पूजा के अधिकार की मांग

 

बदायूं (यूपी). यहां की एक अदालत में एक याचिका दायर कर दावा किया गया है कि बदायूं शहर की जामा मस्जिद शम्सी वस्तुतः भगवान शिव का मंदिर है और सनातन धर्म के अनुयायियों को इस स्थल पर पूजा करने की अनुमति मांगी गई है.

इस मामले में एक अलग आवेदन दायर कर अदालत से साइट के सर्वेक्षण के लिए एक आयोग नियुक्त करने का आग्रह किया गया है. सिविल जज (सीनियर डिवीजन) विजय गुप्ता ने शुक्रवार को मामले को उठाया और शम्सी जामा मस्जिद का प्रबंधन करने वाली इंतेजामिया कमेटी को 15 सितंबर को अपना पक्ष पेश करने का निर्देश दिया, जब अदालत मामले की अगली सुनवाई करेगी.

याचिकाकर्ताओं के वकील वेद प्रकाश साहू ने कहा कि याचिका में कहा गया है कि इमारत जामा मस्जिद की नहीं है, बल्कि नीलकंठ महादेव महाराज का एक प्राचीन ईशान मंदिर है. याचिकाकर्ता अखिल भारत हिंदू महासभा के राज्य संयोजक मुकेश पटेल, अधिवक्ता अरविंद परमार, ज्ञान प्रकाश, अनुराग शर्मा और उमेश चंद्र शर्मा हैं, जिन्होंने दावा किया है कि संरचना में राजा महिपाल के किले में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर है.

याचिकाकर्ताओं में से एक, अरविंद परमार ने शनिवार को कहा कि पहले पक्ष देवता नीलकंठ महादेव महाराज हैं. परमार ने कहा कि उन्होंने निवेदन किया है कि सनातन धर्म के अनुयायियों को नीलकंठ महादेव के मंदिर में पूजा करने की अनुमति दी जानी चाहिए. साथ ही पुलिस और प्रशासन को निर्देश दिया जाए कि पूजा के दौरान कोई आपत्ति, विवाद या हस्तक्षेप न हो.

उन्होंने कहा कि इस मामले में एक अलग अर्जी दाखिल कर अदालत से मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए एक आयोग गठित करने का अनुरोध किया गया है. याचिका में उन किताबों का जिक्र किया गया है, जो दावा करती हैं कि मस्जिद नीलकंठ महादेव मंदिर है. परमार ने दावा किया कि सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित डायरी में भी यह जानकारी है और इसे याचिकाकर्ता ने भी पेश किया था.

मस्जिद सोथा मोहल्ला नामक एक ऊंचे क्षेत्र पर बनी है और इसे बदायूं शहर में सबसे ऊंची संरचना माना जाता है. इसे देश की तीसरी सबसे पुरानी और सातवीं सबसे बड़ी मस्जिद भी माना जाता है, जिसकी क्षमता 23,500 है. थुरा और वाराणसी सहित कई समान सूट हैं, जिसमें दावा किया गया है कि वहां की मस्जिदें प्राचीन हिंदू मंदिरों के स्थल थे.