बेंगलुरु में मस्जिद से गरीबों की भूख मिटाने की कोशिश

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 06-07-2021
हैदराबाद
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मो. अकरम/ हैदराबाद

इस्लाम में भूखे को खाना खिलाना इबादत माना जाता है. इसमें किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं. अगर कोई मुस्लिम कमेटी है तो वह सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही खाना खिलाएगा, ऐसा नहीं है. मानवता के आधार पर जाति, धर्म, क्षेत्र से ऊपर उठ कर ऐसे सामाजिक कार्यों पर जोर दिए गए हैं.
 
इस्लामी ग्रंथों में कहा गया कि खाने से पहले पता करें कि पड़ोस में कोई भूखा तो नहीं सो रहा है.इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कर्नाटक के शहर बेंगलुरु में सुन्नी दावत-ए-इस्लामी के जरिये मस्जिद के नजदीक प्रतिदिन 500 से अधिक लोगों को लंगर में खाना खिलाया जाता  ताकि कोई भूखा न सोए.
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सुन्नी दावत-ए-इस्लामी कर्नाटक के अध्यक्ष मौलाना अजमत उल्लाह, गरीब नवाज मस्जिद के इमाम और खतीब हैं. उन्होंने कहा कि यह लोगों की सेवा है. हमारा मजहब बताता है कि मानवता की सेवा करना इस्लाम की प्राथमिकता है. इसलिए यह लंगर सभी के लिए है. चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो. उसे लंगर में खाना दिया जाता है.

मौलाना महमूद बताते हैं कि प्रतिदिन फजर यानी सुबह की नमाज के बाद खाना बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है. दिन के बारह बजे तक काम पूरा करके खाना बांटने की तैयारी की जाती है. जोहर की नमाज के बाद यानी करीब दो बचे खाने का पैकेट वितरण किया जाता है. हर रोज खाने का मेन्यू बदल दिया जाता है. इस काम में समाज के सभी लोगों का साथ और समर्थन मिल रहा है.

मस्जिद गरीब नवाज के आसपास रहने वाले गरीबों की दयनीय स्थिति को देखते हुए संस्था ने लंगर बांटने का फैसला किया है.मस्जिद गरीब नवाज कमेटी पिछले साल भी कोरोना महामारी के दौरान प्रतिदिन 1,000 से ज्यादा जरूरतमंदों के भोजन की व्यवस्था कर चुकी है. इस साल भी लाॅकडाउन, बढ़ती बेरोजगारी और लोगों में भुखमरी को देखते हुए मस्जिद प्रबंधनों ने लंगर की व्यवस्था है, जहां बड़ी संख्या में लोग प्रतिदिन पेट की आग बुझाने आते हैं. इस कार्य को कमेटी के लोग इबादत समझते हैं.