लाल चौक पर आतंकियों ने वीरेंद्र पासवान को नहीं, परिवार के सपने को मार डाला

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 16-10-2021
आतंकियों ने वीरेंद्र पासवान को नहीं, परिवार के सपने को मार डाला
आतंकियों ने वीरेंद्र पासवान को नहीं, परिवार के सपने को मार डाला

 

राजीव रंजन / भागलपुर ( बिहार )

परिवार से सैंकड़ों किलोमीटर दूर मेहनत-मजदूरी करने वालों का सपना होता है परिजनों के साथ पुश्तैनी मकान में त्योहार मनाने का. ऐसा ही सपना कश्मीर के लाल चौक पर गोलगप्पे बेचने वाले वीरेंद्र पासवान भी पिछले एक साल से देख रहा था.

इससे पहले कि घर पर दशहरा का त्योहार मनाने का वीरेंद्र पासवान का सपना पूरा होता. आतंकवादियों ने उसे मौत के घाट उतार दिया. इसकी मौत ने जैसे पूरे परिवार को ही ‘अधमरा’ कर दिया है.पत्नी के इलाज में खर्चे हुए दो लाख रुपये के ऋण और छह बच्चों की परवरिश का बड़ा बोझ नहीं होता तो वीरेंद्र पासवान को घर से 2117 किलोमीटर दूर श्रीनगर के लाल चाक पर जान नहीं गंवानी पड़ती. उसे आतंकवादियों ने लाल चौक पर गोलगप्पे बेचने के दौरान ही मौत के घाट उतार दिया था. 

बिहार के भागलपुर के वादे हसनपुर के वीरेंद्र पासवान श्रीनगर जाने से दो वर्ष पहले कोलकाता में लेथ मशीन पर काम कर परिवार का भरण-पोषण किया करता था. मगर महंगाई और बढ़ती जरुरतों ने उसे कोलकाता से कश्मीर पलायन को मजबूर कर दिया.

आज स्थिति यह है कि पेट के जख्मों से छुटकारा दिलाने वाले पति वीरेंद्र पासवान अब पुतुल देवी को अपनी यादों में खोया छोड़ गए हैं. ऐस में पुतुल देवी बार बार यह सोचकर बेचैन हो जाती हैं, ‘‘ अब का खईबु ?’’

बता दें कि भागलपुर का वादे हसनपुर जगदीशपुर अंचल मुख्यालय से लगभग डेढ़ दो किलोमीटर दूर स्थित है. इसके रास्ते में दोनों ओर ‘कतरनी चावल’ के खेत लहलहा रहे हैं. इसका  अहसास इस रास्ते से गुजरते हुए ‘कतरनी चावल’ की सुगंध शिद्दत से करता है.

 गांव प्रवेश करते ही वहां साइकिल चला रहे बच्चों से जब पूछा कि वीरेंद्र पासवान का घर कौन सा है, तो वे तुरंत उस ओर चल पड़े. घर के करीब पहुंचने पर वहां कपड़े धोती दो महिलाएं घूरने लगीं. घर में प्रवेश करने पर वहां खड़ी वीरेंद्र पासवान की बेटी के चेतरे पर सवाला लिया निशान उभर आए.

परिचय देने पर वीरेंद्र की बड़ी बेटी कंचन, जिसकी शादी हो चुकी है, बताती है कि उसके पिता वीरेंद्र पासवान तीन भाई हैं. बड़ा भाई निरंजन पासवान, दूसरे उसके पिता वीरेंद्र पासवान थे और तीसरे भाई वीलेंद्र पासवान हैं. उसके चाचा वीलेंद्र पासवान और पिता वीरेंद्र पासवान कश्मीर के लाल चौक पर गोलगप्पे बेचते थे.

वीरेंद्र पासवान के छह बच्चे हैं. लड़कियां कंचन, नीतू, नेहा और मोनिका और लड़के विक्रम और सुुमन.विक्रम 19साल का है. इंटर में पढ़ता है. नीतू बीए पार्ट वन और नेहा पार्टू टू, जबकि मोनिका छठी कक्षा में पढ़ती है. बिस्तर पर लेटी वीरेंद्र पासवान की पत्नी पुतुल पासवान बताती हैं कि उनके पति कहा करते थे कि बच्चों को पढ़ाएंगे तो उन्हें इसकी तरह मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी. घर से दूर रहकर काम करने की यह भी एक बड़ी वजह थी.

bhagal

पुतुल देवी बताती हैं, ‘‘ उनके पति पहली बार कश्मीर गए थे. वहां पहले से उसका छोटा भाई वीलेंद्र गोलगप्पे बेचने का काम कर रहा था. कोलकाता से लौटने के बाद कश्मीर के श्रीनगर के लाल चौक पर उसने भी गोलगप्पे का खोमचा लगाना शुरू कर दिया.

पास बैठी पुतुल देवी की बात सुन रही वीलेंद्र पासवान की पत्नी रिंकू देवी बताती हैं कि आज उनके पति कश्मीर से लौट रहे हैं. भाई की आतंकवादियों द्वारा मौत के घाट उतारने के बाद से वह बुरी तरह डर गए हैं. रिंकू देवी बताती है कि यहां कोई काम धंधा नहीं होने के कारण गांव के सत्तर अस्सी लोग कश्मीर में मेहनत-मजदूरी करते हैं. मगर इस घटना के बाद आतंकवादियों का इतना खौफ हो गया है कि अब वहां से सारे गांव लौट रहे हैं.

पुतुल देवी बताती है कि पति दशहरा में आने वाले थे. इससे पहले ही घटना घट गई. पुतुल देवी बताती हैं कि कोरोना के कारण पिछले साल त्योहार पर घर नहीं आए थे. जब कभी फोन पर बात करते थे तो यही कहते कि बच्चों के भरण-पोषण के लिए रुपये चाहिए. काम नहीं करेंगे तो फिर गांव आकर खाएंगे क्या ?

वीरेंद्र पासवान की बेटी बताती है कि उसके पापा वहां से हर माह दस-बारह हजार रुपये भेजते थे जिससे घर चलता था. घटना के बाद जिला प्रशासन के अधिकारी आए थे. उन्होंने सरकार की ओर से दो लाख रुपये देने का आश्वासन दिया है, लेकिन इतने थोड़े पैसे में कब तक घर चलेगा.

बातचीत सुन रही एक बुजुर्ग महिला बताती है कि वीरेंद्र की तीन बेटियां शादी योग्य हैं. पंचायत चुनाव में निर्वाचित हुए मुखिया अनिरुद महतो ने सरकारी योजना अंतर्गत रोजगार दिलाने का आश्वासन दिया है.आधा कट्ठा में बने तीन भाइयों के मकान में रहे रही पुतुल देवी ने कहा कि हमारे सामने सबसे बड़ा प्रश्न बच्चों के भविष्य का है. इनकी सारी जिम्मेदारियां कैसे पूरी होंगी. यही सोचकर परेशान हैं. वीरेंद्र पासवान की आतंकवादियों के हाथों हत्या के बाद अब हमारा भरोसा टूट गया है.