जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
हिंदुस्तान के 'मिसाइल मैन' कहे जाने वाले देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति दिवंगत एपीजे अब्दुल कलाम के दिल में बंगाल के लिए खास जगह थीं. एपीजे के पसंदीदा शहरों में एक कलकत्ता भी था, जहां विज्ञान से संबंधित जलसों में शरीक होकर यह भारतीय 'मिसाइल मैन' खुद को काफी गौरवान्वित महसूस करता था.
सबसे पहले बच्चों से हाथ मिलाते
एपीजे अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व सबसे निराला था. वे बंगाल के किसी हिस्से या कलकत्ता में जहां भी जाते, सबसे पहले कार्यक्रम में आए छोटे बच्चों से मिलते. उनसे हाथ मिलाते, फिर पूछते - बड़े होकर क्या बनोगे? कहते हैं कि एपीजे के सुरक्षा दस्ते में लगे अधिकारियों और जवानों को थोड़ी परेशानी जरूर होती, लेकिन एपीजे को वे लोग टोकते नहीं थे. बच्चों से भरपूर बतियाने और तसल्ली होने के बाद ही वे एपीजे को लेकर आगे बढ़ते.
लोरेटो डे स्कूल के बच्चों से एपीजे ने खूब बातचीत की थीं यह वर्ष 2003 की बात है. तब एपीजे हिंदुस्तान के राष्ट्रपति थे. कलकत्ता में लोरेटो डे स्कूल का जलसा था. कहते हैं कि समारोह-स्थल के दरवाजे पर ही उनकी अगवानी के लिए स्कूल के अधिकारियों के साथ नन्हे-मुन्ने भी खड़े थे. एपीजे की नजर सबसे पहले हाथों में गुलदस्ता लेकर खड़े बच्चों पर गई. फिर बच्चों से वे काफी देर तक घुल-मिल कर बातें करते रहे. आखिर में कार्यक्रम कुछ देर से शुरू हुआ.
एपीजे हमेशा आईआईटी, खड़गपुर की खोजखबर लेते थे
एपीजे अब्दुल कलाम के दिल में आईआईटी, खड़गपुर के लिए खास जगह थीं. वे देश में जहां भी रहते, आईआईटी, खड़गपुर का हाल-हवाल जरूर लेते. वर्ष 2007 का वाकया है. राष्ट्रपति की हैसियत से यह एपीजे का आखिरी साल था. वे आईटीआई, खड़गपुर में 'नैनो टेक्नोलॉजी' के छात्र-छात्राओं को संबोधित करने बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर थे. कहते हैं कि इस दौरे में एपीजे के ज्ञानपूर्ण व्याख्यान को सुनकर आईआईटी के प्राध्यापक तो गदगद थे ही, नैनो टेक्नोलॉजी के छात्र एपीजे के उस व्याख्यान को आज भी नहीं भूलते !
मनोविकास केंद्र, कलकत्ता के बच्चों को भी किया था चकित !
एपीजे अब्दुल कलाम वर्ष 2007 में ही मनोविकास केंद्र, कलकत्ता में भी आए थे. इस केंद्र में 'स्पेशल चिल्ड्रेन' के लिए शिक्षा का आधुनिक इंतजाम है. कहते हैं कि एपीजे ने यहां के बच्चों से तो उस दिन हाथ मिलाया ही, शिक्षा और यहां के बच्चों की परवरिश की पूरी जानकारी हासिल कर अधिकारियों की पीठ थपथपाई थीं.
दक्षिणेश्वर आद्यापीठ मंदिर के संन्यासियों को आज भी याद है एपीजे की बातें
वर्ष 2004 के फरवरी माह की बातें हैं. भारतीय सांख्यिकी संस्थान के 38वें दीक्षांत समारोह के तुरंत बाद एपीजे अब्दुल कलाम कलकत्ता से सटे दक्षिणेश्वर आद्यापीठ काली मंदिर में कुछ घंटों के लिए आए थे. एपीजे के आगमन से ही पूरा मंदिर जैसे सुरभित हो उठा था. मंदिर के संन्यासियों को एपीजे अब्दुल कलाम के उपदेश आज भी याद है. वे कहते हैं- 'एपीजे जैसी शख्सियत को देखना और करीब से सुनना नसीब की बात है.'
रामेश्वरम (तमिलनाडु) में पैदा हुए थे एपीजे और गुजरे शिलांग (मेघालय) में
एपीजे का पूरा नाम था 'अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम.' लेकिन, लोग उन्हें 'एपीजे अब्दुल कलाम' के नाम से जानते हैं. एपीजे की पैदाइश तमिलनाडु के रामेश्वरम में 15अक्तूबर, 1931को हुई थीं और वे गुजरे थे मेघालय की राजधानी शिलांग में 27 जुलाई, 2015को. एपीजे हिंदुस्तान के 11वें राष्ट्रपति थे और उनका कार्यकाल वर्ष 2002 से 2007 तक रहा.
शिलांग में दिल का दौरा पड़ने से हुई थीं एपीजे की मौत
एपीजे की मौत शिलांग में 27 जुलाई, 2015को हुई थीं. तब एपीजे 83साल के थे. उस दिन एपीजे अब्दुल कलाम 'आईआईएम शिलांग' में छात्रों और वहां के प्राध्यापकों को संबोधित करने आए थे. विषय था 'पृथ्वी पर रहने योग्य ग्रह' (Livable Planet At Earth). लेकिन एपीजे की आकस्मिक मौत ने उस दिन पूरे देश को सन्न कर दिया.
एपीजे के दिल में बंगाल वर्ष 1982 से बसा था
बंगाल से कोई पैदाइशी रिश्ता नहीं रहने के बावजूद एपीजे अब्दुल कलाम के दिल में बंगाल और कलकत्ता के लिए खास जगह थीं. जून, 1982 की बात है. एपीजे तब 'इंडियन स्पेश रिसर्च ऑर्गनाइजेशन' (इसरो) में सैटेलाइट लांच वैह्किल (एसएलवी) के प्रोजेक्ट लीडर थे. एसएलवी-3 की कामयाबी के पीछे एपीजे अब्दुल कलाम का ही हाथ था. फिर एपीजे मिसाइल के विकास में लगे. इसी दौरान बंगाल के वैज्ञानिकों से एपीजे का रिश्ता बना, जो आखिर तक रहा.
डीआरडीओ में आने के बाद तो एपीजे बंगाल खूब आते थे
एपीजे अब्दुल कलाम ने जब डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) की कमान संभाली, तो बंगाल उनका आना-जाना अक्सर लगा रहता. यह वर्ष 1992की बात है. डीआरडीओ में एपीजे अब्दुल कलाम वर्ष 1999तक रहे. इस दौरान एपीजे के नेतृत्व में मिलिट्री मिसाइल डेवलपमेंट, ब्लास्टिक मिसाइल, लांच वैह्किल टेक्नोलॉजी और पोखरण -2 न्यूक्लियर टेस्ट (1998) का सफल परीक्षण हुआ. कहते हैं कि इन सभी वैज्ञानिक प्रोजेक्ट में वे बंगाल के वैज्ञानिकों की भी सलाह लेते रहे. कलकत्ता में 'साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स' (एसआईएनपी) के वैज्ञानिक इन बातों को अभी भी याद रखें हुए हैं. यह न्यूक्लियर संस्थान मशहूर भौतिक वैज्ञानिक मेघनाद साहा के नाम पर है.