गैंगस्टर विकास दुबे पर बनी वेब सीरीज़ ‘UP 77’ को बैन करने की मांग, निर्माताओं को भेजा नोटिस

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-12-2025
There are demands to ban the web series 'UP 77', based on gangster Vikas Dubey; a notice has been sent to the producers.
There are demands to ban the web series 'UP 77', based on gangster Vikas Dubey; a notice has been sent to the producers.

 

नई दिल्ली।

कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे की ज़िंदगी पर आधारित बताई जा रही वेब सीरीज़ ‘UP 77’ को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को इस सीरीज़ की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार और वेब सीरीज़ के निर्माताओं को नोटिस जारी किया है। यह सीरीज़ 25 दिसंबर को Views OTT प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ होने वाली है।

यह याचिका विकास दुबे की विधवा ऋचा दुबे की ओर से दायर की गई है। उनका आरोप है कि वेब सीरीज़ में उनके और उनके पति की निजी ज़िंदगी को गलत, सनसनीखेज़ और मानहानिकारक तरीके से पेश किया गया है, जिससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंच सकती है।

मामले की सुनवाई दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने की। अदालत ने याचिका पर तत्काल सुनवाई करते हुए सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई बुधवार के लिए तय की है।

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में दलील दी कि सोशल मीडिया पर जारी किए गए विज्ञापन और प्रोमो साफ़ तौर पर यह संकेत देते हैं कि सीरीज़ की कहानी विकास दुबे के चर्चित पुलिस एनकाउंटर पर आधारित है। उन्होंने कहा कि निर्माताओं ने बिना किसी अनुमति के याचिकाकर्ता की वैवाहिक और निजी ज़िंदगी के संवेदनशील पहलुओं को सार्वजनिक किया है।

ऋचा दुबे की ओर से यह भी कहा गया कि सीरीज़ का कंटेंट न केवल तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है, बल्कि उन्हें और उनके परिवार को बदनाम करने का भी खतरा पैदा करता है। इसी आधार पर उन्होंने वेब सीरीज़ की रिलीज़ पर तत्काल रोक लगाने की मांग की।

गौरतलब है कि विकास दुबे पर 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप था और उसे 10 जुलाई 2020 को उत्तर प्रदेश पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था। पुलिस के मुताबिक, उज्जैन से कानपुर लाते समय गाड़ी पलटने के बाद उसने भागने की कोशिश की थी, जिसके दौरान जवाबी कार्रवाई में उसकी मौत हो गई थी।हालांकि याचिकाकर्ता की ओर से तुरंत स्टे ऑर्डर की मांग की गई, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि सभी पक्षों को सुनने के बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा।