Sunny Sanskari Ki Tulsi Kumari Review : वरुण धवन-जाह्नवी की केमिस्ट्री दोहराई , टैलेंट हाशिए पर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 03-10-2025
Sunny Sanskari's Tulsi Kumari Review: Varun Dhawan-Janhvi's chemistry is replicated, but talent is sidelined.
Sunny Sanskari's Tulsi Kumari Review: Varun Dhawan-Janhvi's chemistry is replicated, but talent is sidelined.

 

नई दिल्ली
 

डायरेक्टर: शशांक खेतान
कास्ट: वरुण धवन, जाह्नवी कपूर, रोहित सराफ, सान्या मल्होत्रा
रेटिंग: ★★ (2 स्टार)

कहानी कुछ यूँ है:
जाह्नवी कपूर की तुलसी और वरुण धवन के सनी के एक्स-पार्टनर — रोहित सराफ और सान्या मल्होत्रा — अब एक-दूसरे से शादी करने वाले हैं। लेकिन ये खबर सुनते ही सनी और तुलसी अपने-अपने एक्स को वापस पाने के मिशन पर निकल पड़ते हैं — और सीधा उनकी शादी में ही पहुंच जाते हैं।

शशांक खेतान की यह फिल्म एक रोमांटिक कॉमेडी बनने की कोशिश करती है जिसमें सबकुछ डाला गया है — एक्स की शादी में घुसपैठ, पुराने प्यार की खींचतान, और ‘क्या वे फिर से मिलेंगे?’ जैसे सवाल। लेकिन सारी चमक-धमक और रंगीन सेटअप के बावजूद फिल्म मज़ेदार और मायने रखने वाली कहानी के बीच झूलती रह जाती है।

कहानी की बुनियाद में ही दरार

सनी और तुलसी, अपने-अपने एक्स को ‘गलती’ करने से बचाने के नाम पर उनकी शादी में खलल डालते हैं। यह सोच एक मज़ेदार ‘स्क्रूबॉल कॉमेडी’ की तरह लग सकती है, लेकिन परदे पर यह ज़्यादा बचकानी और अपरिपक्व दिखती है। कौन ज्यादा टॉक्सिक है — इसका सवाल फिल्म छूती तो है, पर उसमें गहराई से नहीं उतरती।

कई गानों और ओवर-द-टॉप दृश्यों के बीच कहानी कमजोर लगने लगती है।

क्या काम करता है?

फिल्म खुद को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेती — और यही इसकी पहली छमाही को थोड़ा मज़ेदार बनाता है। कुछ संवाद तेज़ और चुटीले हैं, और कुछ पल वाकई हँसाते हैं।
सान्या मल्होत्रा और रोहित सराफ की जोड़ी सबसे ज़्यादा "रीयल" और परिपक्व लगती है। उनका एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ना — पुराने रिश्तों में उलझे रहने की बजाय — एक अच्छा संदेश देता है। लेकिन जैसे ही फिल्म किसी गहरी बात को छूने लगती है, एक और गाना या नाच शुरू हो जाता है।

अभिनय: दोहराव और दिखावे का मेल

वरुण धवन एक टैलेंटेड एक्टर हैं, लेकिन इस फिल्म में वे ‘ऑटोपायलट’ मोड में लगते हैं। उनका किरदार ‘हम्प्टी शर्मा...’ और ‘बद्रीनाथ...’ जैसे पुराने रोल्स की कॉपी लगता है। वही अंदाज़, वही एक्सप्रेशन — जिससे थकावट सी महसूस होती है।

जाह्नवी कपूर खूबसूरत दिखती हैं, लेकिन एक ₹25,000 महीने कमाने वाली टीचर के किरदार के लिए उनका फैशन और लुक्स हद से ज़्यादा फिल्मी हैं — डिज़ाइनर लहंगे, हाई फैशन गाउन्स और सबकुछ। यथार्थ से नाता लगभग न के बराबर।

हालांकि, एक सीन जिसमें सान्या मल्होत्रा अपनी माँ से भिड़ती हैं — वाकई दमदार है। माँ की नज़र में बेटी की सारी कामयाबी से बड़ी चीज़ सिर्फ़ "शादी" है। यह भारतीय समाज की उस सोच की याद दिलाता है, जहाँ ‘प्रगतिशील’ दिखने वाले माता-पिता भी वक्त आने पर पुराने खांचे में लौट आते हैं।

बात अधूरी, संवाद गायब

चारों लीड कलाकारों के बीच की केमिस्ट्री में फिल्म एक तरफ़ा झुकाव दिखाती है — जाह्नवी कपूर की तुलसी पर इतना फोकस कि बाकी किरदार छूट जाते हैं।
सान्या और रोहित, दोनों ही संवेदनशील और संतुलित प्रदर्शन देते हैं, लेकिन कहानी में उन्हें उतना महत्व नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए था।

गाने अच्छे हैं, कुछ तो दोबारा सुनने लायक भी हैं, लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा हैं। हर भावनात्मक मोड़ पर गाना डाल देना, और संवादों की जगह लिरिक्स से काम चलाना फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी बन जाता है।