Murder Mubarak Review: पंकज त्रिपाठी का जादू बरकरार, पहली बार किसी चरित्र में सारा अली खान, विजय वर्मा में इरफान की झलक

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  onikamaheshwari | Date 17-03-2024
Murder Mubarak Review: Pankaj Tripathi's magic continues, Sara Ali Khan in a character for the first time, Irrfan in Vijay Verma
Murder Mubarak Review: Pankaj Tripathi's magic continues, Sara Ali Khan in a character for the first time, Irrfan in Vijay Verma

 

मंजीत ठाकुर

क्राइम-थ्रिलर को साधना मुश्किल है. किसी फिल्म में हत्या हो और संदिग्धों की पहचान का काम फिल्म के नायक को दे दिया जाए तो दर्शक भी साथ-साथ जासूस  बन जाते हैं. एक बार आपने बतौर दर्शक हत्यारे का पता लगा लिया तो फिल्म ठस्स हो जाती है. मर्डर मुबारक ऐसी नहीं है. 
 
पंकज त्रिपाठी-सारा अली खान-विजय वर्मा-करिश्मा कपूर और ढेर सारे सितारों से सजी फिल्म मर्डर मुबारक अनुजा चौहान की किताब ‘क्लब यू टू डेथ’ पर आधारित है और निर्देशक हैं होमी अदजानिया. इस फिल्म ने यह साबित किया है कि निर्देशक कैसे परदे पर किसी लेखक की दृष्टि को हू ब हू उतार सकता है.
 
 
फिल्म में रसूखदार दौलतमंद लोगों के क्लब में हत्या हो जाती है. इन अमीरों को इतना अधिक व्यंग्यात्मक रूप से पेश किया गया है कि आपको लगता है कि इससे चरित्रों आड़े-टेढ़े हो जाएंगे और कहानी का मजा खत्म हो जाएगा. लेकिन, किरदारों में मिर्च जैसा तीखापन और सरसों तेल वाली झांस आखिर तक बरकरार रहती है. इस फिल्म में कोई भी किरदार अपने फ्रेम से बाहर नहीं आता. 
 
फिल्म में जितने भी किरदार हैं, हत्या का शक हरेक पर होता है. और बगैर किसी सूत्र के उसकी खोज का जिम्मा पंकज त्रिपाठी पर है. त्रिपाठी पर, बेशक अपनी स्क्रीन प्रेजेंस नहीं बदलने का और हर रोल को एक ही तरह से निभाने के आरोप लगने लगे हैं, अगर आपने त्रिपाठी की पिछली थ्रिलर कड़क सिंह देखी है तो मर्डर मुबारक में भी वह उसी किरदार को विस्तार देते दिखेंगे पर शुक्र है कि इस फिल्म में उनका जादू बरकरार है. 
 
 
इसके बाद रणविजय सिंह (संजय कपूर) हैं जो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि हर कोई उन्हें 'हुकुम' कहे और वह वेटर्स को महज 20 रुपये की टिप देते रहते हैं है, सुपरस्टार शहनाज़ नूरानी के रूप में करिश्मा कपूर हैं जो सितारों की तरह ही पहुंच से बाहर हैं, सोशलाइट कुकी कटोच हैं जो शायद ही कभी शराब के बिना रहती हैं, और आकाश डोगरा के किरदार में विजय वर्मा हैं, जिनके बारे में उनके अभिभावकों का दावा है कि उसकी प्रेमिका ने उन्हें ‘लेफ्टिस्ट’ बना दिया है. 
 
फिल्म शुरू से ही व्यंग्य (कॉमेडी नहीं) की पतली धार पर चलती है और उसको आखिर तक बरकरार रखती है. इस फिल्म में समाज के क्लास डिवाइड यानी वर्ग भेद को बड़ी बारीकी से, करीबन नश्तर की सफाई से पेश किया गया है. फिल्म में बड़ी महीन ढंग से दिखाया गया है अमीर लोगों के जमीनी हकीकत से कितने कटे हुए हैं. इसकी मिसाल है कि ये दौलतमंद लोग अरुणाचल और कर्नाटक के दो वेटरों को एक जैसा ही बताते हैं. और नवंबर में हो रही बारिश पर उनकी टिप्पणी होती हैः पुअर फार्मस!
 
 
विजय वर्मा ने फिल्म में अंडर प्ले किया है. कई दृश्यों में उनमें इरफान की झलक आती है. संभावनाएं काफी हैं और उन्हें अधिक मौके मिलने चाहिए. लेकिन आह, सारा अली खान के साथ उनकी रोमांटिक केमिस्ट्री टाइमिंग के लिहाज से एकदम परफेक्ट नहीं है. बजाए उसके, सारा और त्रिपाठी के बीच के दृश्य बेहतर हैं. 
 
पहली बार सारा अली खान नाच-गाने, कूदने फांदने और अपनी मां की तरह हंसने के अलावा, अच्छा अभिनय करती दिखी हैं और उन्हें किसी चरित्र को निभाने का मौका मिला है. करिश्मा कपूर की परदे पर वापसी स्वागतयोग्य है. 
 
फिल्म मर्जर मुबारक थोड़ी लंबी जरूर है, पर आखिरी दृश्य तक आपको बांधकर रखती है. आखिरी दृश्य तक आपको यह मालूम नहीं होता कि हत्यारा कौन है. 
 
फिल्म की बहुत बड़ी ताकत इसका कैमरा वर्क है. कहानी को अच्छे से बयान करती हुई सिनेमैटोग्राफी है. कैमरे ने वर्गभेद को बारीकी से उभारा है लेकिन... लेकिन फिल्म का संगीत. ओह, ये बेहद ठस्स है. क्राइम थ्रिलर और कॉमिक टाइमिंग के हिसाब से संगीत चूकता हुआ लगता है.
जो भी हो, फिल्म अमीर और दौलतमंदों की हिप्पोक्रेसी के बीच एक बांधने वाली कहानी पेश करती है. 
 
फिल्मः मर्डर मुबारक
निर्देशक: होमी अदजानिया
कलाकार: पंकज त्रिपाठी, सारा अली खान, विजय वर्मा, करिश्मा कपूर, आशिम गुलाटी, डिंपल कपाड़िया, टिस्का चोपड़ा, ब्रिजेंद्र काला
अवधि: 141 मिनट
ओटीटीः नेटफ्लिक्स