राज और शम्मी कपूर की हिट फिल्मों के गीतकार इक़बाल हुसैन कैसे बने हसरत जयपुरी

Story by  ज़ाहिद ख़ान | Published by  [email protected] | Date 14-04-2024
Lyricist Hasrat Jaipuri between legend singer Mohammad Rafi and Shashi Kapoor.
Lyricist Hasrat Jaipuri between legend singer Mohammad Rafi and Shashi Kapoor.

 

-ज़ाहिद ख़ान

आज भी जब  रेडियो को ट्यून करते हैं, तो इसमें सबसे ज़्यादा जिन गीतकारों का नाम गूंजता है, उनमें हसरत जयपुरी का  पहले पायदान पर रहता है. उनका नाम सुनते ही ज़ुबां पर, वह गीत चला आता है और हम भी सिंगर के साथ ख़ुद-ब-ख़ुद गुनगुनाने लगते हैं.

 हसरत जयपुरी ने अपने पांच दशक के फ़िल्मी करियर में 350 फ़िल्मों के लिए कोई दो हज़ार गीत लिखे. सभी गीत एक से बढ़कर एक, दिल को छू लेने वाले. आज भी उनके नग़मों का कोई मुक़ाबला नहीं। ख़ास तौर से निर्माता-निर्देशक राजकपूर और मौसिक़ार शंकर जयकिशन के लिए उन्होंने लाजवाब गीत लिखे. राजस्थान के जयपुर में 15 अप्रैल, 1922 को पैदा हुए हसरत जयपुरी का असल नाम इक़बाल हुसैन था.
 
 उनके नाना फ़िदा हुसैन ‘फ़िदा’ मशहूर शायर थे. उन्हीं से हसरत के अंदर शायरी की ओर रुझान बढ़ा। शुरुआती तालीम के बाद इक़बाल हुसैन ने अपने नाना से ही उर्दू और फ़ारसी की तालीम हासिल की. सत्रह साल की उम्र आते-आते वे भी शे'र-ओ-शायरी करने लगे. इस बाली उम्र में उन्होंने जो अपना पहला शे’र लिखा, ‘किस अदा से वह जान लेते हैं/मरने वाले भी मान लेते हैं.
 
’ इस शे’र ने ही जैसे उनके मुस्तक़बिल की कहानी लिख दी थी.इक़बाल हुसैन, शायर मौलाना हसरत मोहानी से बेहद मुतास्सिर थे. लिहाज़ा उन्होंने अपना तख़ल्लुस भी 'हसरत' रख लिया. जब वे नौजवान ही थे कि एक मुशायरे के सिलसिले में मौलाना हसरत मोहानी का जयपुर में आना हुआ.
 
इस मुशायरे में नौजवान इक़बाल हुसैन ने न सिर्फ़ शिरक़त की, बल्कि उन्हें अपने महबूब शायर हसरत मोहानी से मुलाकात का मौक़ा भी मिला. हसरत मोहानी उनसे मुहब्बत और ख़़ुलूस से मिले और उन्होंने इक़बाल हुसैन को सलाह दी कि उनका तख़ल्लुस तो 'हसरत' ठीक है. मगर वे इस नाम के आगे जयपुरी और जोड़ लें.
 
उन्हें मोहानी की राय जच गई और इस तरह वे इक़बाल हुसैन से हसरत जयपुरी हो गए. लड़कपन में हसरत जयपुरी को पड़ोस में रहने वाली एक लड़की से मुहब्बत थी। लेकिन यह एक तरफ़ा मुहब्बत परवान नहीं चढ़ सकी. वजह, अपनी माशूक़ा से मुहब्बत का इज़हार नहीं कर पाना. हसरत जयपुरी का इश्क़ भले ही परवान नहीं चढ़ा, लेकिन उसका असर आगे चलकर उनकी शायरी में हुआ.
 
हसरत जयपुरी की शायरी में प्यार-मुहब्बत, मिलन-जुदाई के जो बार-बार अक्स आते हैं, उसमें उनकी लड़कपन की मुहब्बत का बड़ा रोल है. अपने इंटरव्यू में उन्होंने इस बात को बार-बार दोहराया है,‘शे’रो शायरी की तालीम मैंने अपने नानाजान से हासिल की, लेकिन इश्क़ का सबक़ राधा ने सिखाया.’ हसरत जयपुरी ने इश्क़ का जो सबक सीखा, उसे अपने गानों के मार्फ़त आगे तक पहुंचाया। उनके ज़्यादातर गीत इश्क़-मुहब्बत का ही सबक़ हैं.
 
साल 1940 में ग़म-ए-रोज़गार हसरत जयपुरी को जयपुर से मायानगरी मुंबई खींच ले गया. मुंबई में उन्होंने आठ साल तक बस कंडक्टरी की. कंडक्टरी के साथ वे शायरी भी करते रहे. जो मुशायरे होते, उसमें शिरकत करते. प्यार में नाकामी, ज़िंदगी की ज़द्दोजहद ने उनकी शायरी को और निखारा. मुशायरों में आहिस्ता-आहिस्ता उनकी मक़बूलियत बढ़ने लगी.
 
ऐसे ही एक मुशायरे में अज़ीम थियेटर अदाकार पृथ्वीराज कपूर ने हसरत जयपुरी को सुना. उनकी जज़्बाती नज़्म ‘मज़दूर की लाश’ पृथ्वीराज कपूर को बेहद पंसद आई. यह नज़्म हसरत जयपुरी ने फ़ुटपाथ पर उनके साथ रात बिताने वाले अपने एक दोस्त की मौत पर लिखी थी.
 
 राजकपूर उस वक़्त फ़िल्म ‘बरसात’ बनाने की तैयारी में लगे हुए थे. फ़िल्म के संगीत के लिए उन्होंने शंकर जयकिशन और गीतकार के तौर पर शैलेन्द्र को चुन लिया था. फ़िल्म के लिए उन्हें एक और गीतकार की तलाश थी.
 
पृथ्वीराज कपूर ने राजकपूर को मशविरा दिया कि वे एक बार हसरत जयपुरी को ज़रूर सुन लें. अपने वालिद की सलाह पर राजकपूर ने हसरत जयपुरी के साथ एक मीटिंग की. जिसमें फ़िल्म के संगीतकार शंकर जयकिशन भी शामिल थे.
 
 शंकर जयकिशन ने हसरत जयपुरी को लोकगीत पर आधारित एक धुन सुनाई और इस पर गीत लिखने को कहा. उन्होंने धुन पर तुरंत ही शंकर जयकिशन को यह लाइन ‘जिया बेकरार है, छाई बहार है, आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है..’ सुनाई. जो उन्हें और फ़िल्म निर्देशक राजकपूर दोनों को बहुत पसंद आई. बहरहाल, इसी के साथ हसरत जयपुरी, आरके बैनर का हिस्सा हो गए.
 
साल 1949 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘बरसात’ के सारे गाने ही सुपर हिट साबित हुए. हसरत जयपुरी के लिखे गाने ‘जिया बेकरार है, छाई बहार है..’, ‘छोड़ गए बालम..’ भी खू़ब पसंद किए गए. फ़िल्म ‘बरसात’ के गीतों से हसरत जयपुरी की कामयाबी का जो सिलसिला शुरू हुआ, तो वह ‘आवारा’ (1951), ‘श्री 420’ (1955), ‘चोरी चोरी’ (1956), ‘अनाड़ी’ (1959), ‘जिस देश में गंगा बहती है’ (1960), ‘संगम’ (1964), ‘तीसरी कसम’ (1966), ‘दीवाना’ (1967), ‘अराउंड द वर्ल्ड’ (1967), ‘मेरा नाम जोकर’ (1970), ‘कल आज और कल’ (1971) तक चला.
 
 इस दौरान राज कपूर, शंकर जयकिशन और हसरत जयपुरी की तिकड़ी ने शानदार गीत रचे और फ़िल्मी दुनिया को अपने समधुर गीत-संगीत से समृद्ध किया. राजकपूर के अलावा उनके भाई शम्मी कपूर के लिए भी हसरत जयपुरी ने अनेक गीत लिखे.
 
शम्मी कपूर की ‘प्रोफ़ेसर’, ‘जंगली’, ‘राजकुमार’, ‘ब्रह्मचारी’, ‘पगला कहीं का’,‘अंदाज़’, ‘एन इवनिंग इन पेरिस’, ‘प्रिंस’ आदि फ़िल्मों की कामयाबी के पीछे हसरत जयपुरी के प्यार-मुहब्बत, शरारत और चुहल भरे गीतों का बड़ा योगदान है.
 
 राजकपूर की फ़िल्मों के गीत सुनो, फिर शम्मी कपूर की इन फ़िल्मों के गीतों को सुनो, दोनों में ही ज़मीन-आसमान का फ़र्क नज़र आता है. एक ही मौसिक़ार और एक ही नग़मा निगार, लेकिन अंदाज़ बिल्कुल जुदा-जुदा. फ़िल्मों में शम्मी कपूर की जो इमेज थी, उसी इमेज के मुताबिक़ हसरत जयपुरी ने गीतों को लिखा. जो लोगों को बेहद पसंद आए.
 
‘आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ...’ (फ़िल्म प्रोफ़ेसर), ‘एहसान होगा तेरा...’(फ़िल्म जंगली), ‘मेरी मुहब्बत जवां रहेगी..’ (फ़िल्म जानवर), ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए..’ (फ़िल्म प्रिंस), ‘तू बेमिसाल है, तेरी तारीफ़ क्या करूं...’, ‘आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे..’ (फ़िल्म ब्रह्मचारी), ‘तुमने किसी की जान को..’, ‘इस रंग बदलती दुनिया में..’(फ़िल्म राजकुमार), ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे..’ (फ़िल्म पगला कहीं का) आदि एक लंबी फेहरिस्त है, इन गानों की.
 
 इन्हीं गानों के चलते ग़र हम हसरत जयपुरी को रूमानी गीतों का राजकुमार कहें, तो ग़लत नहीं होगा. हसरत जयपुरी ने सिर्फ़ रूमानी नगमें ही नहीं लिखे, वे अलग-अलग मूड और नेचर के गाने लिखने में भी बड़े माहिर थे. फ़िल्मों में जिस तरह की सिचुएशन होती, वे पल भर में उस तरह का गीत रच देते.
 
‘तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर...’, ‘ईचक दाना बीचक दाना दाने ऊपर दाना...’ जैसे गाने हसरत जयपुरी के हरफ़नमौला फ़न के ही शानदार नमूने हैं. हसरत जयपुरी के गीतों की ऑल इंडिया मक़बूलियत का राज, उनकी सादा ज़बान है.
 
जो आम जन को भी आसानी से समझ में आती है. उन्होंने जहां इश्क़-मुहब्बत में डूबे बेहद रूमानी गीत ‘ये मेरा प्रेम-पत्र पढ़कर तुम...’ (फ़िल्म-संगम), ‘चले जाना जरा ठहरो..’ (अराऊंड दि वर्ल्ड) लिखे, तो वहीं महबूब की जुदाई और ग़म में डूबे हुए जज़्बात को उसी शिद्दत से लफ़्ज़ों में पिरोया.
 
 यक़ीन न हो, तो उनके कुछ इस तरह के नग़मों पर नज़र डालिए—‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई’ (फ़िल्म-तीसरी कसम), ‘जाने कहां गए वो दिन..’ (फ़िल्म-मेरा नाम जोकर). हसरत जयपुरी की कुछ मशहूर ग़ज़लों ‘ऐ मेरी जाने ग़ज़ल, चल मेरे साथ ही चल..’, ‘जब प्यार नहीं है, तो भुला क्यों नहीं देते’, ‘हम रातों को उठ-उठ के जिनके लिए रोते हैं’ और ‘नज़र मुझसे मिलाती हो तो तुम शरमा सी जाती हो’ को उन्हीं के शहर जयपुर के रहने वाले ग़ज़ल गायकों अहमद हुसैन, मुहम्मद हुसैन ने गाकर अमर कर दिया है.
 
साल 1966 में फ़िल्म ‘सूरज’ के गीत ‘बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है’ और साल 1971 में फ़िल्म ‘अंदाज़’ के ‘ज़िंदगी एक सफर है सुहाना..’ गीत के लिए हसरत जयपुरी को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का ‘फ़िल्मफ़ेयर’ अवार्ड मिला.
 
इन दोनों ही गीत को आए हुए, एक लंबा अरसा बीत गया, लेकिन इनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है. जिसमें ‘बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है’ जब तक किसी शादी में न बजे, वह शादी पूरी नहीं होती है. सातवें दशक में पहले शैलेन्द्र, उसके बाद संगीतकार जयकिशन और फिर मुकेश की मौत से हसरत जयपुरी को काफ़ी धक्का लगा.
 
 फिर उसके बाद उनकी जोड़ी किसी संगीतकार के साथ उस तरह की नहीं बनी। अलबत्ता वे गीत ज़रूर लिखते रहे और बीच-बीच में उनके कई गीत सुपरहिट भी हुए. ‘सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन...‘ (फ़िल्म-राम तेरी गंगा मैली), ‘मैं हूं ख़ुशरंग हिना...’ (फ़िल्म-हिना) हसरत जयपुरी के आख़िरी वक़्त में लिखे हुए गीत हैं, जो दोनों ही बेहद मक़बूल हुए। पुरानी पीढ़ी के साथ-साथ नई पीढ़ी ने भी इन गीतों को ख़ूब पसंद किया.
 
 अपने गीतों से श्रोताओं को एक लंबे अरसे तक मदहोश कर देने वाला यह बेमिसाल शायर, गीतकार 17 सितम्बर, 1999 को हमसे हमेशा के लिए ज़ुदा हो गया. आज भले ही हसरत जयपुरी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके तमाम गीत ये सदा दे रहे हैं, ‘तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे/जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे/संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे.’