77 वें कान्स फिल्म समारोह में आवाज द वाॅयस :पायल कपाड़िया की फिल्म ' आल वी इमैजिन ऐज लाइट ' का शानदार प्रीमियर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-05-2024
awaz The Voice: Payal Kapadia's film 'All We Imagine as Light' has a spectacular premiere at the 77th Cannes Film Festival
awaz The Voice: Payal Kapadia's film 'All We Imagine as Light' has a spectacular premiere at the 77th Cannes Film Festival

 

ajit rai film criticsकान्स फिल्म समारोह से अजित राय

77 वें कान्स फिल्म समारोह में  भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान एफटीआईआई पुणे के चिदानंद एस एस नायक की  कन्नड़ फिल्म ' सनफ्लावर्स वेयर द फर्स्ट वंस टु नो ' को ' ल सिनेफ ' सिनेफोंडेशन खंड में बेस्ट फिल्म का पुरस्कार मिला. दूसरी ओरफिल्म फेस्टिवल के 77 सालों के इतिहास में 30 साल बाद कोई भारतीय फिल्म मुख्य प्रतियोगिता खंड में चुनी गई.

वह फिल्म है पायल कपाड़िया की मलयालम- हिंदी फिल्म ' आल वी इमैजिन ऐज लाइट. इससे पहले 1994 में शाजी एन करुण की मलयालम फिल्म ' स्वाहम ' प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी. पायल कपाड़िया जब भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे में पढ़ती थी, तो 2017 में उनकी शार्ट फिल्म ' आफ्टरनून क्लाउड्स ' अकेली भारतीय फिल्म थी जिसे  70 वें कान फिल्म समारोह के सिनेफोंडेशन खंड में चुना गया था.

इसके बाद 2021 में उनकी डाक्यूमेंट्री ' अ नाइट आफ नोइंग नथिंग ' को कान फिल्म समारोह के' डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में चुना गया. और उसे बेस्ट डाक्यूमेंट्री का गोल्डन आई अवार्ड भी मिला था.  लेकिन इस बार पायल कपाड़िया ने इतिहास रच दिया , क्योंकि वे यहां ' गाडफादर ' जैसी कल्ट फिल्म बनाने वाले फ्रांसिस फोर्ड कपोला, आस्कर विजेता पाउलो सोरेंतिनों, माइकल हाजाविसियस और जिया झंके, अली अब्बासी, जैक ओदियार डेविड क्रोनेनबर्ग जैसे विश्व के दिग्गज फिल्मकारों के साथ प्रतियोगिता खंड में चुनी गई है.  इस फिल्म में दुनिया भर के वितरकों खरीददारों ने दिलचस्पी दिखाई .

युवा फिल्मकार पायल कपाड़िया की फिल्म ' आल वी इमैजिन ऐज लाइट ' का यहां गुरुवार की शाम ग्रैंड थियेटर लूमिएर में भव्य प्रीमियर हुआ. दर्शकों ने काफी देर तक ताली बजाकर फिल्म का स्वागत किया. पायल कपाड़िया और उनकी टीम को गाजे बाजे के साथ भव्य और सेरेमोनियल ( आफिशियल) रेड कार्पेट दी गई.

कान फिल्म फेस्टिवल के निर्देशक थेरी फ्रेमों ने हाथ बढ़ाकर उनका स्वागत किया. कान फिल्म समारोह में उनकी आफिशियल प्रेस कॉन्फ्रेंस भी हुई जिसमें उन्होंने फिल्म की निर्माण प्रक्रिया पर बातें की. यह फिल्म मुंबई में नर्स का काम करने वाली केरल की दो औरतों प्रभा और अनु की कहानी है, जो एक रूम किचेन ( वन आर के)  साझा करती हैं.

film

फिल्म में मुख्य भूमिकाएं कनी कस्तूरी, दिव्य प्रभा, छाया कदम,हृधुर हारून आदि ने निभाई है. रणबीर दास का छायांकन बहुत उम्दा है . अपने फोकस से कभी भटकता नहीं है. मुंबई की भीड़, आसमान, बादल बारिश हवा और समुद्र के साथ इस पास की आवाजें भी रणबीर दास के कैमरे से होकर जैसे फिल्म के असंख्य चरित्रों में बदल जाते हैं.

सुदूर केरल से नर्स की नौकरी करने मुंबई आई दो औरतों का बहनापा बेजोड़ है. एक छोटे से कमरे में दोनों की साझी गतिविधियां एक भरा पूरा संसार रचती है. बड़ी नर्स प्रभा जब तक कुछ समझ पाती, उसके घरवालों ने उसकी शादी कर दी. शादी के तुरंत बाद ही उसका पति जर्मनी चला गया. उसने प्रभा की कभी खोज खबर नहीं ली.

  प्रभा को इंतज़ार है और उम्मीद भी कि एक दिन उसका पति वापस लौटेगा. उसके अस्पताल का एक मलयाली डाक्टर उसकी ओर आकर्षित होता है, पर प्रभा इनकार कर देती हैं.दोनों औरतें चौक जाती हैं जब एक दिन जर्मनी से एक पार्सल आता है. जाहिर है प्रभा के पति ने उसे सालों बाद कोई उपहार भेजा है.

 छोटी नर्स अनु केरल से मुंबई आए एक मुस्लिम लड़के शियाज से प्रेम में पड़ जाती है. वह इस भीड़ भरे शहर में उससे मिलने का एकांत खोजती रहती है. एक दूसरी अधेड़ औरत को बिल्डर ने धोखा दे दिया है. क्योंकि उसके पति के मरने के बाद उसके पास पैसे जमा कराने का कोई कागजी सबूत नहीं है.

रणबीर दास का कैमरा मुंबई की भीड़ में अपने चरित्रों के इर्द-गिर्द ही फोकस रहता है.  सब्जी मंडी से शुरू करके लोकल रेलवे की आवा-जाही, रेलवे स्टेशन की भीड़ में आना जाना, भीड़ भरी सड़कों से गुजरना, छोटी सी रसोई में मछली तलना और बाथरूम में कपड़े धोना, बिस्तर पर सोते हुए शून्य को निहारना, यानि सब कुछ हम महसूस कर सकते हैं.

 मुंबई में साथ रहते हुए भी अकेलापन कभी पीछा नहीं छोड़ता. पायल कपाड़िया ने फिल्म की गति को धीमा रखा है जिससे छवियां और दृश्य दर्शकों के दिलो-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ सकें.  प्रकट हिंसा कहीं भी नहीं है, पर जीवन में मैल की तरह जम चुके दुःख की चादर पूरे माहौल में फैली हुई है.

film
 
एक दृश्य में अनु घर की खिड़की से बादलों के जरिए अपने प्रेमी को चुंबन भेजती हैं. दूसरे दृश्य में वह अपने प्रेमी के घर जाने के लिए काला बुर्का खरीदती है. आधे रास्ते में उसके प्रेमी का मैसेज आता है कि घरवालों का शादी में जाने का प्रोग्राम कैंसल हो गया. अनु की निराशा समझी जा सकती है. पर प्रेम तो आखिर प्रेम है जो सिनेमा से बाहर जीवन में होता है.

 प्रभा और अनु उस धोखा खाई अधेड़ औरत के साथ मुंबई से बाहर एक समुद्री शहर में घूमने का प्रोग्राम बनाती है. अनु अपने प्रेमी को भी बुला लेती है कि उसे उसके साथ अंतरंग समय बीताने का मौका मिलेगा. एक दोपहर समुद्र किनारे एक बेहोश आदमी पड़ा मिलता है.

नियति इन औरतों के जीवन से रौशनी को लगातार दूर ले जा रही है. प्रभा अनु से कहती भी है कि मुंबई मायानगरी है, माया पर जो विश्वास नहीं करेगा वह यहां पागल हो जाएगा.  इतने बड़े शहर में दो औरतें साथ साथ रौशनी की चाहत में हैं, जबकि उनके चारों ओर अंधेरा बढ़ता जा रहा है.