गुवाहाटी (असम)
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने इसरो के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर और इज़रायल की हाइफ़ा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक दूरस्थ ब्लैक होल GRS 1915+105 से निकलने वाले रहस्यमयी एक्स-रे संकेतों को समझने में सफलता हासिल की है। यह ब्लैक होल पृथ्वी से लगभग 28,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है।
शोधकर्ताओं ने भारत के अंतरिक्ष वेधशाला “एस्ट्रोसैट” से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया। अध्ययन में पाया गया कि इस ब्लैक होल से आने वाली एक्स-रे चमक समय-समय पर बदलती है—कभी तेज़ तो कभी धीमी—और प्रत्येक चरण कई सौ सेकंड तक रहता है।
आईआईटी गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के प्रो. संतब्रत दास ने बताया,“हमने पहली बार यह सबूत पाया कि उच्च-चमक वाले चरणों के दौरान एक्स-रे की तेज़ चमक लगभग 70 बार प्रति सेकंड (70 हर्ट्ज़) की दर से झिलमिलाती है। दिलचस्प बात यह है कि जैसे ही चमक कम होती है, यह झिलमिलाहट गायब हो जाती है। यह खोज एस्ट्रोसैट की अनोखी क्षमताओं की वजह से संभव हो सकी।”
अध्ययन से पता चला कि ब्लैक होल के आसपास स्थित कोरोना (Corona) की संरचना स्थिर नहीं है।
जब एक्स-रे चमक अधिक होती है, तब कोरोना अधिक सघन और गर्म हो जाता है, और तभी तेज़ झिलमिलाहट दिखाई देती है।
जबकि मंद चरण में यह फैलकर ठंडा हो जाता है, जिससे झिलमिलाहट गायब हो जाती है।
यह स्पष्ट संबंध इस ओर इशारा करता है कि ये तेज़ एक्स-रे संकेत ब्लैक होल के आसपास मौजूद दोलीय (oscillating) कोरोना से उत्पन्न होते हैं।
इस खोज से ब्लैक होल के किनारे मौजूद अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण और उच्च तापमान की गहरी समझ मिलती है। साथ ही, यह हमारे मॉडल को बेहतर बनाती है कि ब्लैक होल कैसे बढ़ते हैं, ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं और अपने आसपास के वातावरण को प्रभावित करते हैं।
इस अध्ययन की अहमियत बताते हुए इसरो के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के डॉ. अनुज नंदी ने कहा,
“हमारे अध्ययन ने पहली बार सीधे तौर पर यह दिखाया है कि एक्स-रे झिलमिलाहट की उत्पत्ति ब्लैक होल के आसपास मौजूद कोरोना में होने वाले परिवर्तनों से जुड़ी हुई है।”
यह शोध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका “मंथली नोटिसेज ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी” में प्रकाशित हुआ है। इस शोध पत्र के सह-लेखकों में आईआईटी गुवाहाटी के प्रो. संतब्रत दास और उनके शोधार्थी सेषाद्रि मजूमदार, इसरो-यूआरएससी के डॉ. अनुज नंदी और हाइफ़ा यूनिवर्सिटी (इज़रायल) के डॉ. श्रीहरी हरिकेश शामिल हैं।