साकिब सलीम
9 जून, 1947 को, मुस्लिम लीग के नेता एक सप्ताह पहले अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रस्तावित धार्मिक तर्ज पर भारत के विभाजन की योजना को औपचारिक रूप से स्वीकार करने के लिए इम्पीरियल होटल, दिल्ली में बैठक कर रहे थे.
बैठक में प्रस्ताव पारित होने के तुरंत बाद, खाकसार आंदोलन से जुड़े लगभग पचास हथियारबंद लोग अमेरिकी सेना की जीपों पर सवार होकर होटल में घुस गए. 'फ्री फॉर ऑल फाइट' में चाकू, खंजर, रिवॉल्वर, राइफल और अन्य हथियारों का इस्तेमाल किया गया था.
खाकसार, जिन्ना को मारना चाहते थे क्योंकि जिन्ना भारत के विभाजन के पक्षधर थे और उनकी ही हिंसक मांग की वजह से भारत का बंटवारा हो रहा था जबकि खाकसार भारत को एक रखना चाहते थे.
मुस्लिम लीग गार्ड्स ने जिन्ना को हमलावरों से बचाने के लिए घेर लिया क्योंकि पुलिस ने हमले को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े. कई लीग गार्ड गंभीर रूप से घायल हो गए, जबकि एक खाकसार भी गंभीर रूप से घायल हो गया.
लैग गार्ड्स के प्रयासों से जिन्ना की जान बच गई क्योंकि हमले को आखिरकार नाकाम कर दिया गया. मुस्लिम लीग द्वारा पारित प्रस्ताव को उन्होंने होटल की लॉबी में पढ़ा और सभी की आंखों में आंसू आ गए. कुछ ही घंटों के भीतर, अंग्रेजी पुलिस ने खाकसरों के नेता इनायतुल्ला खान, या अल्लामा मशरिकी को गिरफ्तार करने के लिए दिल्ली में एक तलाशी अभियान शुरू किया.
कुछ साल पहले 1943में रफीक साबिर मजांगवी ने जिन्ना को उनके मुंबई स्थित आवास पर मारने की कोशिश की थी. उस समय भी, मुस्लिम लीग ने आरोप लगाया था कि उन्हें अल्लामा मशरिकी ने भेजा था, एक आरोप जिसका अल्लामा ने खंडन किया था.
खाकसार आंदोलन की स्थापना १९३० में एक ऑक्सफोर्ड शिक्षित भारतीय मुस्लिम इनायतुल्ला खान ने की थी. आंदोलन में शामिल होने वाले सदस्यों को अपने खून से दस्तखत करना होता था और शपथ लेनी होती थी. "मैं ईमानदारी से नेता के आदेश पर अपने जीवन का बलिदान करने का वादा करता हूं और अगर मैं अवज्ञा करता हूं तो मैं नरक में उतरने के लायक हूं."
अंग्रेजी मीडिया और सरकार ने उनके संगठन को 'फासीवादी' करार दिया. दिलचस्प बात यह है कि 1939में, पश्चिमी मीडिया ने बताया कि भारत, अफगानिस्तान, इराक और ईरान में इस आंदोलन के सदस्य थे. उस समय खाकसरों की ताकत चार लाख मानी जाती थी, जिन सभी ने अपने खून में लिखकर प्रतिज्ञा की थी. अल्लामा मशरिकी ने महिलाओं को भी भर्ती किया.
सितंबर 1942में, कांग्रेस नेतृत्व को गिरफ्तार करने के एक महीने बाद, अंग्रेजी सरकार द्वारा आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था क्योंकि यह माना जाता था कि खाकसार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं को मुक्त करने के लिए देश भर की जेलों पर हमला करने की योजना बना रहे थे. अल्लामा ने अपने अनुयायियों को वर्दी पहनना बंद करने और देश के भीतर से एक गुप्त युद्ध प्रयास की तैयारी करने का निर्देश दिया.
अल्लामा मशरिकी को शाही ब्रिटेन द्वारा ऐसा खतरा माना जाता था कि 24सितंबर, 1942को विधान सभा ने गंभीरता से बहस की कि क्या यह अल्लामा मशरिकी का खाकसार आंदोलन था, जिससे हिटलर को उग्रवादी तर्ज पर नाजी पार्टी बनाने का विचार आया था. कई सदस्यों का मानना था कि ऐसे फासीवादी संगठन के पीछे अल्लामा प्रेरणा थे.
अल्लामा मशरिकी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत से अंग्रेजों को बेदखल करने के लिए हथियार उठाए और उन लोगों के खिलाफ हथियार उठाए जो भारत का विभाजन करना चाहते थे.