पद्म श्री मिलने पर अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद क्या बोले

Story by  फरहान इसराइली | Published by  [email protected] | Date 29-01-2024
पद्म श्री मिलने पर अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद क्या बोले
पद्म श्री मिलने पर अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद क्या बोले

 

फरहान इसराइली /जयपुर 

पद्म श्री मिलने पर अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद ने कहा कि “ऐसा लगता है जैसे दर्द से कराहते हुए आदमी को मरहम का टीका लग गया.”  आवाज द वाॅयस से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह पुरस्कार उनको बहुत संतुष्टि और खुशी देने वाला है.’’ 

बता दें कि राजस्थान में मांड गायकी के बादशाह अली-गनी बंधु, भीलवाड़ा के बहरुपिया कलाकार जानकी लाल और जयपुर के ध्रुपद गायक लक्ष्मण भट्ट तैलंग को गणतंत्र दिवस पर पद्मश्री अवार्ड्स देने का ऐलान किया गया है. 
 
मीरा, कबीर और भजन वाणी गाकर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पैश कर रहे गजल और मांड गायकी के उस्ताद अली-गनी भाई,  बीकानेर के तेजरासर गांव के रहने वाले हंै.
 
उन्होंने गजल संगीत के साथ मांड गायकी को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई है. अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद ने मांड गायकी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है. 
 
आवाज द वाॅयस से बातचीत में उन्हांेने कहा, ‘‘ मांड गायकी की पारंपरिक शैली को संरक्षित करने के साथ इसे आधुनिक रूप भी दिया गया है. मांड गायकी को विभिन्न भाषाओं में भी प्रस्तुत किया गया ताकि सभी के समझ में आ सके.’’
 
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अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं. उन्हें राजस्थान सरकार द्वारा कलाश्री सम्मान, भारत सरकार द्वारा पद्म श्री सम्मान और राजस्थान संगीत नाटक अकादमी द्वारा लता मंगेशकर सम्मान से सम्मानित किया गया है.
 
आवाज द वॉयस से बातचीत में उस्ताद अली मोहम्मद ने बताया, ‘‘ संगीत उनको विरासत में मिला है. उनके दादा देवकरण खां भी संगीत गायकी में पारंगत थे.
दोनों भाइयों के उस्ताद उनके पिताजी उस्ताद सिराजुद्दीन खान हैं, जिन्हें लोग सुरजे खां या सूरजाराम भी कहा करते थे. सिराजुद्दीन उर्फ सुरजेराम भजन वाणी और कबीर वाणी के उस्ताद माने जाते थे.’’
 
दोनों भाइयों को गायकी का हुनर उनके दादा और उनके उस्ताद पिता से मिला है. उस्ताद अली - गनी बंधु मीरा वाणी, कबीर वाणी, सूफी संगीत, ठुमरी एवं क्लासिकल और भजन वाणी गाते हैं जो कि सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है.
 
पद्म श्री पुरस्कार मिलने पर अत्यंत खुशी जाहिर करते हुए अली मोहम्मद कहते हैं ,“ऐसा लगता है जैसे दर्द से कराहते हुए आदमी को मरहम का टीका लग गया.” यह पुरस्कार उनको बहुत संतुष्टि और खुशी देने वाला है. 
 
परिवार में तीन भाई हैं. सभी के बच्चे संगीत गायकी में है. उस्ताद अली- गनी बंधुओं ने देश के कई मशहूर गजल गायकों के लिए कई यादगार संगीत बनाने के साथ ही कई फिल्मों में भी संगीत दिया है.
 
अली मोहम्मद अपना प्रिय संगीत गुनगुनाते हुए कहते हैं, “कभी आंसू कभी खुशबू, कभी नगमा बनकर, हमसे हर शाम मिली है तेरा चेहरा बनाकर” है. दोनों भाइयों ने कई फिल्मों में भी संगीत दिया है जिनमें मिट्टी, चांद बुझ गया, दुश्मन दुश्मन आदि शामिल है.
 
गजल गायक पंकज उधास के साथ भी कई एल्बमों में म्यूजिक दिया है जिनमें कृष्ण भजन एल्बम भी शामिल है. मीर तकी मीर की गजलों का कलेक्शन जो कि पंकज उधास ने गाया था और उसमें विद्या बालन ने अभिनय किया था, का संगीत भी उस्ताद गनी और अली मोहम्मद ने दिया था.
 
गायक हंसराज हंस के साथ “झांझरिया” का संगीत भी दोनों भाइयों ने दिया है. जो युवा संगीत में आना चाहते हैं उनको संदेश देते हुए उस्ताद अली कहते हैं, ‘‘ संगीत में आने के लिए उस्ताद बनाना बेहद जरूरी है.
 
संगीत के लिए केवल गाना आना जरूरी नहीं. इसे महसूस करना जरूरी है. आप संगीत में आना चाहते हैं तो अच्छा उस्ताद बनाइए.
 
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ध्रुपद गायन शैली को दिलाई विदेशों में पहचान

ध्रुपदाचार्य पंडित लक्ष्मण भट्ट तैलंग के बारे में बताते हैं कि उनका पूरा जीवन इस गायन शैली को संवारने में निकल गया.साल 1928 पंडित गोकुल चन्द्र भट्ट के घर पैदा हुए पंडित लक्ष्मण भट्ट के पिता भी ध्रुपद संकीर्तन हवेली संगीत के पुरोधा गायक रहे. 
 
तैलंग की बेटी राजस्थान की सुप्रसिद्ध पहली महिला धु्रपद गायिका हैं.
 
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रिटायरमेंट के बाद शुरू की रोड सेफ्टी जागरुकता

राजधानी जयपुर के जेके लॉन हॉस्पिटल की पूर्व सुपरिटेंडेंट रही माया टंडन को समाज सेवा के क्षेत्र में पद्मश्री मिला है. जिन्होंने 28 साल पहले सहायता संस्था नाम से एनजीओ शुरू किया.
 
यह संस्था लोगों को रोड सेफ्टी को लेकर जागरूक करती है. टंडन का एनजीओ लोगों में यह जागरुकता फैलाती है कि दुर्घटना होने पर मरीजों को किस तरह रखा जाना चाहिए.
 
उन हालातों में घायल को कैसे ट्रीट किया जाना चाहिए. बता दें कि माया टंडन सड़क सुरक्षा के लिए पिछले 38 साल से काम कर रही हैं.उनके पति की हार्ट अटैक के बाद मौत हो गई थी. उसके बाद उन्होंने समाज सेवा को ही अपना लक्ष्य बना लिया.
 
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भीलवाड़ा के बहरुपिया बाबा को भी पद्मश्री

 83 साल के जानकी लाल जो बहरुपिया कला के महारथी हैं, उन्हें भी पद्मश्री से नवाजा गया. बता दें कि जानकीलाल को बहरूपिया कला विरासत में मिली है, चार दशक से उन्होंने इस कला को जिंदा रखा है. जानकी लाल पिछले 65 साल से तरह-तरह की वेशभूषाओं में स्वांग रचते हैं.