जंग ए आज़ादी के गुमनाम नायक: मौलाना अब्दुल जलील इसराइली

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-09-2023
Unsung hero of Jang-e-Azadi: Maulana Abdul Jalil Israel
Unsung hero of Jang-e-Azadi: Maulana Abdul Jalil Israel

 

फरहान इसराइली

लंबे संघर्ष के बाद भारत को आजादी मिली.भगत सिंह, आजाद, राजगुरु, सुखदेव, अशफाकुल्लाह खान, महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस जैसे नाम इसके नायक बनकर उभरे .इतिहास के पन्नों में दर्ज हुए.वहीं कुछ नाम गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गए.स्वतंत्रता में उनके योगदान की कहानियां तो दूर, कई लोग उनका नाम तक नहीं जानते.आज बात करने जा रहे हैं एक ऐसे ही आज़ादी के नायक मौलाना अब्दुल जलील इसराइली के बारे में.मौलाना अब्दुल जलील इसराइली अलीगढ़ किले के पास मौजूद जामा मस्जिद में इमाम थे.पढ़ने और पढ़ाने का निज़ाम यहीं स्थापित किया.मौलाना अलीगढ़ की बहुत ही मज़हबी और दीनी शख्सियत के रूप में पहचाने जाने वाले बुजुर्ग थे.

शहर के लोगों के मन में आपके प्रति गहरी अक़ीदत थी.लोगों का रुझान देखकर अंग्रेज अफसर भी मिलने आते थे, लेकिन उन्हें बेहद कम मुलाक़ात की इजाज़त दिया करते थे.1857की जंग ए आज़ादी की शुरुआत में अलीगढ़ शहर अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण था और अंग्रेजों और सेना की 9 वीं रेजिमेंट का घर भी था.

यहां सेना की चार कंपनियां रहती थीं.20 मई, 1857 को एक बेकसूर ब्राह्मण सैनिक को फांसी दिए जाने के बाद रेजिमेंट ने बगावत कर दी.अंग्रेज शहर छोड़कर भाग गए.पूरे शहर पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो गया.कब्जे के बाद पंचायत के जरिये से कयादत पर गौर ओ फिक्र किया गया.

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अवाम ने नेतृत्व की व्यवस्था अलीगढ़ जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल जलील इसराइली को सौंप दी.लगभग दो महीने तक आपने अलीगढ़ शहर को अच्छे से संभाला.अलीगढ़ के पास ही मोजूद मडराक नामक जगह पर मौजूद ब्रिटिश अधिकारी अलीगढ़ शहर पर फिर से कब्जा करने की तैयारी कर रहे थे.

वहीं अलीगढ़ की जनता भी जिहाद की तैयारी करने लगी थी.20जून, 1857को, मौलाना अब्दुल जलील इसराइली ने जामा मस्जिद से एक फतवा जारी किया कि जो भी मुसलमान एकगौरे सिपाही को मारता है,वह एक मासूम बच्चे की तरह जन्नत में दाखिल होगा.उसके सभी गुनाहों को माफ कर दिया जाएगा.

इससे अवाम में अंग्रेजों के खिलाफ जोश ओ खरोश फैल गया.मौलाना अब्दुल जलील के मानने वालों में खासकर मेवाती मुसलमान बड़ी संख्या में उनके अनुयायी थे.मेवाती नेता इलाही बख्श एक साहसी और ईमानदार नेता थे.2जुलाई 1857को अलीगढ़ के लगभग 1500मुजाहिदीन एकत्र हुए.मडराक पहुंचे.जहां ब्रिटिश अधिकारी ठहरे हुए थे और लड़े थे.

इस दौरान लगभग 25मुजाहिद शहीद हुए .उससे अधिक संख्या में ब्रिटिश सैनिक मारे गए.जब इस जंग की खबर पहुंची तो ग्वालियर के सालार ने बगावत कर दी.शुक्रवार, 3जुलाई, 1857को सभी अंग्रेज अधिकारी आगरा गए.अलीगढ़ को अंग्रेजों ने खाली कर दिया.

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अलीगढ़ के नवाब वलीदाद खान के नियंत्रण में आ गया.उन्होने 28 जुलाई 1857 को गौस मुहम्मद को अपना डिप्टी बनाकर अलीगढ़ भेजा.अगस्त के तीसरे हफ़्ते में अंग्रेज़ फौज ने इंकलाब ए अलीगढ़ को कुचलने की योजना बनाई.20अगस्त, 1857को, अंग्रेज़ मेजर मोमन्ड गुमरमी की कयादत में अंग्रेज फौज ने आगरा से रवाना होकर 2 4अगस्त, 1857 को अलीगढ़ पर हमला किया.

इस हमले को हाथरस में अंजाम दिया था.वहाँ चाह- हज्जाम नामक जगह अँग्रेजी फौज ने तोप से गोले दागे.उस वक्त मौलाना अब्दुल जलील इसराईली, गौस मोहम्मद पिसर इज़्ज़त अली और मोहम्मड युसुफ़ रामपुर के पठानों को अपने साथ ले कर अंग्रेजी तोप तक जा पहुँचे.तोप पर कब्जा कर लिया.

ये देख कर अंग्रेजी सेना भाग खड़ी हुई.भीषण लड़ाई हुई. मुजाहिदीन अच्छी तरह से लड़े.मौलाना अब्दुल जलील इसराइली गोरों से इस तरह से कि अंग्रेज सेना हैरान रह गई.वो जिस तरह वार करते अंग्रेजी सेना कांपती उठती.अकेले मौलाना अब्दुल जलील इसराइली ने बीस से पच्चीस अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था.

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आखिर में लड़ते-लड़ते उन्होने अपने तिहत्तर साथियों के साथ शहादत का प्याला पी लिया.जिसमें मौलवी मुजफ्फर अली भी शामिल थे.इन सभी शहीदों को अलीगढ़ किले के ऊपर बनी जामिया मस्जिद में लाया गया.वहीं दफनाया गया.आज भी इन सभी शहीदों की कब्रें अलीगढ़ की जामा मस्जिद के उत्तरी दरवाज़े के बहुत करीब मौजूद हैं.

आज भले ही महान आजादी के नायक मौलाना जलील इसराइली हमारे बीच नहीं हैं,लेकिन इतिहास में उनकी कुर्बानी को भुलाया नही जा सकता.उन्हें किताब के कुछ पन्नों तक गुमनाम के तौर पर नहीं छोड़ा जा सकता.

(स्रोत: मौलवी ज़काउल्लाह की किताब "तारीख ए उरूज इंग्लिशया और मुहम्मद मियां की किताब "शानदार माज़ी")

अनुसंधान: प्रोफेसर आबिदा समीउद्दीन, अलीगढ़.

प्रस्तुत: अंजुमन बनी इसराइल अलीगढ़.