फरहान इसराइली / जयपुर
क्या आप जानते हैं कि हमारी आजादी का पहला तिरंगा, जो 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर फहराया गया था, राजस्थान के दौसा जिले में तैयार हुआ था? यह जिला राजधानी जयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है. माना जाता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी तिरंगे को लाल किले पर फहराया था.
दौसा खादी समिति के सैकड़ों बुनकर आज भी तिरंगे का कपड़ा शान से बुनते हैं.
स्वतंत्रता सेनानी देशपाण्डे और तिरंगा
आलूदा गांव में रहने वाले सैकड़ों बुनकर परिवार महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर चरखा कातते थे. इन्हीं बुनकरों ने तिरंगे का कपड़ा तैयार किया, जिसे स्वतंत्रता सेनानी देशपाण्डे दिल्ली लेकर गए. दौसा के आलूदा और जयपुर के गोविन्दगढ़ से तिरंगे का कपड़ा दिल्ली भेजा गया था, लेकिन माना जाता है कि आजादी का पहला तिरंगा दौसा का बना हुआ था.
दौसा और जयपुर से गए तिरंगे
आजादी से पहले चरखा संघ के संचालक देशपांडे ने आलूदा गांव के चौथमल बुनकर से तिरंगे का कपड़ा तैयार करवाया और उसे दिल्ली लेकर गए. चौथमल ने लगभग 2 महीने में इस कपड़े को तैयार किया था, जिस पर टाट साहब ने तिरंगा रंगा था. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर फहराया गया तिरंगा दौसा से था या गोविन्दगढ़ से.
आजादी के बाद का दौसा
1967 में दौसा खादी की स्थापना के बाद से बनेठा और जसोदा गांव में तिरंगे का कपड़ा तैयार किया जा रहा है. इसे प्रोसेसिंग के लिए मुंबई भेजा जाता है और फिर बाजार में वितरित किया जाता है. कई प्रयासों के बावजूद, फ्लोराइड युक्त पानी के कारण दौसा में प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित नहीं हो सकी.
अन्य स्थानों पर भी बनता है तिरंगा
देश के अन्य हिस्सों जैसे मराठवाड़ा, हुगली, बाराबंकी और ग्वालियर में भी तिरंगे का कपड़ा तैयार किया जाता है. इनमें से मराठवाड़ा और हुगली में कपड़ा बनाने और प्रोसेसिंग की पूरी प्रक्रिया की जाती है, जबकि दौसा, ग्वालियर, और बाराबंकी में तैयार कपड़े को प्रोसेसिंग के लिए मुंबई भेजा जाता है.
दौसा में तिरंगे की बुनाई आज भी जारी
हालांकि तिरंगे के कपड़े को बनाने वाले बुनकरों को आर्थिक लाभ कम ही मिलता है, लेकिन देश के गौरव से जुड़ा यह काम उन्हें गर्वित करता है. आज भी जसोता और बनेठा गांव के कुछ बुनकर तिरंगे का कपड़ा बुनते हैं. इलेक्ट्रिक चरखों के आने के बाद दौसा खादी समिति भी तिरंगे का कपड़ा तैयार करती है.
समिति साल में 10 हजार तिरंगे बनवाती है
40 साल से आलूदा में झंडे का कपड़ा नहीं बनाया जा रहा.अब भी वहां 4-5 परिवार खादी के कपड़े बनाते हैं. झंडे का कपड़ा बनेठा ग्राम के 14 बुनकर परिवार तैयार कर रहे हैं. क्षेत्रीय खादी समिति द्वारा बनेठा के बुनकरों की बनाई खादी से मुंबई में तिरंगा बनवाया जाता है. यह बीएसआई स्टैंडर्ड व आईएसआई मार्क का है.
समिति द्वारा एक साल में करीब 10 हजार तिरंगे बनवाए जा रहे हैं. क्षेत्रीय खादी एवं ग्रामोद्योग समिति के मंत्री बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों से खादी की डिमांड कम होने लगी है. बाजार में अन्य वैराइटी के कपड़े बिकने लगे हैं, जो खादी के मुकाबले काफी सस्ते होते हैं.
कभी 200 परिवार खादी के कपड़े बुनते थे. अब महज 4-5 परिवार हैं, जो खादी समिति द्वारा अपनी आजीविका चला रहे हैं. शंभू दयाल के पुत्र जगदीश प्रसाद ने बताया कि कुछ साल पहले गांव के स्कूल में हुए एक कार्यक्रम में बुनकरों को 500 रुपए नकद और प्रतीक चिन्ह मिला था.
इस गांव में आखरी बार खादी तिरंगा 40 साल पहले बनाया गया था. अब यहां 60 वर्षीय चिरंजीलाल महावर के घर में ही खादी बुनने की मशीन बची है.