सियाल खान: भारतीय गानों का दिवाना एक पाकिस्तानी रबाब वादक

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
 सियाल खान: भारतीय गानों का दिवाना एक पाकिस्तानी रबाब वादक
सियाल खान: भारतीय गानों का दिवाना एक पाकिस्तानी रबाब वादक

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
 
पाकिस्तान के किसी विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र का कोई विद्यार्थी बॉलीवुड गानों और भारत में जन्मे किसी वाद्य यंत्र का दिवाना हो सकता है, सोचकर ही अटपटा सा लगता है. मगर यह सौ फीसदी सच है और इस संगीत प्रेमी का नाम है-सियाल खान.

इन दिनों सियाल खान बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान की फिल्म ‘फना’ के गाने ‘मेरे हाथ में’ को लेकर सोशल मीडिया के संसनी बने हुए हैं.आमिर की फिल्म फना 2006 में रिलीज हुई थी और ‘मेरे हाथ में’ गाने को स्वर दिया था सोनू निगम और सुनिधि चौहान ने.
 

फिल्म में आमिर और काजोल मुख्य भूमिका में थे.  हालांकि यह गाना और फिल्म अपने जमाने के हिट हैं, पर इसमें काम करने वालों और इस गाने को स्वर देने वालांे ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि 16 साल बाद कोई पाकिस्तानी संगीत प्रेमी नए सिरे से इसके प्रति लोगों में दिवानगी पैदा कर देेगा.

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सुरमई वादियों और सुनसान जंगलों में  रबाब पर भारतीय गाने के धुन छेड़ते
 
जैसा कि सियाल खान के फेसबुक और यूट्यूब चैनल से पता चला है, वह पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के ऊपरी दीर जिले के रहने वाले हैं और  पेशावर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के छात्र हैं.
 
वह पाकिस्तान ही नहीं भारत और इससे लगते अफगानिस्तान, ईरान के भी सबसे युवा रबाब वादक हैं. भारत के नजरिए से देखा जाए तो इनकी अच्छी बात यह है कि यह भारतीय गानों के घंघोर दिवाने हैं.
 
सुरमई वादियों और सुनसान जंगलों मंे जब रबाब पर भारतीय गाने के धुन छेड़ते हैं तो जैसे रूह में उतरते चले जाते हैं. इनके फैन्स की संख्या भारत में भी बहुतेरी है. इनके सोशल मीडिया प्लेट फॉर्म इंस्टाग्राम पर 16.1 और ट्विटर पर 18.8 हजार फॉलोवर्स हैं.
 
सियाल खान ने 14 जून को जब इंस्टाग्राम पर रबाब के धुन पर ‘मेरे हाथ में’ पोस्ट किया तो एक झटके में उनके चाहने वालों की बाढ आ गई. उन्हांेने वीडियो का कैप्शन गाने के बोल को ही दिया.
 
रबाब पर इस धुन को सुनकर आप अलग ही दुनिया में खोे जाएंगे. इस गाने के अलावा पाकिस्तानी कलाकार ने रबाब पर बहुतेरे भारतीय गाने बजाए हैं, जिसे उनके इंस्टाग्राम, ट्विटर एकाउंट और यूट्यूब चैनल पर देख-सुन जा सकता है.
 
इंस्टाग्राम पर ‘मेरे हाथ में’ पोस्ट किए जाने के बाद से अब तक 25,000 से ज्यादा बार लोग देख चुके हैं. पोस्ट पर लोगों के ढेर सारे कमेंट्स भी आ रहे हैं. उनके कुछ फॉलोवर्स को गाने के धुन के साथ वीडियो की पृष्ठभूमि भी बहुत पसंद आई है. यूट्यूब चौनल पर भी इसके लिए ढेर सारी सराहनात्मक टिप्पणियां मिल रही हैं.
एक ने लिखा, “यह आत्मा में गोता लगाने जैसा है.इतना सुखदायक और आराम. आप प्रतिभाशाली से परे हैं.एक अन्य ने जोड़ा, वाह, यह वास्तव में अच्छा है.‘मेरे हाथ में’ के अलावा सियाल खान के रबाब पर बजाए गाने गुलाबी आंखें, तुझे देखा तो ये जाना सनम, कोक स्टूडियो की ‘पसूरी’ आदि भी लोगों की पहली पसंद में शामिल है.
 
चूंकि सियाल खान बदहाल आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं, इस वजह से 2015 से पहले तक उनमें रबाब वादन को लेकर खास दिलचस्पी नहीं थी. मगर बाद में उन्हांेने इसे ही अपने रोजगार और करियर का जरिया बना लिया. पढ़ाई के साथ वह विलुप्त हो गए वाद्य यंत्र रबाब को नए सिरे से लोकप्रियता दिलाने में जुटे हुए हैं.
 
क्या है रबाब ?

रबाब को चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास भारतीय शास्त्रीय संगीत से परिचित कराया गया था. यह सोलहवीं शताब्दी में प्रसिद्धि के चरम पर था. अठारहवीं शताब्दी तक रुद्र वीणा के साथ सबसे लोकप्रिय स्ट्रिंग वाद्य यंत्र के रूप में जाना जाता था.
 
मगर 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में सुरसिंगार और सुरबहार के उद्भव के साथ रबाब और रुद्र वीणा हाशिए पर धकेल दिए गए. बीसवीं शताब्दी में सरोद और सितार के उद्भव और लोकप्रियता के बाद तो जैसे दोनों ही वाद्य यंत्र विलुप्त से हो गए.
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अल-फराबी (872-950 ईस्वी) के किताब-अल-मुसिकी अल कबीर में रबाब नामक संगीत के वाद्य यंत्र का सबसे पहला विवरण मिलता है. अल-फराबी का कहना है कि यह रबाब हुरासन के तंबूर के समान है,
 
एक छोटे से उभरे हुए शरीर के साथ एक लंबी गर्दन वाली ल्यूट, फिंगरबोर्ड पर कई फ्रेट और एक ही मोटाई के दो तार, जिन्हें एक पल्ट्रम के माध्यम से बजाया जाता है.  पश्चिमी देशों में पहुंचने पर यही छोटे आकार का वायलिन बन गया. इस फारसी और अरबी रबाब की विशेषताएं भारतीय सारंगी से काफी मिलती-जुलती हैं.
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एक और रबाब है जिसे अफगानी रबाब या काबुली रबाब कहा जाता है. इसमें छह से सात तार होते हैं. अफगानी रबाब आज भी कश्मीर में प्रचलित है. अफगानी रबाब को छोड़कर भारत के बाहर बजाए जाने वाले अन्य सभी रबाब झुके हुए होते हैं.
 
फारसी और अफगानी रबाबों के साथ इन चार वाद्ययंत्रों (तीन रबाब और सुरसिंगार) की अंतिम परिणति भारतीय सरोद है, जो उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय संगीत क्षितिज पर प्रकट हुई और न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में प्रमुख संगीत वाद्ययंत्रों में शुमार हो गई है.
 
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गुलफाम अहमदः भारतीय रबाब वादक ने अफगानों को सिखाया संगीत


मौजूदा समय में भारत में सबसे बड़ा रबाब वादक नामपद्मश्री 66 वर्षीय उस्ताद गुलफाम अहमद का आता है. अब देश के गिने-चुने ही रबाब वादक हैं.अधिकांश इससे मिलते-जुलते वाद्ययंत्र सरोद बजाते हैं.
 
गुलफाम अहमद मूल रूप से उत्तरप्रदेश निवासी हैं. 2001 से रबाब और सरोद बजा रहे हैं. कई पीढ़ियों पहले उनका परिवार अफगानिस्तान से आकर भारत में बस गया था. तब से वो यहीं रह रहे हैं. पांच साल वह अफगानिस्तान में रहे. सरकार की ओर से उन्हंे अफगानी बच्चों को रबाब सिखाने के लिए भेजा गया था.
 
उन्होंने बताया कि, मैंने बहुत काम किया. अफगानी बच्चों को रबाब बजाना सिखाया. साथ ही छात्र भी बहुत बनाए. उनके दो इंस्ट्रूमेंट सरोद और रबाब दिलो-जान से पसंद हैं. यह उनके खानदान के लोग बजाते चले आ रहे हैं. उनके खानदान में सरोद से पहले रबाब सीखाया जाता है.
 
उन्होंने पंजाब में रबाब का विशेष तौर से विस्तार किया है. वह कहते हैं यह गुरु नानक साहब से जुड़ा हुआ साज है. पंजाब में बहुत कम लोग रबाब बजाना जानते हैं.उन्होंने बताया कि, 2001 में पंजाब में एक कार्यक्रम में हिंदुस्तान के सभी मशहूर कलाकार बैठे हुए थे.
 
उस दौरान मैंने करीब 1 घण्टे रबाब बजाया. रबाब बजाने के बाद ही मेरी कई हस्तियों ने तारीफ की, जिसे सुन हैरान रह गया.एक साल के बाद ही अहमदाबाद जाना हुआ. उस दौरान एक जगह पर किशन महाराज और हिदायत खां बैठे हुए थे. किशन महाराज ने मुझसे कहा कि, रबाब का मैदान खाली है, डटे रहना. तब से मैं रबाब बजाने को ज्यादा तरजीह देता हूं.
 
गुलफाम अहमद के मुताबिक, 2005 के दौरान जालंधर में एक जगह पर कार्यक्रम हुआ, जहां 131 साल बाद रबाब बजाया गया. उसके बाद कभी नहीं रुका. रबाब सुनने के बाद मेरे पास कई लोग सीखने की इच्छा लेकर पहुंचे. लुधियाना की एक यूनिवर्सिटी में बच्चों को रबाब सिखाने की शुरूआत की.
 
2009 में भारत सरकार ने बच्चों को रबाब सिखाने के लिए मुझे अफगानिस्तान के काबुल भेजा और करीब 175 बच्चों को मैंने सिखाया. रबाब के साथ उन्हें हिंदी भी पढ़ाता था. 5 सालों तक काबुल में रहा. जो राजदूत आते वह मुझे वापस भारत आने नहीं देते.
 
गुलफाम भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों पर भी अपनी राय रखते हुए कहते हैं कि, अफगानिस्तान के लोग जितना अपने लोगों से प्रेम नहीं करते उतना भारतीय लोगों से करते हैं. हर साल हमारे यहां अफगानिस्तान से बहुत लोग आया करते हैं. जिनमें डॉक्टर, नर्स और टीचर्स आदि शामिल हैं.
 
गुलफाम को लिबास से भी बेहद लगाव है. वह कुर्ते के ऊपर एक अफगानी सदरी और टोपी पहनते हैं. उन्होंने कहा कि, मेरे पूर्वज अफगानिस्तान से आए थे, इसलिए मैं अपना लिबास भी उसी तरह रखता हूं. मैं रबाब बजाने के दौरान भी यही  पहना करता हूं.उन्होंने बताया कि, पिता की ख्वाइश थी कि मैं संगीतकार ही बनूं. लेकिन मैं फौज में जाना चाहता था.
 
कोरोना काल के दौरान गुलफाम हर दिन 6 घंटे से भी ज्यादा रबाब का रियाज करते थे. उनके अनुसार, रबाब को सीखना है तो हर दिन 5 से 6 घंटे देने होंगे.
 
क्या है सरोद ?  

शास्त्रीय संगीत की दुनिया में इनका महत्वपूर्ण स्थान है. सरोद जो भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण वाद्य यंत्र है, अपनी मनमोहक गहरी और ध्यानपूर्ण ध्वनि के लिए प्रसिद्ध है. सरोद वादकों ने विदेशों में भारत की समृद्ध संगीत संस्कृति की विरासत का प्रतिनिधित्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
 
सरोद बजाने की तकनीक इस यंत्र के डिजाइन के आधार पर भिन्न होती है. आमतौर पर इस वाद्य यंत्र में 17 से 25 तार होते हैं. बाद में, एक प्रसिद्ध भारतीय सरोद वादक द्वारा इसे सरल रूप देने के लिए इस वाद्य यंत्र की संरचना को संशोधित किया.
 
इस सरोद वादक ने स्वर संगीत के आधार पर सरोद वादन की अपनी नवीन तकनीक विकसित की है. सरोद के एक अन्य डिजाइन में आठ मुख्य तार और दो चिकारी तार होते हैं और पूरा वाद्य अन्य प्रकार के सरोद से लंबा होता है. सरोद के इस विशेष डिजाइन के निर्माता भारत के एक प्रमुख सरोद वादक हैं.
 
वो सरोद वादक जो रबाब पर हाथ आजमाते रहे
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अमजद अली खान
 
(संगीतकार)
जन्मतिथिः 9 अक्टूबर,1945
सूर्य राशिः तुला
जन्मस्थानः ग्वालियर

महान सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान का जन्म ग्वालियर में एक दरबारी संगीतकार के घर हुआ था. उन्होंने 6 साल की उम्र में अपना पहला गायन किया. बाद में उन्होंने अमेरिका और अन्य देशों में प्रदर्शन के साथ सरोद को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया. पद्म विभूषण विजेता के दो बेटे भी शास्त्रीय संगीतकार हैं.
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अली अकबर खान

(संगीतकार)
जन्मतिथिः 14 अप्रैल, 1922
सूर्य राशिः मेष
जन्मस्थानः कोमिला, वर्तमान बांग्लादेश (तब पूर्वी बंगाल) में
मृत्युः 18 जून, 2009
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अलाउद्दीन खान

(संगीतकार, संगीतकार, संगीत शिक्षक)
जन्मतिथिः1862 ई
जन्मस्थानः ब्राह्मणबरिया जिला
मृत्यु 6 सितंबर, 1972

अलाउद्दीन खान एक भारतीय बहु-वादक और संगीतकार थे जिन्हें सरोद वादक के रूप में सबसे ज्यादा याद किया जाता है. वह भारतीय शास्त्रीय संगीत में 20वीं सदी के सबसे उल्लेखनीय संगीत शिक्षकों में से एक थे.
 
अलाउद्दीन खान भारतीय संगीत में उनके अपार योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया.