जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
कोलकाता का हिंदी रंगमंच लगातार सूना होता जा रहा है. जानी-मानी रंगकर्मी संचयिता भट्टाचार्य आलम की हालिया मौत ने यह सवाल और भी गहरा दिया है. पिछले दो-तीन सालों में कोलकाता में हिंदी थिएटर से जुड़े अनेक शख्सियत गुजर गए. कोरोना के समय सबसे पहले मशहूर रंगकर्मी और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त उषा गांगुली गईं, फिर सूर्यकांत तिवारी, उसके बाद विमल लाठ, फिर पल्लवी मेहता, फिर एसएम अजहर आलम, उसके बाद महमूद आलम और अभी-अभी महमूद (आलम) भाई की पत्नी जानी-मानी रंगकर्मी संचयिता भट्टाचार्य आलम भी चल बसीं.
बहुत काबिल रंग-अभिनेत्री थीं संचयिता भट्टाचार्य आलम
कोलकाता में थिएटर की दुनिया में संचयिता भट्टाचार्य आलम का अच्छा-खासा नाम था. थिएटर से जुड़ने से पहले संचयिता 'इंटरनेशनल रिलेशंस' में फर्स्ट क्लास फर्स्ट थीं। उन्होंने बीए और एमए दोनों विषयों की पढ़ाई कोलकाता के यादवपुर यूनिवर्सिटी से की थीं. इससे पहले वे दिल्ली में थीं और दिल्ली में स्कूली पढ़ाई के दौरान संचयिता ने खूब अंग्रेजी थिएटर किया था. 'द नाइट्स ऑफ जनवरी 16' और 'क्राइम्स ऑफ द हार्ट' इनमें से प्रमुख हैं. वर्ष 1981 में जब संचयिता कलकत्ता लौटीं, लाइट और सेट डिजाइन के साथ-साथ स्टेजक्राफ्ट में दिलचस्पी लेने लगीं.
घर का पूरा माहौल कलाकारी वाला था
संचयिता भट्टाचार्य आलम के घर का पूरा माहौल कलाकारी वाला था. पिता पेंटर थे, तो उनके काका मूर्तिशिल्पी ! इस तरह, ललित कला यानी फाइन और विजुअल आर्ट्स की तरफ संचयिता झुकती चली गईं. हिंदी थिएटर करने का मौका दिया था श्यामानंद जालान ने कोलकाता में हिंदी थिएटर करने वालों में दिवंगत श्यामानंद जालान का तब बड़ा नाम था. वे संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता थे. उनकी नाट्य संस्था 'पदातिक' को तब देशभर के लोग जानते थे। एक दफा संचयिता भट्टाचार्य का कोई अंग्रेजी नाटक श्यामानंद जालान देखने गए और संचयिता भट्टाचार्य के अभिनय को देखकर इतना मुग्ध हुए कि संचयिता भट्टाचार्य से कहा -'तुम मेरे 'पदातिक' नाट्य संस्था से जुड़ जाओ.' और इस तरह कलकत्ता में हिंदी/हिंदुस्तानी थिएटर से संचयिता भट्टाचार्य का जुड़ना हुआ.
महमूद आलम से 'पदातिक' में हुई थीं मुलाकात
वर्ष 1987 में जब संचयिता भट्टाचार्य 'पदातिक' से जुड़ीं, उस समय महमूद आलम भी 'पदातिक' में थिएटर करते थे। थिएटर करते-करते महमूद आलम और संचयिता भट्टाचार्य में 'अपनापन' बढ़ा और दोनों ने वर्ष 2008 के जनवरी महीने में एक-दूसरे का हाथ थाम लिया. सत्यदेव दुबे, फ्रिट्ज बेनेविट्ज, रोडने मैरियट जैसों के साथ काम किया था संचयिता ने श्यामानंद जालान की 'पदातिक' नाट्य संस्था में रहते हुए संचयिता भट्टाचार्य आलम ने सत्यदेव दुबे जैसे मशहूर रंगकर्मी के साथ नाटकों की बारीकियां सीखीं. बाद के दिनों में फ्रिट्ज बेनेविट्ज (जर्मनी) और रोडने मैरियट (अमेरिका) के साथ भी वे जुड़ीं। अनमोल वेलानी, उषा गांगुली, विनय शर्मा और अपने शौहर महमूद आलम के निर्देशन में ढ़ेर सारा नाटक किया हिंदी, हिंदुस्तानी और अंग्रेजी जुबान में.
अभिनेता कुलभूषण खरबंदा के साथ भी किया नाटक
संचयिता भट्टाचार्य आलम ने अभिनेता कुलभूषण खरबंदा के साथ भी हिंदी नाटक किया. नाम था 'आत्मकथा'. महेश एलकुंचवार लिखित इस नाटक को विनय शर्मा ने डायरेक्ट किया था. इस प्ले में श्यामानंद जालान की पत्नी चेतना जालान भी थीं और संचयिता भट्टाचार्य आलम और अनुभा फतेहपुरिया भी. वर्ष 2012 में हुए इस खूबसूरत नाटक को कोलकाता के लोग अभी भी याद रखे हुए हैं और इसमें संचयिता भट्टाचार्य आलम के 'खूबसूरत अभिनय' को शिद्दत से याद करते हैं.
महमूद आलम के निर्देशन में किया था ज्यादातर नाटक
संचयिता भट्टाचार्य आलम ने ज्यादातर नाटक अपने पति महमूद आलम के निर्देशन में किया था. इनमें से 'सफरनामा', 'द कान्टैक्ट' और 'ईस्ट साइड स्टोरिज' मशहूर नाटक थे. ये दोनों हिंदुस्तानी और अंग्रेजी जुबान में थे। बाद में पति-पत्नी महमूद आलम और संचयिता भट्टाचार्य आलम ने मिलकर एक संस्था बनाई, जिसका नाम था 'जानुस सेंटर फॉर विजुअल एंड परफार्मिंग आर्ट्स.' इस संस्था ने भी हिंदुस्तानी नाटक के लिए अनेक काम किए.
कोरोना से हुई थीं महमूद आलम की मौत
अब संचयिता भट्टाचार्य आलम भी नहीं है. 30 अप्रैल, 2021 में उनके पति महमूद आलम भी कोरोना से गुजर गए थे और अभी-अभी संचयिता भट्टाचार्य आलम भी गुजर गईं। संचयिता जी कुछ दिनों से बीमार चल रही थीं.
रंजित कपूर का 'बारिशवाला' नाटक अभी भी लोगों को याद है
मशहूर रंग निर्देशक रंजित कपूर के 'बारिशवाला' नाटक में संचयिता भट्टाचार्य ने बहुत शानदार अभिनय किया था. इसके अलावा फ्रिट्ज बेनेविट्ज (जर्मनी) निर्देशित और शेक्सपियर लिखित नाटक 'राजा लियर', मोलियर का 'कंजूस का प्यार' और फिर शेक्सपियर लिखित नाटक 'दिल चाहता है' में संचयिता के अभिनय को आज भी चाव से लोग याद करते हैं.
संचयिता का आखिरी हिंदी नाटक था 'मृत्यु घर'
संचयिता भट्टाचार्य आलम का आखिरी हिंदी नाटक था 'मृत्यु घर', जो कुछ दिनों पहले खेला गया था। इस नाटक का निर्देशन मुकुल अहमद ने किया था. उससे पहले विनय शर्मा निर्देशित हिंदी नाटक 'यहां' में वे थीं.
अच्छी खानसामा भी थीं संचयिता भट्टाचार्य आलम
बहुत कम लोगों को मालूम है संचयिता भट्टाचार्य आलम नाटक के अलावा एक अच्छी खानसामा (शेफ) भी थीं। संचयिता ने शेफ की पढ़ाई लंदन से की थीं. उन्हें मिडिल ईस्ट और अफ्रीकी पकवान बनाने की बहुत अच्छी जानकारी थीं. इस बाबत संचयिता की एक मशहूर किताब भी है, जिसका नाम है 'ट्रैवलिंग फ्लैवर'.