भारत में जब भी ऐतिहासिक,सुंदर वास्तुकला से सुसज्जित और प्राचीन मस्जिदों का जिक्र छिड़ता है, घूम-फिर कर बात दिल्ली की जामा मस्जिद, कोलकाता की नाखुदा मस्जिद और हैदराबाद की मक्का मस्जिद तक आकर खत्म हो जाती है. जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं.
देश में ऐसी अनेक सुंदर, ऐतिहासिक और प्राचीन मस्जिदें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को इल्म है. इन मस्जिदों के बारे में बहुत कम लिखा-पढ़ा गया है.
ऐसी ही कुछ मस्जिदों से पाठकों का परिचय कराने के लिए आवाज द वॉयस के मलिक असगर हाशमी ने यहां एक सिलसिला शुरू किया है. इसकी पहली कड़ी के रूप में उत्तर प्रदेश के रायबरेली की आलमगिरी मस्जिद के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्रस्तुत की जा रही हैं.
आलमगिरी मस्जिद की भव्यता किसी अन्य ऐतिहासिक मस्जिद से कम नहीं
आलमगिरी मस्जिद-जैसा कि नाम से जाहिर है. इसे औरंगजेब आलमगीर के शासन के दौरान बनवाया गया है. हालांकि, मस्जिद की वास्तुकला मुगल-पूर्व की प्रतीत होती है.
अगर हम इस मस्जिद के स्थापत्य की तुलना लखनऊ की आलमगिरी मस्जिद, जिसे टीले वाली मस्जिद भी कहा जाता है, से करें तो दोनों ही एक दूसरे से भिन्न हैं.
रायबरेली की आलमगिरी की केंद्रीय मेहराब के ऊपर की संरचना को छोड़कर उनके गुंबद और मीनार अलग-अलग हैं. इस लिए यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि दो मस्जिदों में से कौन ज्यादा पुरानी है.
औरंगजेब आलमगीर ने देश पर लगभग 50 वर्षों तक शासन किया था. इन वर्षों में उन्हांेने अनेक वास्तुकला से परिपूर्ण स्मारकें स्थापित कीं, जो आज भी भव्य आकर्षण का नमूना हैं.
मस्जिद का इतिहास
रायबरेली की आलमगिरी मस्जिद, किला बाजार के कुजियाना किला में स्थित है. मस्जिद तक पहुंचने के लिए चौड़ी सीढ़ियां हैं.इतिहास के जानकारों की मानें तो इस मस्जिद का औरंगजेब ने 1669 ई में निर्माण कराया था. इसका नाम उन्हांेने अपने मानद उपाधि ‘आलमगीर’ के नाम पर रखा था.
मस्जिद की इमारत और मौतें
कहते हैं औरंजेब ने मस्जिद की मीनारें सही तरीके से नहीं बनवाई थीं. उसमंे कुछ नुक्स रह गई थीं, इसलिए 19 वीं सदी में अंग्रेज विद्वान जेम्स प्रिंसेप ने इसका जीर्णोद्धार कराया.अब गुंबद के बराबद दो सिंबॉलिक मीनारें हैं.
बताते हैं कि 1948 में आई बाढ़ के समय एक मीनार के ढह जाने से कई लोगों की मौत हो गई थी. बाद में सरकार ने सुरक्षा कारणों से दूसरी मीनार को गिरा दिया.,
इस्लामी और हिंदू वास्तुकला का मिश्रण
आलमगीर मस्जिद वास्तुशिल्प के लिहाज से इस्लामी और हिंदू वास्तुकला के मिश्रण का नमूना है. मस्जिद में ऊंचे गुंबद और मीनारें हैं. पंचगंगा घाट, जहां मस्जिद स्थित है, यहां पांच धाराएं मिलती हैं. अक्टूबर में पूर्वजों के मार्गदर्शन के निशान के रूप में बांस के डंडे के ऊपर दीपक जलाए जाते हैं.
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