साकिब सलीम
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय सशस्त्र क्रांतिकारियों का अग्रणी समूह था,बाघा जतिन, अरबिंदो घोष, बरिंद्र घोष और अन्य जैसे क्रांतिकारियों के संस्थापक सदस्यों के साथ इस समूह को भारतीय क्रांतिकारियों के बीच 'बम' संस्कृति शुरू करने का श्रेय दिया जाता है.अक्सर माना जाता है कि जुगंतार एक दक्षिणपंथी हिंदू पार्टी थी.उसके कार्यकर्ताओं में कोई मुस्लिम नहीं था.हालाँकि, यह धारणा गलत है.
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को जुगंतार के ज़रिए अरबिंदो घोष ने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया था.सीआईडी रिपोर्ट में यह उल्लेख है कि उनका मदरसा दारुल इरशाद अरबिंदो के गीता स्कूल के मॉडल का अनुसरण कर रहा था,जहाँ बम बनाए जाते थे,क्रांतिकारियों को हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता था.
काजी अहमद हुसैन मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के करीबी सहयोगी थे,जिन्होंने अपना करियर युगांतर के क्रांतिकारियों में से एक के रूप में शुरू किया था.1889 में गया में जन्मे काजी एक छात्र के रूप में कोलकाता की अपनी यात्राओं के दौरान बंगाली क्रांतिकारियों के संपर्क में आए.
उस समय बंगाल सांप्रदायिक आधार पर बंगाल के विभाजन के खिलाफ क्रांतिकारी भावनाओं से उबल रहा था.काजी भी इससे अछूते नहीं रहे.आंदोलन में शामिल हो गए.शाह मुहम्मद उस्मानी ने काजी पर अपने निबंध में लिखा है कि उन्होंने भारत के अन्य हिस्सों से युवाओं की भर्ती की और अन्य क्रांतिकारियों को आग्नेयास्त्रों की तस्करी की.
इसी समय के आसपास काजी की मुलाकात कोलकाता में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से हुई.आज़ाद जुगंतार के साथ मिलकर काम कर रहे थे.वास्तव में, उन्होंने कोलकाता के बाहर क्रांतिकारी आंदोलन को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
कहा जाता है कि एक ही पंख के पक्षी एक साथ रहते थे. काजी और आज़ाद ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने के लिए हाथ मिलाया.भारतीयों के बीच क्रांतिकारी विचारों को फैलाने के लिए एक अख़बार की योजना बनाई गई थी.
आज़ाद को संपादन और लेखन का काम सौंपा गया था, लेकिन राष्ट्रीय पत्रिका के लिए पैसे की ज़रूरत थी.काज़ी, जो एक अमीर परिवार से थे, ने इस महत्वपूर्ण क्रांतिकारी परियोजना को वित्तपोषित किया.
इस प्रकार, 1912 में क्रांतिकारी अख़बार अल-हिलाल का जन्म हुआ.कई साल बाद, जब 1952 में काज़ी को राज्यसभा भेजा गया, तो आलोचकों ने कहा कि आज़ाद ने उनके शुरुआती राजनीतिक आंदोलन के लिए उन्हें पैसे दिए थे.हालाँकि, दोनों ने इस बात से इनकार किया कि आज़ाद ने उनके राज्यसभा चुनाव का कारण क्या था.
अल-हिलाल ने भारत के मुसलमानों में क्रांतिकारी प्रवृत्तियों की नींव रखीथी.इसकी नींव पर, एक क्रांतिकारी शैक्षणिक संस्थान दारुल इरशाद और एक सशस्त्र समूह हिज्बुल्लाह की स्थापना की गईथी.
अल-हिलाल के पाठकों की संख्या जल्द ही 26,000हो गईथी, जो उस समय बहुत बड़ी संख्या थी.और, हिज्बुल्लाह के 1700से अधिक सदस्य थे, जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान करने की शपथ ली थी.
1916 में, आज़ाद को गिरफ्तार कर लिया गया.इन सभी क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकना पड़ा.काजी महात्मा गांधी की अहिंसक राजनीति में शामिल हो गए.वे बिहार में असहयोग और खिलाफत के एक प्रमुख नेता बन गए.उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब 1921 में काजी को गिरफ्तार किया गया तो गया में विरोध में बाजार बंद रहे.
एक अमीर परिवार में जन्मे काजी ने अपनी पैतृक संपत्ति त्याग दीथी. हाथ से बुनी खादी पहनना शुरू कर दियाथा.खुद को महात्मा गांधी को समर्पित कर दियाथा.वह गांधी द्वारा दिए गए 'आदेश' का पालन करते थे.
1931 में, सर अली इमाम जैसे अन्य नेताओं के साथ, काजी ने अलग निर्वाचन क्षेत्र का विरोध करने के लिए लखनऊ में अखिल भारतीय राष्ट्रवादी मुस्लिम सम्मेलन बुलाया.पारित प्रस्ताव में कहा गया, "अलग निर्वाचन क्षेत्र, राष्ट्रवाद के निषेध को दर्शाता है.
राजनीतिक समस्याएं सामाजिक ताकतों का प्रतिबिंब हैं.यदि आप समुदाय के बीच उनकी राजनीति में लोहे की दीवार खड़ी करते हैं, तो आप सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर देते हैं, और यदि आप राजनीतिक अवरोधों का निर्माण करने पर जोर देते हैं, तो दिन-प्रतिदिन का जीवन असहनीय हो जाएगा.राष्ट्रवाद कभी भी विभाजन और मतभेदों से विकसित नहीं हो सकता है."
एक प्रतिबद्ध गांधीवादी काजी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काम करते रहे और राजा महेंद्र प्रताप के साथ उनकी दोस्ती आजीवन बनी रही.काजी अपने अंतिम समय तक हिंदू मुस्लिम एकता और अछूत जातियों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध रहे.उनका मानना था कि सच्ची आज़ादी तभी मिलेगी जब भारत में लोग शांति और सामाजिक और आर्थिक समानता के साथ रहेंगे.