हुनरबाजः पिता की मार खाकर मोहम्मद दिलशाद बन गए अवार्डी नक्काश

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-02-2024
Mohammad Dilshad became awardee wood artisan after being beaten by his father
Mohammad Dilshad became awardee wood artisan after being beaten by his father

 

दयाराम वशिष्ठ / फरीदाबाद

कठिन परिश्रम वह चाबी है, जो किस्मत का दरवाजा खोल देती है. सच्चे लगन, धैर्य और मेहनत के बल पर ही सफलता संभव है. हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि हम पहले अपने लक्ष्य का चयन करें. इसे हासिल करने के लिए ईमानदारी से इस दिशा में प्रयास करें. इसके बाद इंसान को एक न एक दिन जरूर सफलता मिलेगी. यह कहना है सहारनपुर के रहने वाले वुडन आर्ट में हस्तकला के माहिर 62 वर्षीय अवार्डी मोहम्मद दिलशाद का.

आवाज-द वॉयस से बातचीत करते वक्त मोहम्मद दिलशाद ने अपने बचपन के दिनों की याद तरोताजा करते कहा कि जब उनकी उम्र करीब 8 वर्ष रही होगी, तो वे पढाई को लेकर अक्सर अपने पिता से मार खाते रहे.

पिता चाहते थे कि वे पढ़-लिखकर अच्छा इंसान बनें. चूंकि हस्तकला से लकड़ी पर बेहरत डिजाइन बनाना उनका पुस्तैनी काम रहा है, इसलिए उनमें पिता से मार खाने के बावजूद, पुस्तैनी काम में जुटे कारीगरों से कारीगरी सीखने का जज्बा मन में था.

हालांकि लकड़ी पर डिजाइन बनाते वक्त हथौडे से पंच करते वक्त चोट लग जाने से वे कई बार मायूस होकर काम छोड देते थे, लेकिन फिर से वह अपने इसी काम में रूचि दिखाते लग जाते.

आखिरकार एक दिन उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें वुडन आर्ट में बेहतर शिल्पकार के अवार्ड से नवाजा गया, तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. उनके पांच बेटे हैं, जो इसी हस्तशिल्प में देश का गौरव बढा रहे हैं.

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परिवार के सभी लोग मिलकर करते हैं काम

उनके इस काम में परिवार के सभी लोग मिलकर हाथ बंटाते हैं. उनके पांच बेटे हैं, जो इसी काम से जुडे हैं. उनकी इस कला को आगे बढाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. उनके दो बेटे नेशनल अवार्ड मिल चुके हैं. एक स्टेट अवार्ड व चौथे बेटे को भी स्टेट अवार्ड मिल चुका है. वह काम के साथ साथ युवाओं को काम भी सिखाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

बेहतर शिल्पकार कर सकता है अच्छी कमाई

मोहम्मद दिलशाद का मानना है कि जो बेहतर शिल्पकार होगा, वह इस काम में अच्छी कमाई कर सकता है. लकड़ी पर बेहतर डिजाइन उकेरेने से उसके रेट अच्छे मिल जाते हैं, जबकि कुछ लोग कला को ज्यादा नहीं दिखा पाते, ऐसे में उसके रेट भी कम मिल पाते हैं.

उनका मानना है कि अगर डिजाइन बेहतर होगा, तो सभी को पसंद आएगा. बेहतरीन डिजाइन के बॉक्स या लकड़ी के अन्य सामान हाथों हाथ बिक जाते हैं.

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शिल्पगुरू अवार्ड का लक्ष्य

मोहम्मद दिलशाद का कहना है कि वह उनका अगला लक्ष्य शिल्पगुरू अवार्ड हासिल करने का है. इस दिशा में उन्होंने अपना लक्ष्य बनाया हुआ है. वस्त्र मंत्रालय में इस बार शिल्पगुरू अवार्ड के लिए आवेदन करने जा रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि इस बार वे अपने बेहर कार्य के चलते शिल्पगुरू का अवार्ड लेने में जरूर कामयाब होंगे.

खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा

जब भी वे लकड़ी पर बेहतर डिजाइन उकेरते थे, तो लोग उसकी सराहना करते थे. इसके चलते उन्हें काम भी मिलने लगा. 10 साल तक डिजाइनर उन्हें डिजाइन बताकर उनसे काम करवाते थे.

कई बार वह अपने मन से भी डिजाइन बनाते थे, जो डिजाइनरों के भी खूब मन भाती थी. 18 साल की उम्र होने पर उन्होंने बॉक्स, टेबल, सेंट्रल टेबल व फोटो फ्रेम आदि लकडी पर बेहतर डिजाइन बनाकर बाजार में भेजने शुरू कर दिए.

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सबसे पहले उन्हें दिल्ली के प्रगृति मैदान में आयोजित क्राफ्ट म्यूजियम में भाग लेने का मौका मिला. उस समय जब वे बॉक्स का डिजाइन बना रहे थे, तो म्यूजियम के अधिकारी हर रोज कलाकारों की ओर से तैयार कलाकृतियों का निरीक्षण करने आते थे. उसी समय एक अधिकारी ने उनसे कहा कि वह लकडी के इस संदूक को अवार्ड के लिए भेज दें.

उस समय उन्हें यह पता नहीं होता था कि अवार्ड क्या होता था. 8 महीने तक उन्हें अवार्ड के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. लेकिन जब उन्हें वर्ष 1997 में अवार्ड व 25 हजार रूपये का इनाम मिला, तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा.

देश-विदेश जाने का मिला मौका

हस्तशिल्प को लेकर उन्हें देश विदेश में कई बार जाने का मौका मिला. वर्ष 2000 में जर्मनी में आयोजित प्रदर्शनी के अलावा स्विट्रजलैंड, कैनेडा, इटली, अमेरिका, मोरिसस, वेस्टइंडीज के अलावा कई देशों में जाकर वे अपनी कला को प्रदर्शित कर चुके हैं. सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेला में भी उन्हें हर तीसरे साल पहुंचने का मौका मिलता है.

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पहाडों से आती है बाजार में लकड़ी

इस काम में इस्तेमाल होने वाली लकड़ीअक्सर शीशम की होती है, जो नंपाज, दंहरादून व अन्य पहाडी इलाकों से व्यापारियों के माध्यम से मंडियों तक पहुंचती है. लोकल मंडियों में इन पेडों की कटाई के बाद जरूरत के हिसाब से छोटे छोटे पीस बनाए हुए होते हैं, उन्हें जरूरत के मुताबिक जिस साइज की लकड़ी की जरूरत होती है, वह उन्हें बाजार से उपलब्ध हो जाती है.