मेवात में क़ायम है सांझी विरासत

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 09-08-2023
मेवात ने क़ायम रखी है अपनी सांझी विरासत
मेवात ने क़ायम रखी है अपनी सांझी विरासत

 

-फ़िरदौस ख़ान

आदि अदृश्य नदी सरस्वती के तट पर बसा हरित प्रदेश हरियाणा अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए जाना जाता है. श्रीकृष्ण इस धरा पर आए थे, इसलिए इसका नाम हरियाणा पड़ा. यहीं कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ था. यहीं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. यहीं भीष्म पितामह बाणों की शैया पर लेटे थे और उनकी प्यास बुझाने के लिए अर्जुन ने बाण मारकर धरती से जल की धरा बहायी थी.

इसी स्थान पर ब्रह्म सरोवर बना हुआ है. फ़िरोज़पुर झिरका की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित प्राचीन शिव मन्दिर पांडवों के अज्ञातवास की कहानी बयां करता है. मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां पूजा-अर्चना करके  शिवलिंग की स्थापना की थी. इसलिए यह स्थान तपोभूमि के रूप में विख्यात है.

शिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है. पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य गुड़गांव के ही थे. उन्हीं के नाम पर उनके गांव का नाम पहले गुड़गांव और बाद में गुरुग्राम रखा गया. यहीं उन्होंने एकलव्य से गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांगा था, ताकि वह उनके प्रिय शिष्य अर्जुन का मुक़ाबला न कर सके. यहीं अर्जुन ने चिड़िया की आंख में निशाना लगाया था. कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत के युद्ध की तैयारी भी यहीं हुई थी. यह गीता की पवित्र भूमि है.

यह कहना क़तई ग़लत नहीं होगा कि हरियाणा आज भी अपनी गौरवशाली विरासत को संजोये हुए है. बात देश की आज़ादी के वक़्त की करें, तो तब से लेकर अब तक एक तवील अरसा गुज़र चुका है. लोगों के रहन-सहन, खानपान और पहनावे में बहुत फ़र्क़ आया है. लेकिन इस सबके बावजूद यहां के बाशिन्दों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को बरक़रार रखा है. यहां हरियाणवी के अलावा हिन्दी, उर्दू और पंजाबी भाषाएं बोली जाती हैं.     

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मेवात का गौरवशाली इतिहास

मेवात एक अंचल का नाम है, जो हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमाओं में फैला हुआ है. प्राचीन काल में इस इलाक़े को मत्स्य प्रदेश के नाम से जाना जाता था. इतिहासकार डॉ. कृपाल चन्द्र यादव के मुताबिक़ “मेवात शब्द की उत्पत्ति मत्स्य प्रदेश से हुई है. प्राचीनकाल में और बौद्धकाल में तथा उसके बाद भी लगभग सारे का सारा यह प्रदेश जो अब मेवात कहलाता है, मत्स्य प्रदेश कहलाता था.”

मेवात का गौरवशाली एवं भव्य इतिहास रहा है. वेद और पुराणों में ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है. यह परिक्रमा हरियाणा के होडल से गुज़रती है. इस परिक्रमा में मधुवन, तालवन, बहुलावन, शांतनु कुंड, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, जतीपुरा, डीग, कामवन, बरसाना, नंदगांव, कोकिलायन, जाप, कोटवन, पैगांव, शेरगढ़, चीरभाट, बड़गांव, वृंदावन, लोहवन, गोकुल और मथुरा भी आता है.

इस परिकमा में श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े स्थल, सरोवर, वन, मन्दिर और कुंड आदि का भ्रमण किया जाता है. श्रद्धालु भजन-कीर्तन एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हुए यह परिक्रमा पूरी करते हैं.आज के मेवात ज़िले की स्थापना 4अप्रैल 2005को फ़रीदाबाद और गुड़गांव के कुछ इलाक़ों को मिलाकर की गई. इसमें नूह, तावड़ू, नगीना, फ़िरोज़पुर झिरका, पुन्हाना और हथीन शामिल हैं. यहां मेवाती बोली जाती है, जो हरियाणवी से थोड़ी अलग है.

मेवात के साहित्यकार व इतिहासकार सिद्दीक़ अहमद मेव अपनी किताब ‘मेवात संस्कृति’ में लिखते हैं- “मेवात एक ऐसा क्षेत्र है, जिसकी सीमाएं कभी भी निश्चित तौर पर क़ायम नहीं की गईं. मेवात की सीमाएं समय-समय पर बदलती रही हैं. वर्तमान में मेवात क्षेत्र दिल्ली के दक्षिण में स्थित है.

हरियाणा के ज़िला गुड़गांव की तहसील नूह, फ़िरोज़पुर झिरका व पुन्हाना, ज़िला फ़रीदाबाद की तहसील हथीन व पलवल का कुछ भाग, राजस्थान के ज़िला अलवर की तहसील अलवर, तिजारा, रामगढ़, किशनगढ़, लक्ष्मणगढ़ व गोविन्दगढ़ तथा ज़िला भरतपुर की तहसील पहाड़ी, कामा, डीग एवं नगर मेवात क्षेत्र का भाग है.

इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के ज़िला मथुरा की तहसील कोसी व छाता भी मेवात क्षेत्र के अंतर्गत ही आते हैं. मोटे तौर पर सम्पूर्ण मेवात क्षेत्र उत्तर से दक्षिण तक लगभग 80मील लम्बा तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 75मील चौड़ा है.”     

लोक संगीत

लोक संगीत मेवात की पहचान है. यहां की फ़िज़ाओं में स्वर लहरियां गूंजती हैं. मेवाती घराना हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक प्रसिद्ध घराना है. इसकी बुनियाद वीणा वादक उस्ताद वाहिद ख़ान और उनके छोटे भाई गायक उस्ताद घग्गे नाज़िर ख़ान ने रखी थी. बाद में उनका परिवार भोपाल में बस गया. इस परिवार से जुड़े कुछ लोग जयपुर चले गए.

शास्त्रीय संगीत के मामले में मेवाती घराना बहुत मशहूर है. पंडित मोती राम मेवाती घराने के हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सुप्रसिद्ध गायक थे. उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी. हैदराबाद के आख़िरी निज़ाम उस्मान अली ख़ान उनकी गायकी के मुरीद थे.

साल 1933 में उन्होंने पंडित मोती राम को 'राज संगीतज्ञ' का ख़िताब देने का ऐलान किया. दरबार में समारोह की तैयारियां चल रही थीं. उनके घर में भी ख़ुशी का माहौल था. लेकिन यह सम्मान लेना उनके नसीब में नहीं था. उसी शाम उन्होंने आख़िरी सांस लेते हुए इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया.

उस वक़्त उनके बेटों पंडित मणिराम और पंडित जसराज की उम्र ज़्यादा नहीं थी. पंडित जसराज तो महज़ तीन साल के ही थे. उनके बड़े भाई पंडित मणिराम ने उन्हें भरपूर लाड़-प्यार दिया. दोनों भाइयों ने अपने पिता की संगीत की विरासत को परवान चढ़ाया.

पंडित मणिराम मेवात घराने के विख्यात गायक थे. उनके चारों बच्चे भी अपनी ख़ानदानी विरासत को सींच रहे हैं. उनकी बड़ी बेटी सुलक्षणा पंडित सुप्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका हैं. उनकी छोटी बेटी विजयता पंडित भी अभिनेत्री और पार्श्व गायिका हैं. विजयता पंडित का विवाह संगीतकार आदेश श्रीवास्तव से हुआ था. उनके बेटे जतिन और ललित संगीतकार हैं.

पंडित जसराज शुरू में तबला वादक थे. मगर उन्होंने तबला वादन को छोड़कर गायन शुरू कर दिया, क्योंकि वे भी अपने पिता की तरह ही गायक बनना चाहते थे. उन्होंने प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक वी शांताराम की बेटी मधुरा से विवाह किया. उन्होंने कई फ़िल्मों के लिए गीत गाये. उनका बेटा शारंगदेव फ़िल्मी संगीतकार है और बेटी दुर्गा जसराज टीवी कलाकार है.

पंडित संजीव अभ्यंकर भी इस घराने के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक हैं. साल 1999में उन्हें हिन्दी फ़िल्म गॉडमदर के गीत ‘सुनो रे भाइला’ में सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया था. साल 2008में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें कुमार गंधर्व राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था.

इंडियन आइडल-10 के विजेता सलमान अली भी मेवात घराने से ताल्लुक़ रखते हैं. उन्होंने फ़िल्म सैटेलाइट शंकर के गाने ‘जय हे’ से पार्श्व गायक के रूप में अपनी शुरुआत की थी. उन्होंने फ़िल्म दबंग 3के लिए गाना गाया है. उन्होंने टेलीविज़न धारावाहिक चंद्रगुप्त मौर्य के लिए थीम गीत गाया है.

हरियाणा के लोक नृत्य भी यहां की सांस्कृतिक धरोहर के संवाहक हैं. इनमें धमाल, झूमर, लूर, मंजीरा, खोड़िया, गुग्गा, डमरू, रास, रसिया, डफ़, बीन, सांग, गणगौर प्रजा, फाग, तीज नृत्य, छडी, छठी नृत्य, घोड़ी नृत्य और रतवाई नृत्य शामिल हैं. रतवाई नृत्य मेवात में बहुत लोकप्रिय है.  

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ग़ालिब का मेवात से रिश्ता

उर्दू के महान शायर असदुल्लाह बेग ख़ां यानी मिर्ज़ा ग़ालिब का मेवात से गहरा रिश्ता था. उनका निकाह फ़िरोज़पुर झिरका के नवाब शम्सुद्दीन की बहन उमराव बेग से हुआ था. इसके अलावा उनके यहां से और भी रिश्ते जुड़े हुए थे. फ़िरोज़पुर झिरका के नवाब अहमद बख़्श की बहन का निकाह मिर्ज़ा ग़ालिब के ताये नसरुल्लाह ख़ां से हुआ था. मेवात के लोग पिछले काफ़ी अरसे से मिर्ज़ा ग़ालिब के नाम पर यहां विश्वविद्यालय बनाने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि यहां पर मिर्ज़ा ग़ालिब से जुड़ी यादगार होनी चाहिए. 

1857 की क्रान्ति में मेवात की भूमिका

1857की क्रान्ति में मेवात के लोगों ने भी बढ़ चढ़कर शिरकत की थी. इसमें छह हज़ार से ज़्यादा मेव शहीद हुए थे. इतिहासकार सिद्दीक़ अहमद मेव के मुताबिक़ रायसीना में गुड़गांव के असिस्टेंट कलेक्टर क्लिफ़ोर्ड ने क्रान्ति को दबाने के लिए कई गांवों में आग लगवा दी.

इसके बाद मेव मुस्लिमों ने क्लिफ़ोर्ड समेत 60 अंग्रेज़ सैनिकों को मार डाला. घासेड़ा में आर्टिलरीमैन अली हसन ने भी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी थी. हसन की अगुवाई में ब्रिटिश सेना के साथ लड़ते हुए 150मेवों ने क़ुर्बानी दी. पलवल में तीन हज़ार मेवों ने गांव रुपरका में कैप्टन डूमंड की सैनिक टुकड़ी से दो-दो हाथ किए. इसमें 350मेव शहीद हुए. नूह में सदरुद्दीन नाम के किसान ने मेव मुस्लिमों की रैली की. इसके बाद अंग्रेज़ों ने 52लोगों को हाथियों के सहारे पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी.

अंग्रेज़ वफ़ादारों ने बग़ावत का संदेश भिजवाया. इसके बाद ब्रिटिश सेना को होडल भेजा गया, लेकिन मेवों ने उसे खदेड़ दिया.   

मेवात के नायक

फ़िरोज़शाह तुग़लक ने 1372में राजा नाहर ख़ान को मेवात का आधिपत्य सौंपा. उन्होंने मेवात रियासत की स्थापना की. राजा नाहर ख़ान को कोटला के राजा सोनपर पाल के नाम से भी जाना जाता है. वे ख़ानज़ादा राजपूतों के पूर्वज थे. उनके ख़ानदान ने मेवात पर दो सौ सालों तक हुकूमत की. हसन ख़ां मेवाती इस ख़ानदान के आख़िरी शासक थे.  

अपनी पुस्तक ‘अमर शहीद राजा हसन ख़ां मेवाती’ में इतिहासकार सिद्दीक़ अहमद मेव लिखते हैं- “हसन ख़ां मेवाती सोलहवीं शताब्दी के महान देशभक्त राजा थे. अकबरनामा में उस समय के जिन चार योद्धाओं का वर्णन है, उनमें से हसन ख़ां मेवाती एक हैं. राजा हसन ख़ां मेवाती ने कभी विदेशी अतिक्रमणकारियों के साथ कोई समझौता नहीं किया. उन्होंने देश की ख़ातिर हिन्दू राजाओं का साथ दिया था.

हसन ख़ां मेवाती ने साल 1526में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी का साथ दिया. उन्होंने विदेशी अतिक्रमणकारी बाबर के ख़िलाफ़ अपनी सेना उतार दी. इस युद्ध में बाबर ने मेवाती के बेटे को बंधक बना लिया. इस युद्ध में लोदी हार गए, लेकिन मेवाती नहीं हारे. वे बाबर के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए राणा सांगा के साथ मिल गए.

हसन ख़ां मेवाती वतन परस्ती की मिसाल थे. हसन ख़ां मेवाती भारत माता के वह सच्चे सपूत थे, जिन्होंने बाबर को रोकने के लिए अपने राज्य की क़ुर्बानी तक दे दी. एक दिन हसन ख़ां मेवाती को बाबर का पैग़ाम मिला, उसमें बाबर ने मज़हब की दुहाई देते हुए उनसे मिलने का प्रस्ताव दिया.

बाबर ने इसके साथ उन्हें कई और लालच दिए, लेकिन हसन ख़ां मेवाती ने उनका पैग़ाम ठुकराकर देशभक्ति को चुना. इसके बाद बाबर ने धमकी देना शुरू किया. बाबर ने लिखा कि मैं तुम्हारे बेटे को रिहा कर दूंगा, तुम मुझसे आकर मिलो. इस पर हसन ख़ां मेवाती ने जवाब दिया कि अब हमारी मुलाक़ात युद्ध के मैदान में होगी.

खानवा की लड़ाई मेवाड़ के राणा सांगा और बाबर के बीच हुई. उस समय हसन ख़ां मेवाती की देशभक्ति देशभर में प्रसिद्ध हो चुकी थी. हसन ख़ां मेवाती ने इस लड़ाई में राणा सांगा का साथ दिया. 15मार्च 1527को हसन ख़ां मेवाती ने राणा सांगा के साथ मिलकर खानवा के मैदान में बाबर के साथ जमकर युद्ध किया.

अचानक एक तीर राणा सांगा के सिर पर आ गया और वे हाथी से नीचे गिर पड़े. फिर सेना के पैर उखड़ने लगे, तो सेनापति का झंडा ख़ुद राजा हसन ख़ां मेवाती ने संभाल लिया और बाबर सेना को ललकारते हुए उन पर ज़ोरदार हमला बोल दिया. राजा हसन ख़ां मेवाती के 12हज़ार घुड़सवार सिपाही बाबर की सेना पर टूट पड़े और उन पर भारी पड़ते दिखे, फिर अचानक एक तोप का गोला राजा हसन ख़ां मेवाती के सीने पर आ लगा और मेवाती लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए.” 

राजा हसन ख़ां मेवाती के शहीद होने के बाद मेवात को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया. उनके पूर्वजों ने हरियाणा के दो शहरों की बुनियाद रखी. राजा ख़ानज़ादा बहादुर ख़ान ने साल 1406में बहादुरपुर और राजा ख़ानज़ादा फ़िरोज़ ख़ान ने साल 1419में फ़िरोज़पुर झिरका की स्थापना की. 

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शेख़ शरफ़ुद्दीन बू अली क़लंदर

हरियाणा में साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसालें देखने को मिलती हैं. यहां स्थित दरगाहों पर मुसलमानों से ज़्यादा अन्य मज़हबों के लोग आते हैं. उनके दिलों में सूफ़ी संतों के लिए बहुत अक़ीदत है.पानीपत शहर में शेख़ शरफ़ुद्दीन बू अली क़लंदर का मज़ार है. यह मज़ार एक मक़बरे के अन्दर है, जो साढ़े सात सौ साल से भी ज़्यादा पुराना है.

कहा जाता है कि शेख़ शरफ़ुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने लम्बे अरसे तक पानी में खड़े होकर इबादत की थी. जब उनकी इबादत क़ुबूल हुई, तो उन्हें बू अली का ख़िताब मिला. बू अली क़लंदर के मज़ार के क़रीब ही उनके मुरीद हज़रत मुबारक अली शाह रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार है. यहां दूर-दूर से ज़ायरीन आते हैं. 

चार क़ुतुब दरगाह

हांसी एक ऐसा प्राचीन शहर है, जहां एक ही जगह चार क़ुतुब के मज़ार हैं. इनमें शेख़ क़ुतुब जमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत क़ुतुब बुरहानुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन मुनव्वर रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत क़ुतुब नूरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह शामिल हैं.

पाकिस्तान के पाकपट्टन के हज़रत ख़्वाजा फ़रीरुद्दीन गंजशकर रहमतुल्लाह अलैह यानी बाबा फ़रीद हांसी आए थे और उन्होंने यहां चिल्ला किया था. इस ऐतिहासिक इमारत में मौजूद बाबा फ़रीद का चिल्ला, शेख़ क़ुतुब जमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के वंशजों के छतरीनुमा मक़बरे और बेगमों के मक़बरे तक़रीबन 800साल पुरानी यादों को संजोये हुए हैं. ये अक़ीदत के मर्कज़ हैं.

खान-पान

हरियाणा के लोग बहुत ही सादगी पसंद हैं. इसलिए यहां का खाना भी बहुत ही सादा है. यहां गेहूं, बाजरा और मक्का का ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है. देसी घी, दूध और दही यहां के भोजन के अभिन्न अंग हैं. अब अन्य प्रदेशों के व्यंजनों ने भी यहां अपनी जगह बना ली है. नई पीढ़ी फ़ास्ट फ़ूड की दीवानी है.

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वेशभूषा

हरियाणा के देहाती इलाक़ों में आज भी पारम्परिक वेशभूषा का चलन है. महिलाएं कालरदार क़मीज़, जम्फर और घाघरा पहनती हैं. वे उलटी लाम्मण का घाघरा, कैरी, खारा, लैह, दामण, गुड़लो की लैह, बोरड़ा और चांद तारा   आदि प्रकार के घाघरे पहनती हैं. ओढ़नी के रूप में चून्दड़ी, छयामा, दुकानिया, पीलिया, मौडिया, लहरिया, सोपनी, कंघ और गुमटी आदि ओढ़ती हैं. दुल्हन को डिमाच ओढ़ायी जाती है.           

पुरुष कालरदार क़मीज़ पहनते हैं. वे कुर्ता-धोती और कुर्ता-पायजामा पहनते हैं. सर पर खंडवा बांधते हैं. यह एक प्रकार की पगड़ी है, जो सम्मान का प्रतीक मानी जाती है. वे कमरी यानी बंडी पहनते हैं, जो बिना बाज़ू की एक जैकेट है. वे कंधे पर एक अंगरखा रखते हैं. सर्दियों में वे लोई. सौड़, सौडिया और खेस ओढ़ते हैं.

 व्यवसाय

हरियाणा एक कृषि प्रधान राज्य है. ख़रीफ़ की फ़सल में चावल, मक्का, बाजरा, कपास, गन्ना, मूंगफली और उड़द आदि की खेती की जाती है. रबी की फ़सल में गेहू, मटर, चना, सरसों, मसूर, अरहर और जौ आदि उगाया जाता है. जायद की फ़सल में सब्ज़ियां, तरबूज़, ककड़ी और तंबाक़ू आदि की खेती होती है.

यहां उद्योग-धंधे भी ख़ूब फल-फूल रहे हैं. भारतीय सेना में यहां के लोगों की तादाद बहुत ज़्यादा है. राज्य का शायद ही ऐसा कोई गांव हो, जिसमें से कोई सेना में भर्ती न हुआ हो. खेलों में भी हरियाणा अग्रणी है. अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला भी यहां की शान थी.     

पिछली कुछ दहाइयों में हरियाणा में बहुत बदलाव आया है. यह बदलाव मेवात में भी देखा जा सकता है. पहले यहां की मुस्लिम औरतें हिन्दू महिलाओं की तरह ही घूंघट किया करती थीं, लेकिन अब वे हिजाब पहनने लगी हैं. यहां के मेव मुसलमान हिन्दुओं की तरह अपने गोत्र में शादी-ब्याह के रिश्ते नहीं जोड़ा करते थे. मगर अब ऐसा होने लगा है. पहले लोग शुभ-अशुभ बहुत मानते थे, लेकिन अब उनकी सोच बदल रही है.

दरअसल मेवात के लोग भी वक़्त के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चल रहे हैं. अब बेटों की तरह ही बेटियों को भी अहमियत मिलने लगी है. लोग बेटियों की तालीम को भी ज़रूरी मानने लगे हैं. वे मानने लगे हैं कि एक बेटी दो घरों को शिक्षित करती है.

परिवर्तन प्रकृति का नियम है. बदलाव जहां अच्छा होता है, वहीं कुछ बुरा भी होता है. पहले घर बहुत बड़े-बड़े हुआ करते थे. लोग घरों में मवेशी पालते थे. अब यह चलन कम होता जा रहा है. पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे, लेकिन अब ये टूटने लगे हैं. शहरों में एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं.

ख़ुशनुमा बात यह है कि अनेक उतार-चढ़ाव के बावजूद मेवों ने अपने प्रेम, भाईचारे और आपसी सद्भाव को बनाए रखा है. नूह में हुई हिंसा के बाद जिस तरह वहां के बाशिन्दे अमन क़ायम रखने के लिए आगे आए, यह इस बात की निशानदेही है कि धार्मिक और सामाजिक विभिन्नताओं के बावजूद मेवाती संस्कृति सबकी सांझी है.

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)