मौलाना मजहरुल हक की बातेंः हिंदू-मुस्लिम एकसाथ तैरेंगे और एकसाथ डूबेंगे

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 22-12-2022
मौलाना मजहरुल हक
मौलाना मजहरुल हक

 

मौलाना मजहरुल हक जयंती

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

खुसरो दरिया प्रेम का, सो उल्टी वाकी धार! जो उबरा सो डूब गया, जो डूबा वो पार! खुसरो की इस कालजयी रचना में मोहब्बत का असली सरमाया छिपा है और अपने मुल्क में वतन से मोहब्बत करने वाले एक से बढ़कर एक हुए. मौलाना मजहरुल हक भी उन्हीं में से एक धरती पुत्र हुए, जो वतन की मिट्टी को चूमकर पाक परवरदिगार को सजदा किया करते थे. वे सामाजिक सद्भाव और हिंदू-मुस्लिम यकजहती के बड़े पैरोकार थे. धर्म-जाति से परे हिंदुस्तान का हर दानिशवर उनकी इस पंच लाइन को आज भी याद करता है और सीने से लगाए हुए है, ‘‘चाहे हम हिंदू हों या मुसलमान हम एक ही नाव में हैं, हमें एक साथ तैरना या डूबना चाहिए.’’ आज इसी अजीम शख्यित की यौमे-पैदाइश है और सोशल मीडिया पर उन्हें उनकी खिदमात के लिए खिराजे-अकीदत पेश की जा रही हैं.

मौलाना मजहरुल हक की यौमे-पैदाइश पर लोस्ट मुस्लिम हैरिटेज बिहार ने ट्विटर पर कहा, ‘‘महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, मौलाना मजहरुल हक, हिंदू-मुस्लिम एकता के दृढ़ विश्वासी थे. उनका प्रसिद्ध उद्धरण उनके दृढ़ विश्वास को अभिव्यक्त करता है - ‘‘चाहे हम हिंदू हों या मुसलमान हम एक ही नाव में हैं, हमें एक साथ तैरना या डूबना चाहिए.’’

 

उनकी उपलब्धियों पर मुस्लिम्स ऑफ इंडिया ने कहा, ‘‘मौलाना मजहरुल हक को उनकी जयंती पर याद करते हुए, जो न केवल महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि बीपीसीस पटना विश्वविद्यालय, सदाकत आश्रम और बिहार विद्यापीठ के संस्थापक सदस्य भी थे. वह भी उन नेताओं में से एक थे, जिन्होंने 1912 में बिहार को एक अलग राज्य के रूप में स्थापित किया था.’’

 

 

मोहम्मद राशिद हुसैन ने कहा, ‘‘महान स्वतंत्रता सेनानी, विख्यात समाजसेवी और हिंदू-मुस्लिम एकता के अलमबरदार जनाब मौलाना मजहरुल हक साहब के यौमे पैदाइश पर खिराजे अकीदत पेश करते हैं.  बिहार के साथ पूरे देश के लिए खुद को समर्पित करने वाले मौलाना मजहरुल हक साहब हमेशा याद किए जाएंगे.’’

 

 

संपत शारदा ने कहा, ‘‘भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के एक शिक्षक, वकील, स्वतंत्रता कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी रुमौलाना मजहरुल हक की 156वीं जयंती. श्रद्धांजलि.’’

 

 

मो उमर अशरफ का कहना है, ‘‘1922 में असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया गया था. कई लोगों को जेल में डाल दिया गया और जेल में अत्याचार का सामना करना पड़ा. मौलाना मजहरुल हक ने अप्रैल 1922 में द मदरलैंड का संपादकीय लिखकर अंग्रेजों के खिलाफ विरोध किया. बाद में उन्हें जेल में डाल दिया गया और उनके खिलाफ मुकदमे शुरू हो गए.’’

 

 

मौलाना मजहरुल हक एक शिक्षक, वकील, स्वतंत्रता कार्यकर्ता और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के स्वतंत्रता सेनानी थे. उनका जन्म 22 दिसंबर 1866 को बहपुरा, पटना, बिहार में हुआ था. उन्होंने पटना कॉलेज और कैनिंग कॉलेज, लखनऊ में पढ़ाई की और कानूनी अध्ययन करने के लिए 1888 में इंग्लैंड चले गए. वहां उनका परिचय महात्मा गांधी से हुआ. उन्होंने फरीदपुर, सीवान, बिहार में एक घर का निर्माण किया और उसका नाम आशियाना रखा. राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी सहित कई राष्ट्रवादियों ने इसका दौरा किया था.

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1891 में, वह बैरिस्टर के रूप में भारत लौट आए और न्यायिक सेवाओं में शामिल हो गए. 1896 में, उन्होंने एक वकील के रूप में अभ्यास करना शुरू किया. 1906 में, उन्होंने छपरा छोड़ दिया और पटना में अभ्यास करना शुरू कर दिया और उसी वर्ष उन्हें बिहार कांग्रेस कमेटी का उपाध्यक्ष चुना गया. 1910-11 के बीच उन्हें इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया (ब्रिटिश संसद) के सदस्य के रूप में चुना गया था.

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वह 1916 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग की संधि में सक्रिय थे. वे 1916 में एनी बेसेंट द्वारा शुरू किए गए होम रूल आंदोलन में शामिल हुए और 1917 में चंपारण सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया. चंपारण सत्याग्रह के दौरान अपने घर ‘सिकंदर मंजिल’ पर उन्होंने महात्मा गांधी का अतिथि सत्कार किया.

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1919 के दौरान वे खिलाफत आंदोलन में सक्रिय रहे और 1920 में वे गांधीजी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए. 1921 में, गांधीजी प्रभावित हुए और पटना में ‘सदाकत आश्रम’ (सत्य का निवास) की स्थापना की. उसी आश्रम से, हक ने ‘मातृभूमि’ नामक एक साप्ताहिक पत्रिका शुरू की. उन्होंने 1926 में सक्रिय राजनीति से अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की, लेकिन महात्मा गांधी, मौलाना आजाद और नेहरू जैसे नेताओं ने उन्हें जीवन पर्यन्त नहीं छोड़ा. 2 जनवरी 1930 को उनकी मृत्यु हो गई.

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सीवान में एक आवासीय कॉलोनी का नामकरण ‘मौलाना मजहरुल हक कॉलोनी’ (एमएम कॉलोनी के नाम से मशहूर) उनके नाम पर नामकरण किया गया है. 1981 में भारतीय डाक सेवा द्वारा उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया था और 1998 में उनकी स्मृति में पटना में मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी.

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