खुमार बाराबंकवीः न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 14-09-2022
खुमार बाराबंकवीः न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है
खुमार बाराबंकवीः न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है

 

राकेश चौरासिया

अदब की दुनिया में बाराबंकी को बड़ा मुकाम देने वाले मुहम्मद हैदर खान 15 सितंबर, 1919 को डॉक्टर गुलाम मोहम्मद ‘बहर’ के घर जन्मे और अपनी खास किस्म की शायरी के लिए ‘खुमार बाराबंकवी’ के नाम से मकबूल हुए.

उन्हें उनके दोस्त लोग ‘दुल्लन’ भी कहकर बुलाते थे. खुमार ने 1946 में फिल्म ‘शहंशाह’ के लिए अमर गीत ‘चाह बरबाद करेगी’ लिखकर फिल्मी दुनिया में अपना सिक्का जमाया था, जिसे नौशाद ने संगीत दिया था और उस दौर के मशहूर गायक कुंदन लाल सहगल साहब ने अपनी आवाज से सजाया था. खुमार साहब ने कई फिल्मों में गीत लिखकर उन्हें कामयाब बनाया.

खुमार ने अपने ही शहर के राजकीय हाईस्कूल से दसवीं पास की थी. उसके बाद उन्होंने लखनऊ के इंटर कॉलेज में दाखिला तो लिया, लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा.

दरअसल उनकी रगों में शायरी पेबस्त हो चुकी थी. घर में शेरो-शायरी का ही माहौल रहता. उनके वालिद डॉक्टर गुलाम मोहम्मद ‘बहर’ और उनके चाचा भी अच्छी शायरी रते थे.

बस उनकी सोहबत ने रंग दिखा और 1938 में उनका सफर मुशायरों से शुरू हुआ. बरेली के अपने पहले मुशायरे में उन्होंने महफिल लूट ली, जब उन्होंने पढ़ा, ‘वाकिफ नहीं तुम अपनी निगाहों के असर से, इस राज को पूछो किसी बरबाद नजर से.’ वे जब तरन्नुम में अशआर पढ़ते थे, तो समाईन वाह-वाह कर उठते.

उनकी शायरी को जिगर मुरादाबादी से मुतासिर बताते हैं और वे उनकी तरन्नुम में शेर पढ़ते थे. उन दिनों मुशायरों में मजरूह सुलतानपुरी का बोलबाला था. लेकिन जल्द ही खुमार ने अपना मुकाम हासिल कर लिया और मुशायरों में मजरूह के साथ अक्सर खुमार भी दिखने लगे.

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बाराबंकी में खुमार बाराबंकवी की कब्र


एक बार 1945 में वे मुंबई के एक मुशायरे में बुलाए गए, जहां निर्देशक एआर कारदार और महान संगीतकार नौशाद साहब भी मौजूद थे. ये दोनों साहबान फिल्म ‘शाहजहां’ की तैयारी कर रहे थे.

जाहिर है कि मजरूह सुल्तानपुरी इस फिल्म के लिए गीत लिख रहे थे. लेकिन जब कारदार और नौशाद ने खुमार को सुना, तो उनसे भी एक गीत लिखवाने का मन बनाया. खुमार ने फिर ‘चाह बर्बाद करेगी हमें मालूम न था.’

लिखा. इसके बाद उन्होंने ‘साज और आवाज’, ‘लव एंड गॉड’, ‘हलचल’ आदि फिल्मों के लिए लिखा. फिल्म में ‘बारादरी’ के गाने ‘भुला नहीं देना, जमाना खराब है’ गीत ने उनकी शोहरत में चार चांद लगा दिए. 

 

खुमार के कुछ मशहूर ओ-मारूफ शेर मुलाहिजा कीजिएः


ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही

जज्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही

 

भूले हैं रफ्ता-रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हम

किस्तों में खुदकुशी का मजा हम से पूछिए

वो जान ही गए कि हमें उन से प्यार है

आँखों की मुखबिरी का मजा हम से पूछिए

 

अकेले हैं वो और झुँझला रहे हैं

मेरी याद से जंग फरमा रहे हैं

 

झुँझलाए हैं लजाए हैं फिर मुस्कुराए हैं

किस एहतिमाम से उन्हें हम याद आए हैं

 

गम है न अब खुशी है न उम्मीद है न आस

सब से नजात पाए जमाने गुजर गए

 

खुदा बचाए तिरी मस्त-मस्त आँखों से

फरिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है

 

मोहब्बत को समझना है तो नासेह खुद मोहब्बत कर

किनारे से कभी अंदाजा-ए-तूफाँ नहीं होता

 

मुझे तो उन की इबादत पे रहम आता है

जबीं के साथ जो सज्दे में दिल झुका न सके

 

सुकूँ ही सुकूँ है खुशी ही खुशी है

तेरा गम सलामत मुझे क्या कमी है

 

हुस्न की मेहरबानियाँ इश्क के हक में जहर हैं

हुस्न के इज्तिनाब तक इश्क की जिंदगी समझ

 

कहने को जिंदगी थी बहुत मुख्तसर मगर

कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया

 

क्या हुआ हुस्न है हमसफर या नहीं

इश्क मंजिल ही मंजिल है रस्ता नहीं

 

हवा को बहुत सर-कशी का नशा है

मगर ये न भूले दिया भी दिया है

 

गुजरता है हर शख्स चेहरा छुपाए

कोई राह में आईना रख गया है

 

वो अकेले में भी जो लजाते रहे

हो न हो उन को हम याद आते रहे

 

वो हैं पास और याद आने लगे हैं

मोहब्बत के होश अब ठिकाने लगे हैं

 

उन मस्त मस्त आँखों में आँसू अरे गजब

ये इश्क है तो कहर-ए-खुदा चाहिए मुझे