जश्न-ए-हिंदुस्तानः हिन्दी-उर्दू लेखकों ने मिलकर लड़ी थी आज़ादी की लड़ाई

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 15-08-2021
आजादी का पहला दिन
आजादी का पहला दिन

 

जश्न-ए-हिंदुस्तान । आजादी में हिंदी-उर्दू लेखकों का योगदान    

अरविंद कुमार

आज से हम आज़ादी की 75वीं सालगिरह मनाने का सिलसिला शुरू कर रहे हैं लेकिन क्या आज देश की नई पीढ़ी को मालूम है कि आए दिन जुलूसों में ‘इंकलाब जिंदाबाद’के जो नारे लगते हैं वह नारा किसका दिया हुआ है?यह नारा उर्दू के मशहूर शायर हसरत मोहानी का दिया हुआ है जो जंगे आज़ादी के बड़े लीडर थे. उनकी अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि वे संविधान सभा के सदस्य भी बने थे.

1921में उन्होंने ‘इंक़लाब जिंदाबाद’का नारा दिया था और पूर्ण स्वराज्य की मांग करनेवाले पहले शख्स भी वही थे. आज़ादी की लड़ाई में वह जेल भी गए और जेल के हालात पर पहली किताब इस देश मे उन्होंने ही लिखी थी.

हसरत मोहानी की तरह पटना के शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी ने ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है’जैसी ग़ज़ल लिखकर शहीदों को प्रेरणा दी. रामप्रसाद बिस्मिल ने इसे फांसी के फंदे पर झूलते हुए पढ़कर इस ग़ज़ल को और अमर कर दिया.

अल्लामा इक़बाल ने ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’जैसा गीत लिखा जो आज हर आदमी के जुबान पर चढ़ गया और जलसों में आज भी गाया जाता है.

मशहूर शायर फिराक़ ने भी आज़ादी की लड़ाई में जेल की सज़ा काटी थी तो हिंदी के लेखकों में मैथिलीशरण गुप्त से लेकर माखनलाल चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, रामनरेश त्रिपाठी,  बालकृष्ण शर्मा नवीन, राहुल सांकृत्यायन, रामवृक्ष बेनीपुरी, उग्र, यशपाल, अज्ञेय और रेणु जैसे अनेक लेखक शामिल थे.

आज़ादी की लड़ाई साझी संस्कृति और साझी जुबान की लड़ाई थी. हिंदी उर्दू दो सगी बहनों की तरह आजादी के जंग में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही थी.

उस वक्त के हिंदुस्तानी लेखकों को इस बात का अहसास हो गया था कि जो आज़ादी हमें मिलने जा  रही है, वह न केवल अधूरी है बल्कि वह केवल पॉलिटिकल यानी राजनैतिक है.

फ़ैज़ ने तभी सुबहे आज़ादी नामक नज़्म लिखी थी-

"ये दाग़ दाग़ उजाला ये सबगज़ीदा सहर

वो इंतज़ार था जिसका ये वो सहर तो नहीं है

ये वह सहर तो नहीं जिसकी आरज़ू लेकर

चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं"

फ़ैज़ की यह नज़्म केवल पाकिस्तान पर लागू नहीं हुई  बल्कि वह हिंदुस्तान पर भी लागू हुई. हिंदी और उर्दू के तरक़्क़ीपसन्द लेखकों को यह अहसास हो गया था और वे इसलिए केवल राजनीतिक आज़ादी की बात नहीं कर रहे थे. चाहे प्रेमचन्द हों या मंटों या निराला या दिनकर या राहुल सांकृत्यायन या बेनीपुरी, वे अपनी रचनाओं में आम आदमी की हरतरह के शोषण से मुक्ति का सवाल उठा रहे थे.

‘बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे’फ़ैज़ ने अपनी नज़्म में आज़ादी को लेकर जो आशंका व्यक्त की थी वह जल्द ही उनके मुल्क में सही साबित हो गयी.चार साल के भीतर ही फ़ैज़ को रावलपिंडी साज़िश केस में फंसाकर जेल में डाल दिया गया.

आज पूरा देश आज़ादी की हीरक जयंती का जलसा मना रहा है. यह आजादी हमें लंबे संघर्ष और कुर्बानियों से मिली. बंगाल के नवजागरण और 1857के देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने देश में राष्ट्रीय चेतना की एक नई लहर फूंकी थी. इस लहर को आगे बढ़ाने में स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के अलावा हिंदी-उर्दू के लेखकों का भी योगदान था, जिसे हम कभी नहीं भूल सकते हैं.

फिराक़ साहब तो आईसीएस का इम्तहान पास करने के बाद महात्मा गांधी के आह्वान पर आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े और 18माह नैनी जेल में मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू के साथ रहे.

जोश मलीहाबादी ने कलीम रिसाले के जरिये अंग्रेजों के खिलाफ लेख लिखे. उनका एक मर्सिया ‘हुसैन और इंक़लाब’काफी लोकप्रिय हुआ था. सच पूछा जाए तो हिंदी उर्दू दोनों जुबानों में देशभक्ति का जज़्बा उबाल मार रहा था.इन जुबानों का विकास ही राष्ट्रीय चेतना के विकास के रूप में हुआ है.

1905में माधव राव सप्रे को अपने लेखन के कारण देशद्रोह के मुकदमे का सामना करना पड़ा. 1908में प्रेमचन्द के सोजे वतन कहानी संग्रह को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया क्योंकि उनमें 5देशभक्ति की कहानियां थी.

द्विवेदी युग में मैथिलीशरण गुप्त रूप राष्ट्रीय चेतना को फैलाने वाले प्रमुख कवि के रूप में सामने आते हैं. 1910में जयद्रथ वध 1912में भारत भारती और 1916में किसान लिखकर गुप्त जी ने देशभक्ति की भावना को देश में फैलाया. 9नवम्बर, 1913को गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप अखबार निकालकर ब्रिटिश सरकार की नींद हराम कर दी. मैथिलीशरण गुप्त, प्रेमचन्द और शिवपूजन जैसे लेखकों ने गांधी जी की पुकार पर  सरकारी नौकरी का त्याग किया. 

दिनकर ने अमिताभ नाम से सरकार के विरोध में कविता लिखी तो वह सेंसर होकर छपी. जब उनका पहला संग्रह रेणुका छपा तो अंगेज मजिस्ट्रेट को पता चला कि इसमें सरकार विरोधी कविताएं हैं, तो दिनकर से पूछताछ हुई और कहा गया बिना सरकार से पूछे आपने क्यों छपवाई?फिर उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया.

राष्ट्रीय चेतना और देशभक्ति को फैलाने में उस दौर में सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी, सोहनलाल द्विवेदी, दिनकर तथा शामलाल गुप्त पार्षद की कविताओं ने बड़ा काम किया. झांसी की रानी,झंडा ऊंचा रहे हमारा,कलम आज उनकी जय बोल, पुष्प की अभिलाषाजैसी कविताएं लोगों की जुबान पर चढ़ गईं. झंडा गीत को प्रभात फेरियों में गया जाने लगा.

हिंदी-उर्दू के लेखक इस मायने में सच्चे देशभक्त थे कि लिखने के साथ-साथ वे लड़ाई के मैदान में उतरे और जेल भी गए.