इस्लाम देता है शांति का संदेश

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
इस्लाम देता है शांति का संदेश
इस्लाम देता है शांति का संदेश

 

शगुफ्ता नेमत

इस्लाम और कुरान का संदेश एक ही है-शांति. दुनिया भर में जब आपसी मतभेदों के कारण अशांति का माहौल बना हुआ है, ऐसे में कुरान के संदेश और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं. मुसलमान यदि कुरान के उपदशों का सच्चाई से अनुसरण करे और अपने आचरण से दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करे तो समाज से बहुत हद तक अशांति दूर हो सकती है.

कुरान के सूरज बकरा , आयत 77  में कहा गया है कि जमीन में फसाद (अशांति) फैलाने वालों को अल्लाह पसंद नहीं करता. दूसरी तरफ सूरह कसस, आयत 88में स्पष्ट है कि आखिरत का घर हमने केवल उनके लिए तैयार किया है जो जमीन में अशांति फैलाने का इरादा नहीं रखते. इससे भी पता चलता है कि इस्लाम शांति का संदेश देता है.

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पैगंबर मुहम्मद साहब ने अपने आखिरी हज के अवसर पर कहा था कि मुस्लमान वह है जिसकी जुबान और हाथ से लोग सुरक्षित रहें. इस्लाम अपने दोस्तों से ही नहीं अपितु अपने दुश्मनों से भी इंसाफ करने की पैरवी करता है.कुरान में कहा गया है कि किसी धर्म से तुम इतनी दुश्मनी न करो कि आपसी मामलात में उनके साथ अन्याय कर बैठो.

अल्लाह ने कुरान में कहा कि भलाई और बुराई बराबर नहीं होते .सूरज फूस्सिलत 34,35में उन लोगों को बड़ा सौभाग्य और संयम वाला कहा गया है जो भलाई कर दुश्मनों को अपना प्रिय मित्र बना लेते हैं. इस्लाम युद्ध के दौरान भी शांति का संदेश देता है. तभी तो सूरज अनफाक, आयत 61में कहा गया कि जान-माल की हानि के बाद भी अगर तुम्हारा दुश्मन सुलह चाहता है तो अल्लाह से भरोसा कर ऐसा करना चाहिए.इस्लाम में एक बेगुनाह का खून सारी मानवजाति का खून करने के बराबर है. सूरह मायदा आयत 32में कहा गया है कि जिसने एक इंसान की जान बचाई, उसने मानो सारी मानवजाति को जीवन दान दे दिया.00बुखारी की हदीस है कि युद्ध में भी इस्लाम औरतों और बच्चों पर अत्याचार और उनकी हत्या से मना करता है.

इस्लाम में बिना किसी भेद-भाव के सबके साथ न्याय का उपदेश दिया गया है.  सूरह तौबा, आयत 6 में कहा गया है ,अगर कोई गैर मुस्लिम तुमसे पनाह चाहते तो उसे आश्रय देना चाहिए . मगर सब कुछ जानते समझते भी हम अधिकतर मौकों पर आत्मसंयम नहीं रखते.

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शीघ्र प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते हैं. अक्सर यही शांति भंग करने का कारण बनते हैं. अगर कोई सचमुच इस्लाम का अनुयायी है तो उसे मानवता के बातए पाठ का अनुषरण करना होगा.धर्म कोई भी हो सब शांति तथा प्रेम का संदेश देते हैं. मगर जब हम धर्म में लिखे उपदेशों का पालन अपने हिसाब से करने लगते हैं तो धर्म, अधर्म का रूप ले लेता है.

नोट: लेखिका दिल्ली के एक स्कूल में टीचर हैं.