अफगानिस्ताननामा : लगातार हमले, हर बार मात और सबसे बड़ा नरसंहार

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 11-12-2021
अफगानिस्ताननामा : लगातार हमले, हर बार मात और सबसे बड़ा नरसंहार
अफगानिस्ताननामा : लगातार हमले, हर बार मात और सबसे बड़ा नरसंहार

 

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हली हार के तुरंत बाद ही अहमद शाह ने अपनी फौज को अगले हमले के लिए तैयार करना शुरू कर दिया.लेकिन उसका दूसरा हमला बहुत बड़ा नहीं था.इस बार उसने खुद को सिंधु नदी के आस-पास के इलाकों तक ही सीमित रखा.उसने मुल्तान के मुजफ्फर खान और झंग के अहमद खान को अपने साथ मिला लिया.वह इस इलाके को अपना आधार बनाना चाहता था ताकि आगे चलकर बड़ा हमला किया जा सके.

तीसरे हमले का मौका भी जल्द ही आ गया.पहले हमले में अहमद शाह पंजाब के मुगल सिपहसालार मीर मन्नू से जीत नहीं सका था-उसे यहां की सत्ता सौंप कर लौट गया था.तीसरे हमले का बहाना यह बनाया गया कि मीर मन्नू लगान में हिस्सेदारी नहीं भेज रहा.

इस बार लड़ाई पहले से ज्यादा कठिन थी क्योंकि मीर मन्नू की सेना इसके लिए तैयार थी.दूसरी तरफ सिख फौजों से भी लड़ाई होनी थी.जीत हालांकि अहमद शाह की हुई लेकिन वह मीर मन्नू की बहादुरी का कायल हो गया और उसे फिर से पंजाब की जागीर सौंप दी.अब मीर मन्नू मुगल सल्तनत का नहीं बल्कि अब्दाली सल्तनत का जागीरदार था.

कुछ समय बाद जब मीर मन्नू का निधन हुआ तो उसकी बेगम केा लगा कि सत्ता अब जा सकती है.इसे बचाने के लिए उसने अब्दाली को आमंत्रित किया.यह अब्दाली का भारत पर चैथा हमला था.

इस बार उसके साथ उसका बेटा तैमूर शाह दुर्रानी भी था.अफगान सेना आगरा, वृंदावन और मथुरा होती हुई दिल्ली तक पहंुच गई.उन्होंने भारी लूटपाट और कत्लेआम किया.बहुत सी जगहों पर फौजी औरतों को भी घर से उठा कर ले गए.लेकिन पंजाब में अफगान फौजे फंस गईं.अमृतसर में निहंगों और शहीदां मिस्ल के सिखों की फौजों ने अब्दाली को लंबी लड़ाई के बाद हरा दिया.हालांकि इस जंग में सिख फौजों के अगुवा बाबा दीप सिंह मारे गए.

पंजाब के बाकी हिस्सों में अदीना बेग नाम के एक पंजाबी सिपहसालार ने सिखों के साथ मिलकर तैमूर शाह के नेतृत्व वाली अफगान फौज के छक्के छुड़ा दिए.अदीना बेग को लगा कि आगे जाकर यह जंग हाथ से निकल सकती है, इसलिए उसने मराठा फौजों को मदद के लिए बुला लिया.जब ये तीन फौजे मिल गईं तो अब्दाली की फौज टिक नहीं सकी.

इस समय तक अब्दाली को समझ में आ गया था कि असल लड़ाई उसे भारत के मोर्चे पर ही लड़नी है.अगले हमले में उसने मराठा सेनाओं को तकरीबन हर जगह हरा दिया.आखिरी लड़ाई पानीपत में हुई और उसके बाद दिल्ली भी अब्दाली के कब्जे में थी.कहा जाता है कि अफगान सेना ने बड़ी संख्या में मराठा औरतों का अपहरण कर लिया, जिन्हें बाद में सिख सेना ने उनसे छुड़ाया.इस बार भी सिखों के छापामार हमलों का अब्दाली के पास कोई जवाब नहीं था.वे लगातार मजबूत होते जा रहे थे और बार अब्दाली की फौज को सिंधु नदी तक खदेड़ आते थे.

इसके कुछ समय बाद ही अब्दाली को खबर मिली कि नगा साधुओं और जाटों ने मिलकर मथुरा में बगावत कर दी है, उसे फिर भारत की ओर रुख करना पड़ा.नगा साधुओं ने अब्दाली की सेनाओं के दांत खट्टे कर दिए लेकिन अंत में वे हार गए.

अब्दाली ने इसके बाद सिखों को निशाना बनाने की ठानी.और जो रक्तरंजित लड़ाई हुई उसे कुप की जंग के नाम से जाना जाता है.अब्दाली के तीस हजार सैनिकों ने ऐसी जगह हमला बोला जहां तकरीबन 80हजार सिख थे.इसमें सैनिक कम थे, आम किसान परिवार ही ज्यादा थे, जिनमें बड़ी संख्या में औरते और बच्चे थे.अब्दाली ने जब हमला किया तो सिख सैनिकों ने इन परिवारों के आस-पास सुरक्षा कवच बना दिया.इन सिख सैनिकों की संख्या पांच सात हजार ही थी.

सिखों ने यह लड़ाई सिख सिपहसालार जस्सा सिंह अहलुवालिया के नेतृत्व में लड़ी.इस सुरक्षा कवच को भेदने के लिए अफगान सेना कईं दिनों तक जूझती रही.लेकिन आखिर में वह कामयाब हो गई.

इसके बाद जो हुआ उसकी गिनती दुनिया के सबसे बड़े नरसंहारों में होती है.औरतें बच्चे और जो भी दिखा उसे मार दिया गया.मरने वालों की संख्या दस हजार से पचास हजार तक बताई जाती है.

साल 1767में एक बार फिर अब्दाली ने हमला बोला.इस बार उसकी फौज का निशाना जस्सा सिंह अहलूवालिया थे.सरहिंद में हुई इस जंग में अफगान फौज को फिर मुंह की खानी पड़ी.यह अब्दाली का आखिरी हमला था और इसके बाद अफगान फौज ने पंजाब पर हमले की अगली कोशिश तभी की जब अहमाद शाह का बेटा नादिर शाह तख्त पर बैठा.

नोट: यह लेखक केअपने विचार हैं ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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