इब्न सीनाः चारदीवारी में एक विरासत - 80 वर्ष बाद की पीढ़ियां समझेंगी इसके फायदे

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 29-12-2023
Ibn Sina Academy
Ibn Sina Academy

 

राणा सिद्दीकी जमां

ताला-चाबियों के लिए प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ ने भी अपने भंडार में एक विरासत को सहेज रखा है - ताकि पीढ़ियों को इसका लाभ मिल सके. इसमें एक दुर्लभ अकादमी और संग्रहालय है, जिसे इब्न सीना अकादमी ऑफ मेडीवल मेडिसिन्स एंड साइंसेज कहा जाता है. जीवंत बाजार और आवासीय कॉलोनी के बीच स्थित तिजारा हाउस में इब्न सीना को एक ही छत के नीचे कला और विज्ञान की विरासतों का सबसे दुर्लभ हवेली घर माना जाता है. 

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दर्शन और चिकित्सा के प्रसिद्ध विद्वान अबू अली इब्न सिना (980 -1037) के नाम पर नामित इस गैर-लाभकारी, गैर-सरकारी और गैर-राजनीतिक अकादमी को 2004 में आयुष मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त थी और 2008 में उत्कृष्टता केंद्र के रूप में पदोन्नत किया गया था.

तो, इसमें ऐसा खास क्या है?

यह शहर का पहला संस्थान है, जिसे मुख्य रूप से मध्ययुगीन विज्ञान, विशेष रूप से इब्न-सीना के साथ-साथ कला, संस्कृति, कविता और अन्य विज्ञानों में अनुसंधान और अध्ययन को प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था. इब्न सीना की चार कहानियों में से, प्रमुख आकर्षण इसकी दूसरी मंजिल पर है, जिसमें प्राच्यवाद, कला और संस्कृति का फजलुर रहमान संग्रहालय है.

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इसकी चार मुख्य गैलरी हैं, क्रॉकरी गैलरी में प्राच्य और ब्रिटिश भारतीय बर्तनों, हम्मामी प्लेटों, कटोरे, चाय के सेटों का एक बड़ा संग्रह है, जो हकीम अजमल खान, नवाब सुल्तान जहां, भोपा के नवाब शाहजहां बेगम, रामपुर के नवाब यूसुफ अली खान और कई अन्य प्रमुख हस्तियों से संबंधित हैं. कपड़ा गैलरी पोशाकों से अलंकृत है, कीमती पत्थरों से जड़े सोने और चांदी के सेलिकोस वाले परिधान, जिनमें से एक पर सोने की जरदोजी में जड़ा हुआ पूरा कुरानिक सूरह यासीन है, युद्धों में पहनी जाने वाली पगड़ी, कई अन्य प्राच्य पोशाकें हैं. चित्र गैलरी में एएमयू के चित्र, रेखाचित्र, फोटोग्राफी, प्रिंट आदि प्रमुख हस्तियों के हैं. जबकि इसकी विविध गैलरी में सिक्के, डाक टिकट, घड़ियां, बस्ट, पेन, स्मृति चिन्ह और प्रमुख हस्तियों के अवशेष हैं.

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इब्न सीना के संयोजक डॉ. आफताब बताते हैं, ‘‘डाक टिकटों की शुरुआत के बाद से हमारे पास सभी देशों और भारत से 2 लाख से अधिक टिकटें हैं. जो लोग कला और संस्कृति, शिक्षा की दुनिया में अग्रणी थे, स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनके नाम पर डाक टिकट जारी किए गए थे, हमारे पास उन्हीं पर एक संग्रह है. इसके अलावा चिकित्सा पांडुलिपियां, चिकित्सा डाक टिकट संग्रह, चिकित्सा स्मृति चिन्ह, चिकित्सकों की यादें, विशेष रूप से नोबेल पुरस्कार विजेताओं की यादें यहां अच्छी तरह से संरक्षित हैं.’’

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दीर्घाओं के जुड़े हुए कमरे राजा जय किशन के सोफे के साथ आपका स्वागत करते हैं, जो उस समय के दर्पण हैं, जब वे लोहे की चादरों से बने होते थे. ‘आइना’ कहलाने वाली लोहे की चादरों को इतनी बार रगड़ा जाता था कि वे चमकदार होकर दर्पण बन जाती थीं. इस तरह दर्पण का नाम ‘आइना’ पड़ा, बाद में सामग्री में बदलाव के साथ इसे एक नया नाम मिला - शीशा.

किताबी कीड़ों के लिए

अकादमी कई कारणों से दुर्लभ है. चिकित्सा, विज्ञान, उर्दू, फारसी, अरबी, साहित्य, कविता, प्राच्य अध्ययन के शौकीन पाठकों, शोधकर्ताओं, प्रतियोगिताओं की तैयारी करने वाले छात्रों और विद्वानों के लिए इब्न सीना स्वर्ग है. इसमें 32000 पुस्तकों, 17000 पत्रिकाओं, 1100 पांडुलिपियों, (मख्तूतात), सोने की एक जेब के आकार सहित 21 दुर्लभ कुरान और बहुत कुछ का दुर्लभ संग्रह है.

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प्रोफेसर सैयद जिल्लुर रहमान अलीगढ़ के एक चिकित्सा अकादमिक और भावुक उर्दू साहित्यकार हैं. उनके द्वारा निर्मित, इब्न सीना उनकी अपनी विशाल लाइब्रेरी का विस्तार था, जिसे उन्होंने 1960 में स्थापित किया था, जो जल्द ही वर्ष 2000 में दुनिया की दुर्लभ अकादमी और अपनी तरह के संग्रहालय में विस्तारित हो गया.

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प्रोफेसर ने जानकारी साझा करते हुए कहा, ‘‘हमारे यहां औरंगजेब के हाथ का लिखा, बेटे के हाथ का, बेटी के हाथ का लिखा हुआ कुरान है.’’

औरतें, ख़ुसरो, गैब और दिल्ली

हर क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करने वाली मुस्लिम महिलाओं के एक अलग संग्रह के अलावा, इब्न सीना ईरान, मध्य एशिया, सीरिया, इराक और तुर्की जैसे देशों से प्रकाशित होने वाले इस्लामी विज्ञान, इस्लामी दवाओं और इस्लामी दर्शन पर ‘दुनिया का सबसे अच्छा’ संग्रह का दावा करता है. और इसी तरह, इस अनुभाग की पुस्तकों का संदर्भ लेने के लिए दुनिया भर से विद्वान इस अकादमी में आते हैं.

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गालिब के मुरीदों के लिए अकादमी में गालिब अध्ययन केंद्र नामक एक अलग अनुभाग है. प्रोफेसर का दावा है, ‘‘गालिब का कलेक्शन जो हमारे पास है, वो दुनिया में किसी के पास नहीं है.’’

दिल्ली यहां एक विशेष स्थान रखती है, जिसमें 7500 किताबें हैं, जिनमें से कुछ 1893 से पुरानी हैं, 150 साल पुराने शब्दकोष, अमीर खुसरो पर प्रामाणिक दीवान, अंतिम मुगल बहादुर शाह जफर पर और उनके द्वारा लिखी गई किताबें, ब्रिटिश काल-विक्टोरियन युग लिथोग्राफ में चित्रों के साथ और भी बहुत कुछ.

निःशुल्क पुस्तकालय

अकादमी में छात्रों, विशेषकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए एक पुस्तकालय भी है. 100 सीटों वाली लाइब्रेरी में साहित्य, कृषि, विज्ञान, गणित, चिकित्सा आदि की बेहतरीन किताबें हैं.

गालिब अध्ययन केंद्र के समन्वयक डॉ. आफताब आलम ने बताया, ‘‘इस पुस्तकालय में बैठने के लिए कोई शुल्क नहीं है. यह प्रतिदिन 10 से 10 बजे तक खुलता है. इस अनुभाग में 28000 से अधिक पुस्तकें हैं, जिनमें प्रोफेसर रहमान द्वारा तिब्बी और यूनानी दवाओं पर लिखी गई 56 पुस्तकें शामिल हैं. एक पूरा खंड यूनानी चिकित्सा, सर सैयद आंदोलन, उनके द्वारा और उन पर लिखी पुस्तकों को समर्पित है. जीवनियों पर एक अलग अनुभाग है.’’

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पुस्तकालय में भारतीय इतिहास, संस्कृति, भाषा, समाज, शिक्षा, राजनीति, चिकित्सा आदि पर उर्दू और फारसी में अधिकांश पुस्तकें क्यों हैं, इसका एक कारण है. प्रोफेसर ने अफसोस जताया, ‘‘मुसलमानों पर अंग्रेजी में ज्यादा काम नहीं हुआ है. अधिकांश कार्य उर्दू और फारसी में हुआ है. तो ये हमारी मजबूरी है. हमारा फोकस भारत-हिंदुस्तान पर है. भारतीय विद्वानों ने किसी भी क्षेत्र, दर्शन, यात्रा वृतांत, चिकित्सा, विशेष रूप से इस्लामी इतिहास, कुरान, हदीस में इतना बड़ा काम किया है कि इसकी तुलना दुनिया में, विशेष रूप से अरबी और फारसी दुनिया में किसी से भी नहीं की जा सकती है. समस्या यह है कि हम इसलिए नहीं पढ़ते, क्योंकि हम उर्दू नहीं पढ़ते हैं.’’

ऐसा न हो कि हम जानवरों की तरह जियें

इब्न सीना का निर्माण क्यों किया गया, इसकी एक दिलचस्प कहानी है. एक युवा व्यक्ति के रूप में, प्रोफेसर रहमान एक पक्षी को देखते थे, जिसने घोंसला बनाया था, वह उसके नवजात शिशु के लिए भोजन लाती थी, ठीक उसी तरह जैसे कि एक बिल्ली की दिनचर्या थी, जिसने उनके घर पर बिल्ली के बच्चे को जन्म दिया था. कुछ महीनों के बाद, पक्षी उड़ गए, बिल्ली के बच्चे बड़े हो गए और अपनी मां के साथ चले गए.

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‘‘मैंने मन में सोचा, क्या यही वह जीवन है, जिसके लिए परमेश्वर ने मानवजाति को बनाया है? बस जानवरों की तरह पैदा हो, खाओ, सो जाओ और मर जाओ? भगवान ने मनुष्य को न केवल अपने परिवार का बल्कि समाज, भाषा, संस्कृति, समुदाय और दुनिया का भी ख्याल रखने के लिए बनाया है.’’

इसलिए, उन्होंने एक ऐसी विरासत बनाने का निर्णय लिया, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह 80 वर्षों के बाद की पीढ़ी के लिए उपयोगी होगी! उन्होंने कहा,  “हम सभ्यता से 80 साल दूर हैं. किसी भी सभ्यता के विकास का मानक समय 150 वर्ष है. इसलिए, अब लोग मेरी बनाई हुई विरासत को नहीं समझ पा रहे हैं, लेकिन जो छात्र इसे 80 साल बाद पढ़ेंगे, उन्हें पता चलेगा कि यह क्या है. तब तक हम एक सभ्यता बन जायेंगे.”

मुसलमानों का विकास का ग्राफ

लोग चिंतित हैं कि मुस्लिमों के विकास का ग्राफ नीचे जा रहा है. लेकिन प्रोफेसर का मानना है, इसमें चिंता की कोई बात नहीं है. वे भारत नामक विरासत और इसमें मुसलमानों के योगदान को जानने के लिए उर्दू पढ़ने पर जोर देते हुए संतुष्ट हैं और कहते हैं, “प्रत्येक सभ्यता को इससे गुजरना पड़ता है. हमारा ग्राफ बढ़ा है. 1947 में हम 10 करोड़ थे. विभाजन के बाद 7 करोड़ लोग पाकिस्तान चले गए और 3 करोड़ मुसलमान भारत में रह गए. 1947 में हम कुछ भी नहीं थे, लेकिन हमारे बुजुर्गों ने पढ़ने के लिए बहुत मेहनत की और विद्वान बन गये. अब हम शैक्षणिक संस्थान, विश्वविद्यालय, अस्पताल, मीडिया हाउस वगैरह बना रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लड़कियों को उच्च शिक्षा मिल रही है और वे देश का चेहरा बदल देंगी.”