भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं

Story by  ज़ाहिद ख़ान | Published by  [email protected] | Date 24-07-2022
 भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं
भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं

 

संदर्भ : 24 जुलाई, मनोज कुमार का 85वां जन्मदिवस

-ज़ाहिद ख़ान
 
फ़िल्मी दुनिया में अदाकार मनोज कुमार को एक ऐसी हरफ़नमौला शख़्सियत के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने अपने बेजोड़ अभिनय के साथ-साथ निर्देशन, लेखन, संपादन और फ़िल्म निर्माण की प्रतिभा से दर्शकों के दिल में अपनी ख़ास पहचान बनायी है. ‘शहीद’, ‘उपकार’, ‘शोर’, ‘यादगार’, ‘क्रांति’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी-कपड़ा और मकान’ जैसी लाजवाब और कभी न भुलाए जाने वाली फ़िल्में उन्होंने अपने चाहने वालों को दी हैं.

उनके द्वारा निर्देशित ज़्यादातर फ़िल्में भारतीयता और देशभक्ति की भावना से ओत-पोत हैं. इन फ़िल्मों और उनके गाने सुनकर कई पीढ़ियों ने देशभक्ति का पाठ सीखा है.
 
आज़ादी की वर्षगांठ हो, गणतंत्र दिवस हो या फिर स्वतंत्रता सेनानियों की जयंती-पुण्यतिथि के आयोजन मनोज कुमार की फ़िल्मों के गाने मसलन ‘ऐ वतन-ऐ वतन हमको तेरी कसम’, ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’, ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’, ‘अब के बरस तुझे धरती की रानी’, ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’, ‘भारत का रहने वाला हूं’ ज़रूर बजते हैं. इन गानों के बिना यह आयोजन मानो अधूरे होते हैं.
 
अविभाजित भारत के एबटाबाद में 24 जुलाई, 1937 को जन्मे मनोज कुमार का परिवार बंटवारे के बाद, नई दिल्ली में आकर बस गया. यहीं उनकी तालीम हुई. उनका असली नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी है.
 
फ़िल्मों में आकर वह मनोज कुमार हो गए. अपने बचपन में वे अभिनय सम्राट दिलीप कुमार से बेहद प्रभावित थे .उन्हीं की तरह हीरो बनना चाहते थे. अपने इस ख़्वाब को लेकर वे मायानगरी बंबई पहुंचे.फ़िल्मों में काम की तलाश में उन्होंने काफ़ी संघर्ष किया.
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छोटी-छोटी भूमिकाओं से शुरुआत करने के बाद, साल 1961 में निर्देशक एचएस रवैल ने उन्हें अपनी फ़िल्म ‘कांच की गुड़िया’ में हीरो का रोल दिया. फ़िल्म नाकाम रही.
 
इसके बाद उन्हें और भी कई फ़िल्में मिलीं, लेकिन यह सभी फ़िल्में टिकिट खिड़की पर नाकामयाब साबित हुईं. साल 1962 में आई निर्देशक विजय भट्ट की ‘हरियाली और रास्ता’ वह फ़िल्म थी, जिसमें मनोज कुमार को कामयाबी का पहला स्वाद मिला.
 
एक बार उन्होंने जो कामयाबी का दामन थामा, तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. 60 और 70 के दशक में मनोज कुमार ने एक के बाद एक कई सुपर हिट फ़िल्में लाईन से दीं. ‘वो कौन थी’, ‘गुमनाम’, ‘हरियाली और रास्ता’, ‘हिमालय की गोद में’, ‘दो बदन’, ‘पत्थर के सनम’, ‘नील कमल’, ‘शोर’, ‘साजन’, ‘बेईमान’, ‘दस नंबरी’, ‘सन्यासी’ और ‘पहचान’ जैसी अनेक फ़िल्में इस लंबी फ़ेहरिस्त में शामिल हैं.

दिलीप कुमार जिन्हें मनोज कुमार फ़िल्मी दुनिया में अपना आदर्श मानते थे, आगे चलकर उन्होंने उनके साथ दो फ़िल्में ‘आदमी’ और ‘क्रांति’ की. सिने पर्दे पर इन दोनों बेमिसाल अभिनेताओं की जोड़ी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया.
 
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मनोज कुमार ने कई सुपर हिट फ़िल्मों में काम किया, लेकिन उन्हें असली पहचान देशभक्ति वाली फ़िल्मों से मिली. देश प्रेम, साम्प्रदायिक सद्भावना, एकता और भाईचारे का संदेश देने वाली फ़िल्में उनका ट्रेडमार्क बन गईं.
 
इन फ़िल्मों में उन्होंनें न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि फ़िल्म निर्माण से संबंधित अनेक विभाग भी एक साथ संभाले. इन सभी महकमों में वे कामयाब भी साबित हुए.
 
साल 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘शहीद’, मनोज कुमार के सिने करियर की अहमतरीन फ़िल्मों में शुमार की जाती है. देशभक्ति के जज़्बे से सराबोर इस फ़िल्म में उन्होंने शहीदे आज़म भगत सिंह के किरदार को रूपहले पर्दे पर ज़िंदा कर दिया था.
 
भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त की कहानी पर आधारित इस फ़िल्म की पटकथा पंडित दीनदयाल शर्मा ने लिखी थी. ब्रिटिश निर्देशक-अभिनेता रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म ‘गांधी’ के बाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर आज भी इसके मुकाबले कोई दूसरी फ़िल्म नहीं है.
 
क्रांतिकारी भगत सिंह की ज़िंदगी पर आगे चलकर और भी कई फ़िल्में बनीं, लेकिन उन्हें ‘शहीद’ जैसी सफलता नहीं मिली.
 
साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की समाप्ति के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश में किसान और जवान की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुये ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया और मनोज कुमार से इस पर केन्द्रित एक फ़िल्म बनाने को कहा.
 
प्रधानमंत्री का यह ख़याल मनोज कुमार को बेहद पसंद आया और उन्होंने फ़िल्म ‘उपकार’ शुरू की. साल 1967 में यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई. फ़िल्म में मनोज कुमार ने किसान के साथ-साथ जवान का किरदार निभाया.
 
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इस फ़िल्म में पहली बार उनके किरदार का नाम ‘भारत’ था. उसके बाद तो यह नाम, मनोज कुमार की शख़्सियत पर हमेशा के लिए चस्पा हो गया. अपने प्रशंसकों के बीच वे ‘भारत कुमार’ के नाम से ही मशहूर हो गए.
 
‘उपकार’ देश भर के दर्शकों को ख़ूब पसंद आई। फ़िल्म न सिर्फ टिकिट खिड़की पर कामयाब रही, बल्कि उसे उस साल सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद श्रेणी में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिले.
 
मनोज कुमार की एक नहीं, कई ऐसी फ़िल्में हैं, जिनमें जनता के लिए कोई न कोई संदेश है. उन्होंने अपनी फ़िल्मों के ज़रिए हमेशा यह कोशिश की कि जनता को एक विचार, एक दिशा मिले.
 
मनोरंजन के अलावा दर्शक उनकी फ़िल्मों से एक संदेश लेकर जाएं. मनोज कुमार के निर्माण और निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘पूरब और पश्चिम’ अपने देश की मिट्टी और भारतीय संस्कारों से प्रेम करने का प्रभावी संदेश देती है, तो फ़िल्म ‘शोर’, ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ और ‘क्लर्क’ के ज़रिए वे ज़िंदगी के बुनियादी सवालों से जूझते आम लोगों की कहानी कहते हैं.

‘क्रांति’ फ़िल्म में उन्होंने 1857 की क्रांति के दौर को जिंदा किया है. मनोज कुमार के तमाम राजनीतिक नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अलावा इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेई भी उनकी फ़िल्में पसंद करते थे.
 
एक दौर था, जब दर्शक मनोज कुमार की हर अदा के दीवाने थे. उनकी स्टाइल, तमाम फ़िल्म स्टारों से जुदा है. चाहे वह उनका ड्रेस सेंस हो या फिर अभिनय का अंदाज़. चेहरे पर जब वे अपना हाथ लाकर एक स्पेशल पोज बनाते, तो सिनेप्रेमियों को वह बेहद लुभाता. डायलॉग को आहिस्ता-आहिस्ता बुदबुदाते हुए,
 
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ऊंची आवाज़ तक ले जाना भी उनकी अदाकारी का लाज़िमी हिस्सा था. यही नहीं उनकी निर्देशित फ़िल्मों में कैमरा वर्क भी अलग ही दिखलाई देता है. बेहतरीन गीत-संगीत उनकी फ़िल्मों का आकर्षण रहता था.
 
गायक मुकेश ने उनकी फ़िल्मों में कई शानदार गीत गाए. राज कपूर के बाद मनोज कुमार ही वे अदाकार थे, जिनके लिए मुकेश की आवाज सौ फ़ीसदी फिट बैठी.
 
भारतीय सिनेमा में मनोज कुमार के विशेष योगदान के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा गया है। भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान ‘दादा साहब फ़ाल्के अवार्ड’ के साथ-साथ, मनोज कुमार को अपने सिने करियर में अब तक सात बार फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया है. जिसमें साल 1973 में आई फ़िल्म ‘बेईमान’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार शामिल है.

राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये ‘शहीद’ को 'नर्गिस दत्त पुरस्कार', तो ‘उपकार’ के लिए उन्हें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला है. फ़िल्मों में उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने मनोज कुमार को साल 1992 में ‘पद्मश्री सम्मान’ से नवाज़ा है.
 
बढ़ती उम्र और शारीरिक अस्वस्थता के चलते, भले ही एक लंबे अरसे से मनोज कुमार फ़िल्मों से दूर हों, लेकिन उनकी पुरानी फ़िल्में और सदाबहार गाने देशवासियों को आज भी रोमांचित करते हैं। उनमें देशभक्ति का जज़्बा जगाते हैं.