अनदेखी से हैदराबाद की विरासत खतरे में

Story by  गिरिजाशंकर शुक्ला | Published by  [email protected] | Date 25-08-2021
अनदेखी से हैदराबाद की विरासत खतरे में
अनदेखी से हैदराबाद की विरासत खतरे में

 

गिरिजाशंकर शुक्ल/हैदराबाद

जब आप हैदराबाद में विरासत के बारे में सोचते हैं, तो आपके दिमाग में किले, महल और मकबरे आते हैं. लेकिन जो हम अक्सर नोटिस करने में असफल होते हैं वे हैं कमान या मेहराब. ये मेहराब गौरवशाली अतीत के प्रतीक के रूप में खड़े हैं.
 
इनमें से अधिकांश कमान, जो कभी कुछ महत्वपूर्ण स्थलों के लिए भव्य प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करते थे, अब उपेक्षा के शिकार बन रहे हैं. ऐसा ही एक मेहराब है ऐतिहासिक हुसैनी आलम कमान.
 
निज़ाम युग के दौरान बनाया गई यह कमान, हैदराबाद के पुराने शहर में 400 साल पुराने आशूरखाना के प्रवेश द्वार के रूप में खड़ा है. हालांकि, कंक्रीट के टुकड़े समय-समय पर गिरने के कारण स्थानीय लोग अधिकारियों से तत्काल इसकी मरम्मत करने का आग्रह कर रहे हैं.
 
एक सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद अहमद ने कहा कि अधिकारियों को कई ज्ञापन देने के बाद भी कोई भी अधिकारी निरीक्षण करने और संरचनात्मक व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए नहीं आया है.
 
उन्होंने कहा कि इस कमान का हाल भी शालिबांडा में बेला कमान के समान हो सकता है, जिसे पिछले साल ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था. एक और कमान, जो अपने आखिरी दौर में है, वह है मीर आलम मंडी कमान.
 
इसके कंक्रीट के टुकड़े भी समय-समय पर गिरते रहते हैं. निज़ाम युग के दौरान बनाया गया कमान, हैदराबाद के सबसे पुराने और सबसे व्यस्त बाजारों में से एक का प्रवेश द्वार था. विरासत संरचना के नवीनीकरण के बजाय अधिकारियों ने लगभग दो साल पहले कंक्रीट झड़ने से रोकने के लिए लोहे के खंभे लगा दिए थे.
 
पिछले 40 वर्षों से बाजार में सब्जियां बेच रहे 62 वर्षीय गुलाम दस्तगीर ने कहा कि लोहे के खंभे समस्या का केवल अस्थायी समाधान हैं. हमें यकीन नहीं है कि हम कब तक इस व्यवस्था पर भरोसा कर सकते हैं.
 
पिछले साल दिसंबर में कमान का निरीक्षण करने वाले जीएचएमसी के अधिकारी एसएन सूर्य कुमार ने कहा कि ढांचे के ढहने का कोई खतरा नहीं है, लेकिन मीर आलम मंडी सब्जी एजेंट असोसिएशन के अध्यक्ष मीर मुजफ्फर अली ने कहा कि कई वाहन कमान से गुजरते हैं, जिससे संरचना के अंदर कंपन होता है और कंक्रीट के टुकड़े गिरते रहते हैं.
 
इतिहासकारों का कहना है कि चारमीनार के पास जो चार मेहराब 1591 में चारमीनार के साथ बने थे, उनकी भी मरम्मत की जरूरत है। शाही जुलू खाना कमान चौमहल्ला पैलेस के कई प्रवेश द्वारों में से एक था.
 
दुर्भाग्य से देखरेेख की कमी के कारण, प्लास्टर झड गया है और केवल कुछ टूटे हुए पत्थर ही रह गए हैं. विरासत कार्यकर्ताओं ने कहा कि समय आ गया है कि सरकार शहर के इन ऐतिहासिक मेहराबों की रक्षा करे.