राकेश चौरासिया
भाई मरदाना की वजह से गुरू नानक देव जी ने मक्का की यात्रा की थी. दरअसल भाई मरदाना का जन्म राय-भोंई की तलवंडी (ननकाना साहिब) के एक मुस्लिम चौभड़ मिरासी परिवार में हुआ था. पिता मीर बादरे एवं माता लख्खो को छह संतानें हुईं थी, लेकिन उनमें से एक भी नहीं बची. तब सातवीं संतान का नाम उनकी माता ने ‘मर जाणा’ यानी ‘तुझे भी मरना है’ रख दिया. वे मरजाणा के नाम से ही मशहूर हो गए. मगर जब वे बाबा नानक जी की सोहबत में आए, तो बाबा नानक ने अपने प्रिय साथी मरजाणा का नाम बदलकर मरदाना रख दिया.
भाई मरदाना का सिख समुदाय में पूज्यनीय स्थान है. वे बाबा नानक जी से उम्र में दस साल बड़े थे. जब बाबा जी के मुख से ‘बाणी’ यानी ईश्वरीय शब्द निर्झरित होते थे, तो वे भाई मरदाना को कहते, जा, अपना रबाब ले आ, बाणी आ रही है. फिर भगवत्ता में मगन गुरू साहिब बाणी सुनाते और भाई मरदाना रबाब से सुर-ताल मिलाते. गुरू साहिब की बाणी को भाई मरदाना ने कुल 19 रागों में निबद्ध किया था.
भाई मरदाना के साथ गुरू नानक देव जी
एक दिन भाई मरदाना बोले कि सच्चे मुसलमान के लिए कमसकम एक बार मक्का का हज जरूरी है. इसलिए वे मक्का जाना चाहते हैं. इस पर गुरू साहिब भी शेख का भेष बनाकर मक्का जाने को तैयार हो गए. तब मक्का में इतनी सख्ती न थी. बेशक तब भी मक्का में ‘एकेश्वरवाद’ यानी ‘ईश्वर एक है’ में अकीदा रखने वालों के लिए ही मक्का में जाने की अनुमति थी.
सिखी के अनुसार गुरू नानक देव जी ने चौथी उदासी (लंबी यात्रा) में मक्का भ्रमण किया था. गुरू नानक देव जी ने लगभग 28 सालों में पांच बड़ी पैदल यात्राएं की थीं, जिन्हें उदासी कहा जाता है. ये यात्राएं कुल 28 हजार किमी लंबी थीं, जिनमें उन्होंने दो उपमहाद्वीपों के 60 प्रमुख नगरों का भ्रमण किया था. हर यात्रा में भाई मरदाना उनके साथ होते थे.
मक्का के लिए बाबा नानक जी ने भाई मरदाना के साथ सूरत से अरब तक जलयान से यात्रा की. मक्का पहुंचते हुए वे थक गए और एक मस्जिद में आराम करने लगे. गुरू ग्रंथ साहब के अनुसार, जब बाबा नानक विश्राम कर रहे थे, तो उनके पैर ‘काबा’ की तरफ थे. तब जयोन को अहसास हुआ कि यह कोई आम शख्स नहीं, बल्कि कोई पहुंचा हुआ पीर है. तब बाबा नानक ने कहा कि अल्लाह सिर्फ काबा में नहीं रहता, वह जर्रे-जर्रे में विद्यमान है, वह सब जगह है.
फिर बाबा के मुख से बाणी फूट पड़ी और भाई मरदाना रबाब बजाने लगे. उनकी बाणी सुनकर काफी भीड़ इकट्ठी हो गई. लोग उन्हें ‘बाबा नानक’ के नाम से जानने लगे. बाबा नानक बाद मक्का, बगदाद भी गए थे. जहां उनकी मुलाकात एक बड़े मुस्लिम फकीर बहलोल से शुरू हुई थी. उसके इसरार पर जब बाबा नानक ने ‘अल्लाह’ का गुणगान किया, तो बहलोल भी उनसे बहुत प्रभावित हुआ.
वाहे गुरू जी दा खालसा, वाहे गुरू जी दी फतेह.