जनरल शाहनवाज खान: लाल किले पर बरतानी झंडा उतारने और तिरंगा लहराने वाले पहले शख्स

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 11-12-2021
जनरल शाहनवाज खान
जनरल शाहनवाज खान

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली

लालकिले से आई अवाज - सहगल, ढिल्लो, शाहनवाज. यह नारा पुराने लोगों के जेहन में आज भी सुरक्षित है. इस तरह जनरल शाहनवाज खान का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में स्वतंत्र भारतीय सेना के ‘कमांडर-इन-चीफ’ जनरल शाहनवाज खान के बलिदान और कारनामे अभी भी राष्ट्र के लिए एक संपत्ति हैं. जनरल शाहनवाज खान देशभक्ति और राष्ट्रवाद के प्रतीक बने रहे.

यह ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है कि यह जनरल शाहनवाज खान थे, जिन्होंने लाल किला में ब्रिटिश सरकार के झंडे की जगह तिरंगा फहराया, जहां आजादी के बाद से तिरंगा लहरा रहा है. दिलचस्प बात यह है कि जब मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान जा रहे थे, तो वे अपना पूरा परिवार पाकिस्तान में छोड़कर भारत आ गए. उनके परिवार से जुड़े लोग आज भी पाकिस्तानी सेना में ऊंचे पदों पर काबिज हैं.

यह भारत का प्यार और हिंदू-मुस्लिम एकता में विश्वास था, जिसने उन्हें स्वतंत्र भारतीय सेना में सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने के लिए प्रेरित किया.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ जनरल शाहनवाज खान 

दरअसल, जनरल शाहनवाज खान 1940 में एक अधिकारी के रूप में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए थे. इसी बीच दिसंबर 1941 में जापानियों ने सिंगापुर पर आक्रमण कर दिया. सिंगापुर को बचाने के लिए अंग्रेजों ने ब्रिटिश सेना के साथ भारत से 60,000 भारतीय सैनिकों को सिंगापुर भेजा. इसमें कैप्टन के तौर पर शाहनवाज खान भी शामिल थे. ब्रिटिश सेना की हार हुई और जनरल शाहनवाज खान को हजारों सैनिकों के साथ युद्ध बंदी बना लिया गया.

सिंगापुर की एक जेल में उनकी मुलाकात क्रांतिकारी सैनिकों से हुई, जो नेताजी के मित्र थे. इस प्रकार वह जल्द ही सुभाष चंद्र बोस के साथ स्वतंत्र भारतीय सेना में शामिल हो गए. उनकी नेतृत्व क्षमता के कारण उन्हें भारत के अनंतिम सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था. दिसंबर 1944 में, उन्हें मांडले में स्वतंत्र भारतीय सेना का कमांडर नियुक्त किया गया. सितंबर 1945में जब नेताजी ने स्वतंत्र भारतीय सेना के कुछ चुनिंदा सैनिकों के साथ अपनी सुभाष ब्रिगेड का गठन किया, तो जनरल शाहनवाज खान को इसका कमांडर बनाया गया.

जनरल शाहनवाज और उनके सहयोगियों को 1945 में ब्रिटिश सेना के साथ युद्ध के दौरान बर्मा में गिरफ्तार किया गया था. 1946 में उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया. पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और जब ब्रिटिश सेना ने उन्हें पकड़कर लाल किले में कैद कर लिया. फिर प्रसिद्ध ‘लाल किला कोर्ट मार्शल ट्रायल’ हुआ, तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनकी वकालत की. तीव्र दबाव के कारण, ब्रिटिश सेना को उन्हें रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

स्वतंत्र भारत में, वह 4 बार संसद सदस्य चुने गए और कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों में मंत्री के रूप में कार्य किया.

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जनरल शाहनवाज खान के मशहूर रेड फोर्ट मार्शल कोर्ट ट्रायल की एक खबर 

आज हम जिस आजाद हवा में सांस ले रहे हैं, उस बयार को लाने में जनरल शाहनवाज ने अहम किरदार निभाया है, लेकिन आज देश की जनता उनके नाम से परिचित नहीं है.

जनरल शाहनवाज खान का जन्म 24 जनवरी 1914 को रावलपिंडी में हुआ था. उनके पिता, सरदार टीका खान जंजुआ, उनके कबीले के प्रमुख और ब्रिटिश सेना में एक अधिकारी थे. उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में एक अधिकारी के रूप में चुना गया और द्वितीय विश्व युद्ध में सेवा दी गई.

नेताजी के व्यक्तित्व से प्रेरित होकर, जनरल शाहनवाज स्वतंत्र भारतीय सेना में शामिल हुए और जल्द ही सुभाष चंद्र बोस के सबसे भरोसेमंद सहयोगी बन गए. वह देश की आजादी के बाद लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले पहले व्यक्ति थे.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा. इसलिए वे स्वतंत्र भारतीय सेना में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे थे. इस बीच, ब्रिटिश सेना ने उन्हें पकड़ लिया और उन्हें उसी लाल किले में कैद कर दिया, जहां उनका प्रसिद्ध कोर्ट-मार्शल और आईएनए ट्रायल हुआ, जिसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने उनकी वकालत की और पंडित नेहरू से मिलने के बाद, शाह नवाज खान कांग्रेस में शामिल हो गए.

1947 में पंडित नेहरू ने उन्हें कांग्रेस सेवा दल के कार्यकर्ताओं को सेना की तरह प्रशिक्षण देने का काम सौंपा. 1952 में, जनरल शाहनवाज खान मेरठ निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए. उन्होंने 1971 तक संसद में मेरठ का प्रतिनिधित्व करना जारी रखा. वे 23 वर्षों तक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहे और 9दिसंबर, 1983को उनका निधन हो गया. उन्हें मौलाना अबुल कलाम आजाद के बगल में दफनाया गया था.

देश को आजाद कराने के लिए जिन लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी, उन महान देशभक्तों में जनरल शाहनवाज खान का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है, जो स्वतंत्र भारतीय सेना के मेजर जनरल थे और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सबसे करीबी लोगों में से एक माने जाते थे.