हिंदू-मुस्लिम एकता के सीमेंट थे गांधी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 01-10-2021
महात्मा गांधी
महात्मा गांधी

 

मो. जबिहुल कमर ‘जुगनू’/ नई दिल्ली

भारत के सबसे लोकप्रिय नेता और स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य. जिन्होंने उत्पीड़न के खिलाफ सत्याग्रह को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. जिसका जन्मदिन 'गांधी जयंती' एक राष्ट्रीय अवकाश है और दुनिया भर में अहिंसा के दिन के रूप में मनाया जाता है.

गांधी ने असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया, जो मार्च 1930 में ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक शुल्क लगाने के खिलाफ 400 किमी लंबे विरोध के साथ शुरू हुआ. फिर 1942 में गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया और तत्काल स्वतंत्रता की मांग की. गांधी जी के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन जब से उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, उन्हें सादा जीवन जीने की आदत हो गई थी.

गांधी जयंती के मौके पर जब हम ने देश के कई विद्वान व बुद्धिजीवियों से बात की तो उन्होंने ने गांधी के व्यक्तित्व को इस तरह से रेखांकित किया.

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इतिहासकार तनय कुमार कहते है कि मुसलमान भी अंग्रेजों द्वारा थोपी गई अपमानजनक शर्तों से इतना पीछे हट गए कि उन्होंने मौलाना मुहम्मद अली, मौलाना शौकत अली, मौलाना अबू कलाम आजाद और डॉ अंसारी के नेतृत्व में विरोध के रूप में खिलाफत आंदोलन शुरू किया था.

हाकिम अजमल खान के अलावा देवबंदी विद्वान भी मौजूद थे. जब गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस ने खिलाफत आंदोलन को समर्थन देने की घोषणा की तो मौलाना मुहम्मद अली और गांधीजी एक ही मंच पर आने लगे. तब उस समय यह एक वास्तविक जन आंदोलन बन गया था. लेकिन यह आंदोलन आगे चल कर विफल हो गया था. गांधीजी और अली बंधु की गिरफ्तारी के बाद देश में राजनीतिक स्थिति खराब हो गई थी.

तनय कुमार ने कहा कि गांधीजी और मुसलमान धर्मनिरपेक्षता के केंद्र में थे और धार्मिक कट्टरता को नापसंद करते थे. पाकिस्तान बनने के बाद से स्वेच्छा से भारत में रहने वाले लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा था और आज तक स्थिति में सुधार नहीं हुआ है.

ऐसे ही एक मौके की कहानी बताते हुए मौलाना अबुल कलाम आजाद लिखते हैं कि मैं पहले ही बता चुका हूं कि दिल्ली के ज्यादातर मुसलमानों को पुराने किले में रखा गया था, जब सर्दी आई थी तो हजारों लोग खुले में थे. वे नीचे रहते थे, ठंड थी, उनके पास पर्याप्त भोजन और पानी भी नहीं था. वहां से गंदगी हटाने का और कोई इंतजाम नहीं था और जो था वह काफी नहीं था.

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टीके मेमोरियल ट्रस्ट, दिल्ली के अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल क्य्युम कहते है कि गांधीजी हमेशा कहते थे कि वह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता का सीमेंट बनना चाहते हैं. गांधी जी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की साझी सभ्यता थी जिसे हिन्दू कहना पाप है और मुसलमान को पाप कहना.

उन्होंने मानवता के धर्म की पूजा की और उनका सबसे बड़ा धर्म मानवता था. लेकिन मानवता के इस पुजारी को धर्म की अफीम ने मार डाला और उस पर मुसलमानों के प्रति नरम रुख रखने का आरोप लगाया गया था. हालाँकि, वह कर्तव्य की पंक्ति में मारा गया और धार्मिक लोगों को यह पसंद नहीं आया.

अब्दुल क्य्युम आगे कहते हैं कि डॉ. जाकिर हुसैन ने इमरजेंसी बोर्ड के सामने गवाही दी और पुराने किले में रहने वाले लोगों की दुर्दशा का वर्णन किया. उन्होंने कहा, "इन गरीब पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को उनके मुंह से निकाल कर जिंदा दफना दिया गया है." व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया और आवश्यक कार्रवाई का सुझाव दिया.

इसके बाद बैठक में पानी और साफ-सफाई की तत्काल व्यवस्था करने का निर्णय लिया गया और सेना को ज्यादा से ज्यादा टेंट लगाने को कहा ताकि कम से कम लोगों को कैनवास के नीचे आश्रय दिया जा सके. गांधी जी की पीड़ा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी, पहले तो पूरा देश उनकी छोटी सी इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार था, लेकिन माहौल इतना खराब हो गया था कि वे भीख मांग रहे थे और लोगों के कानों में नहीं बज रहे थे.

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इतिहासकर व आलोचक विक्रांत कुमार कहते है कि गांधीजी के सभी विचार, चाहे वे अहिंसा, सत्याग्रह या भाईचारे हों, न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में लोकप्रिय हुए और अंतर्राष्ट्रीय विचारकों, लेखकों और कलाकारों द्वारा उनकी प्रशंसा की गई. दूसरी ओर, यह भी एक सच्चाई है कि भारत के इस महान प्रमाण के लिए अपने प्राणों की आहुति देने की कीमत पर हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए गांधीजी के प्रयासों को नफरत फैलाने वाले तत्व कभी पसंद नहीं आए.

अंत में, इस दिन, देश ने देखा कि महात्मा गांधी, जो हिंदू-मुस्लिम एकता के अग्रदूत और देश की स्वतंत्रता में एक प्रमुख व्यक्ति थे, देश के स्वतंत्र होने के छह महीने बाद शुक्रवार, 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी गई. पूरे देश को जलाने वाला दीपक बुझ गया और हमें सबक सिखाया कि हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम केवल हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई हैं बल्कि हम भारतीय और सच्चे भारतीय हैं.

महात्मा गांधी को याद करना और उनके अमूल्य सिद्धांतों को अपनाकर अपने देश के विकास में अपनी भूमिका निभाना और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अपनी बहुमूल्य सेवाओं को जारी रखना हम सभी का दायित्व है.