इतिहास के झरोखों से : क्रीमिया पर हिटलर की फौज का हमला

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 12-04-2022
इतिहास के झरोखों से : क्रीमिया पर हिटलर की फौज काहमला
इतिहास के झरोखों से : क्रीमिया पर हिटलर की फौज काहमला

 

इतिहास के झरोखों से


हरजिंदर

दूसरे विश्वयुद्ध की जो सबसे भीषण लड़ाइयां थीं उसमें एक थी क्रीमिया की जंग. हिटलर की सेना यह मान कर चल रही थी कि यूक्रेन मेंक्रीमिया उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है. क्रीमिया परकब्जे का अर्थ था पूरे काले सागर यानी ब्लैक सी पर नियंत्रण. क्रीमिया पर कब्जे का एक और अर्थ था यूक्रेन के किलेपर पूरी तरह कब्जा.

क्रीमिया पर हमले के लिए जर्मन सेना ने कब्जे को जो तैयारियां की थी वे सबसेज्यादा थी. जून 1942में किए गएइस हमले की जिम्मेदारी जर्मनी की थ्री-एक्स आर्मी की 132वीं बटालियनको दी गई थी. हमले के लिए 45लाख सैनिक तैनात किए गए थे.

इस बटालियन के पास उस समय चार हजार टैंक थे औरतकरीबन साढ़े चार हजार बम गिराने वाले विमान. इसकी तुलनामें सोवियत सेना बहुत कमजोर दिख रही थी. क्रीमिया कोबचाने के लिए तैनात उसके सैनिकों की संख्या एक लाख से थोड़ी ही ज्यादा थी. और इसफौज के पास सिर्फ 50ऐसे बमवर्षक विमान थे जो काम लायक थे.

इसके बावजूद सोवियत सेना ने जर्मनी के दांत खट्टे कर दिए. जर्मनी की फौज ने पूरी ताकत के साथ हमला बोल जरूरदिया लेकिन पहले ही दिन उसे वापस लौटना पड़ा. सोवियतविमानों ने जर्मनी के विमानों को इतना छकाया कि वे सही निशाने पर वार करने सेलगातार चूकते रहे.

अगर नक्शे पर देखें तोक्रीमिया यूक्रेन का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है लेकिन इसे फतह करने में हिटलर कीसेना को छह महीने से ज्यादा का समय लग गया.

सोवियत सेनाओं की समस्या उस समय खड़ी होनी शुरू हुई जब उनका गोला बारूद खत्महोने लगा. क्रीमिया के तटवर्ती नगरसेवेस्टोपोल का मैक्सिम गोर्की किला सोवियत सेनाओं का गढ़ था. जर्मन सेना ने इसके पास एक हजार किलोग्राम से भीज्यादा बम बरसाए.

इसके बावजूद वे किले को भेदनेमें नाकाम रहे लेकिन कुछ ही समय बाद जब अंदर असलहा खत्म होने लगा तो पास पलट गया.सोवियत सेना के लिए असली समस्या तब शुरू हुई जब जर्मनी सैनिक और उनके हथियारजलयानों में भर भर कर सेवेस्टोपोल पहुंचने लगे. इन सैनिकोंने वहां मौजूद सोवियत नौकाओं को खदेड़ दिया.

इसके साथ ही क्रीमिया की सुरक्षा मेंतैनात सोवियत व्यवस्था पूरी तरह बिखर गई. बचे हुए सोवियतसैनिक केप खेरसोंस में पहुंच गए. उन्हें उम्मीद थी कि वहां सेउन्हें निकाल लिया जाएगा, लेकिन जर्मनी के बमवर्षक विमान वहां भी पहुंच गए औरबहुत सारे सैनिक उनके हमलों का शिकार बने। इनमें से ज्यादातर तब तक निहत्थे हो चुकेथे.

स्टालिन ने सवेस्टोपोल की हार स्वीकार कर ली और अपनी सेना को वहां से निकलनेका आदेश दिया. अगले ही दिन कुर्स्क औरपेट्रोव में भी हार स्वीकार कर ली गई. इन सबइलाकों में सोवियत सेना का नेतृत्व मेजर जनरल पीटर नोविकोव कर रहे थे.

जो सोवियत सैनिक क्रीमिया में फंस गए थे उनके पास हथियार तो खैर नहीं ही थे, अब उनके पासभोजन और पानी भी नहीं था. जर्मनी ने इन 95हजार सोवियतसैनिकों को बंदी बना लिया. उनके अगले तीन साल इस कैद में तरह तरह कीयातनाओं को सहते हुए बीते. अगस्त 1944में इसी कैदमें मेजर जनरल नोविकोव की हत्या कर दी गई.

जर्मनी ने क्रीमिया की यह जंग जीत जरूर ली लेकिन उसे भी भारी नुकसान हुआ. इसके बाद जर्मनी ने कदम फूंक-फूंक कर रखने का फैसलाकिया. अगला हमला स्टालिनग्राद पर हुआजिसके लिए हिटलर की सेना ने दो महीने की तैयारी की. इस बीचसोवियत सेना को भी तैयारी का पूरा मौका मिल गया. फिर जो जंगहुई उसमें हिटलर की फौज के पांव उखड़ने शुरू हो गए. 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.

ALSO READ  दूसरे विश्वयुद्ध की सबसे भीषण लड़ाई