इतिहास के झरोखे से : विश्वयुद्ध से निकला यूक्रेन अकाल में फंसा

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 20-04-2022
इतिहास के झरोखे से : विश्वयुद्ध से निकला यूक्रेन अकाल में फंसा
इतिहास के झरोखे से : विश्वयुद्ध से निकला यूक्रेन अकाल में फंसा

 

इतिहास के झरोखे से

हरजिंदर

स्टालिनग्राद में हिटलर की फौज को मात देने के बाद सोवियत फौज ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.जर्मन सेना की हार शुरू हुई तो फिर वह लगातार हारती ही गई.नवंबर 1943 में सोवियत फौज ने कीव पर कब्जा कर लिया और फिर शुरू हुआ बाकी यूक्रेन से जर्मन सेना को खदेड़ने का अभियान.हारती हुई जर्मन सेना ने भागते वक्त एक ही काम किया- बड़े पैमाने पर यूक्रेन के लोगों को कत्लेआम.

लगातार आगे बढ़ती सोवियत सेना ने जब गैलीशिया पर कब्जा किया तो पूरा यूक्रेन हिटलर की फौज के कब्जे से मुक्त हो गया.इसे यूं भी कह सकते हैं कि यूक्रेन हिटलर से तो मुक्त हो गया लेकिन वह स्टालिन के कब्जे में चला गया.

यह जरूर था कि ऐसा समय आ गया जब यूक्रेन की धरती पर कोई बड़ा युद्ध नहीं लड़ा जा रहा था.विश्वयुद्ध तो खत्म हो गया लेकिन वह यूक्रेन के चेहरे पर जो घाव छोड़ गया वे काफी गहरे थे.युद्ध के बाद के यूक्रेन में तकरीबन 700 शहर पूरी तरह से नष्ट हो गए थे.तबाह होने वाले गांवों की संख्या तो 30 हजार से भी ज्यादा थी.

वे गांव, वे कस्बे और वे शहर इस हालत में भी नहीं रह गए थे कि जल्द ही अपने पांवों पर खड़े हों.यह भी कहा जाता है कि जर्मन सेना यूक्रेन के 20लाख से ज्यादा लोगों को गुलाम बनाकर मजदूरी के लिए अपने साथ जर्मनी ले गई थी.दुनिया की यह सबसे उपजाउ धरती एक ऐसे उजाड़ में बदल गई थी जहां सब कुछ नए सिरे से शुरू करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था.

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नतीजा यह हुआ कि यूक्रेन एक बार फिर अकाल की चपेट में आ गया.दूसरे विश्वयुद्ध ने लाखों लोगों की जान ले ली थी, अकाल ने भी यही किया.उस अकाल से कुल कितना और कैसा नुकसान हुआ यह हम ठीक से नहीं जानते क्योंकि एक ऐसा दौर शुरू हो गया था जब कम्युनिस्ट व्यवस्था की लोहे की दीवारों से ऐसे खबरें छन कर बाहर नहीं आतीं थीं.न ही सोवियत संघ ने ऐस कोई रिकाॅर्ड ही अपने पास रखे.बस कुछ अनुमान हैं जो ये बताते हैं कि तबाही बहुत बड़ी हुई थी.

विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद दुनिया में शांति कायम करने की कोशिशें शुरू हुईं तो यूक्रेन एक बार फिर सुर्खियों में आया.इन्हीं कोशिशों के तहत ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत सरकारों के प्रमुख क्रीमिया में मिले.इस मुलाकात को याल्टा कांफ्रेंस के नाम से जाना जाता है.यहीं से संयुक्त राष्ट्र संगठन बनाने की कोशिशें शुरू हुईं

संयुक्त राष्ट्र जब बना तो यूक्रेन को उसका स्थाई सदस्य बनाया गया.यह बात अलग है कि वह सोवियत संघ का हिस्सा था इसलिए लंबे समय तक उसका काम सिर्फ सोवियत रूस के रवैये का समर्थन करना ही था.लेकिन इससे एक फर्क तो पड़ा ही कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन के एक अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता मिल गई.

यूक्रेन के दुर्दिन अभी खत्म नहीं हुए थे.सोवियत नीतियों का खामियाजा वहां के लोगों को अगले कईं दशक तक भुगतना था.सोवियत संघ ने अपने योजना के हिसाब से बड़े पैमाने पर आबादी को विस्थापित किया.इसके कारण सबसे ज्यादा परेशानी यूक्रेन में रह रहे तातार और जर्मन लोगों को झेलनी पड़ी.वह भी उस माहौल में जहां लोगों के पास कुछ भी बोलने या करने के आजादी नहीं थी.

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.


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