इतिहास के झरोखों से
हरजिंदर
क्रीमिया की जंग के बाद काफी समय तक मोटे तौर पर शांति रही। कुछ मोर्चों पर छोटी-मोटी झड़पें जरूर चलती रहीं लेकिन कोई बड़ी जंग नहीं हुई. इसके दो कारण थे. एक तो क्रीमिया और उसके आस-पास के इलाके की जंग में जर्मन सेना को काफी बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था. हालांकि उसने इस लड़ाई को जीत लिया था लेकिन यह फैसला किया गया कि फिलहाल कदम फूंक फूंक कर रखे जाएं. जो दूसरा बड़ा कारण है वह ज्यादा महत्वपूर्ण था.
सर्दियां शुरू हो गईं थीं और बर्फ गिरने लगी थी. यह तय किया गया कि अगले हमले के लिए वसंत का इंतजार किया जाए. क्रीमिया का हमला भी गर्मी के मौसम में ही हुआ था. सोवियत फौजों के लिए यह बड़ा कठिन समय था.
उसके लाखों सैनिक मारे गए थे.तकरीबन उतने ही बंदी बना लिए गए थे. अब आगे की लड़ाइयां एक ऐसी फौज के साथ लड़नी थी जिसके बहुत सारे सैनिक नौसिखुये थे. लड़ाई जब थोड़ी ठंडी पड़ी तो सोवियत सेना को समय मिल गया कि वह नए भर्ती किए गए सैनिकों को प्रशिक्षित करे.
साथ ही उन टैंकों और हथियारों की मरम्मत करे जो जर्मन हमलों में जर्जर हो गए थे. सोवियत सेना को यह समझ में आ गया था कि उसका पाला एक ऐसी फौज से पड़ा है जो उस दौर की सबसे आधुनिक सेना थी.
वसंत का मौसम आते ही जब हिटलर की फौज ने अगले हमले के आस्तीने चढ़ानी शुरू कीं तो सोवियत सेना किसी भी जंग के लिए ज्यादा बेहतर स्थिति में थी. हालांकि जीत अभी भी उससे बहुत दूर थी.
युद्ध ने किया तबाह
सोवियत सेना ने यूक्रेन के खोए हुए इलाकों को पाने के लिए छिटपुट हमले किए लेकिन हर बार हार का मुंह ही देखना पड़ा. इससे जर्मन सेना के हौसले और बुलंद हो गए. उसने जब खारकोव की लड़ाई जीती तो एक तरह से पूरा यूक्रेन ही उसके कब्जे में आ गया. अब हिटलर की फौज के रूस में घुसने का समय आ गया था.
रूस में भी जर्मन सेना की शुरुआत जीत से ही हुई. डान नदी के आस-पास उसे भीषण लड़ाई लड़नी पड़ी लेकिन वह जीत गईं. शायद इसलिए भी कि उस लड़ाई को लड़ रहे ज्यादातर सैनिकों के पास जंग लड़ने का कोई तजुरबा नहीं था.
नाजी फौज का अगला निशाना था वोल्गा नदी के उस पार बसा शहर स्टालिनगार्द. अगर हम आज रूस के नक्शे पर देखें तो इस नाम का कोई शहर नहीं दिखाई देता. यूक्रेन रूस सीमा से थोड़ी दूर ही बसे इस शहर का पुराना नाम जार के सम्मान में जारित्सिन रखा गया था.
1925 में स्टालिन को सम्मानित करने के लिए इसका नाम बदल कर स्टालिनगार्द कर दिया गया. स्टालिन के बाद इस शहर का नाम बदल कर वोल्गोगार्द कर दिया गया. अब इसे इसी नाम से पुकारा जाता है.
नाजी फौज का यलगार
जर्मन सेना के लिए स्टालिनगार्द का मोर्चा सबसे महत्वपूर्ण था। क्योंकि उसके आगे रूस की आयल फील्ड थी. इरादा दरअसल इन्हीं तेल के कुंओं पर कब्जा करने का था. इस जंग को रोमानिया और इटली की फौज भी जर्मन सेना के साथ ही लड़ रही थी और इस मोर्चे पर उन्हें भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका दी गई.
इन तीनों सेनाओं ने मिलकर स्टालिनगार्द को तीन तरफ से घेर लिया. लगा कि रूस का सबसे बड़ा नुकसान होने जा रहा है. लड़ाई लंबी चली और महीनों तक सेनाएं इसमें उलझी रहीं. इसी बीच सर्दियां आ गईं और बर्फ पड़ने लगी. यही वह समय था जब आखिर में रूस ने यह बाजी जीत ली.
1943 की भीषण सर्दियों में 31 जनवरी को हिटलर की फौज को वहां आत्मसमर्पण करना पड़ा. यह नाजी सेना की पहली सबसे बड़ी हार थी. इसके बाद यूक्रेन के इतिहास में फिर नया मोड़ आने वाला था.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.