इटावा के मंदिर जहां मन्नत मांगने में है सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 07-12-2021
इटावा का सिद्ध पीठ काली मंदिर
इटावा का सिद्ध पीठ काली मंदिर

 

संदेश तिवारी/ इटावा

क्या मन्नत मांगने में भी सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल मिल सकती है! हैरतअंगेज है पर यह सच्ची मिसाल है. बात उत्तर प्रदेश के इटावा की है जहां आपकी मन्नत तभी पूरी होगी जब आप माता काली से मन्नत मांगने जाएं तो आपको सैयद पीर बाबा के दर्शन भी करने होंगे.

इटावा जिले के लखना कसबा स्थित काली माता का मंदिर प्रदेश के सिद्ध देवी पीठ में है. यहां आने बालों की मन्नतें देवी पूरी करती है. लेकिन ये मन्नतें तभी पूरी होती है जब देवी भक्त मंदिर के प्रांगण में एक ओर जहां मंदिर में काली माता तो वहीं उसी आंगन में स्थित सैयद पीर बाबा की दरगाह के दर्शन करते है.


यह एक अनूठी मिसाल है हिंदू मुस्लिम भाईचारा की, जो सांप्रदायिक एकता और सौहार्द्र से आज तक मजबूत है. सैयद पीर बाबा की मजार पर चादर, कौड़ियां एवं बताशा चढ़ाया जाता है.

बताया जाता है कि सैयद बाबा की दुआ किए बिना किसी भक्त की मन्नत पूरी नहीं होती है. लखना के पूर्व चैयरमैन अशोक सिंह राठौर बताते हैं, “लखना को प्राचीनकाल में स्वर्णनगरी के नाम से जाना जाता था. यहां कालिका देवी का मंदिर मुगल काल से हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है.”

बताया जाता है कि यहां पर देश की नामचीन हस्तियों ने काली माता के दर्शन बाद सैयद पीर बाबा की चादरपोशी की है. उनकी मन्नतें पूरी हुई है.

यह मंदिर नौ सिद्धपीठों में से एक है. इस मंदिर का एक पहलू यह है कि इसके परिसर में सैयद बाबा की दरगाह भी स्थापित है और मान्यता है कि दरगाह पर सिर झुकाए बिना किसी की मनौती पूरी नहीं होती. यह मंदिर धर्म, आस्था, एकता, सौहार्द, मानवता और प्रेम की पाठशाला है.

काली माता मंदिर का इतिहास

उत्तर प्रदेश के इटावा में कभी स्वर्णनगरी के रूप में विख्यात रहे लखना कस्बे के ऐतिहासिक कालिका देवी मंदिर में दलित पुजारी की तैनाती के कारण देश में दलित चेतना की अलख जगाता हुआ दिख रहा है. मंदिर के मुख्य प्रबंधक रवि शंकर शुक्ला कहते हैं, “मंदिर के प्रारंभकाल से दलितों को सम्मान देने के लिहाज से मंदिर का सेवक हमेशा से दलित को बनाये जाने की व्यवस्था की गई है.”

पुराने किस्सों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि राजा ने जब देखा कि दलितों को समाज में सम्मान नहीं दिया जाता तो ऐलान किया था कि इस मंदिर का सेवक दलित ही होगा. तब से आज तक उसी दलित परिवार के सदस्य मंदिर की सेवा में जुटे हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर के पुजारी अशोक दोहरे और अखिलेश दोहरे के पूर्वज महामाया भगवती देवी की पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं. शारदीय नवरात्रि में यहां बड़ा मेला लगता है. यह नगरी एक समय में कन्नौज के राजा जयचन्द्र के क्षेत्र में थी लेकिन बाद में स्वतंत्र रूप से लखना राज्य के रूप में जानी गई.

मान्य कथाओं के अनुसार दिलीप नगर के जमींदार लखना में आकर रहने लगे थे. लखना निवासी मनोज तिवारी बताते है कि मंदिर करोड़ों लोगों की धार्मिक आस्थाओं का केंद्र है.

इस मंदिर पर दर्जनों दस्यु सम्राटों ने ध्वज पताकाएं चढ़ाई हैं जिनमें मोहर सिंह, माधो सिंह, साधव सिंह, मान सिंह, फूलन देवी, फक्कड़ बाबा, निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, अरबिंद, रामवीर गुर्जर और मलखान सिंह ने निडर होकर पुलिस के रहते ध्वज चढ़ाकर मनौती मानी है. इनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू और भारत के सुप्रसिद्ध वकील तेज बहादुर सप्रू आदि ने मां के दरबार में आकर दर्शन किए हैं. वर्तमान में मां कालिका का मेला लगा है तथा भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन को आ रहे हैं और ज्वारे अचरी गाते और नाचते झंडा चढ़ा रहे हैं.   

 

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