नेताजी सुभाष चंद्र बोस आइलैंड: यहां छुपे हैं साम्राज्यवादी इतिहास के काले-घने राज
ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
अंडमान का एक द्वीप रॉस आइलैंड, जिसे अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस आइलैंड के नाम से जाना जाता है, अपने भीतर साम्राज्यवादी इतिहास के काले-घने राज छुपाए हुए है. सुबह के समय यह द्वीप पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है. यह द्वीप ब्रिटिश वास्तुशिल्प के खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है. रॉस द्वीप 200 एकड़ में फैला हुआ है. फीनिक्स उपसागर से नाव के माध्यम से चंद मिनटों में रॉस द्वीप पहुंचा जा सकता है.
रॉस द्वीप (Ross Island), जिसका आधिकारिक नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वीप (Netaji Subhas Chandra Bose Island) है, भारत के अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह का एक द्वीप है. यह प्रशासनिक रूप से दक्षिण अण्डमान ज़िले के अंतर्गत आता है और पोर्ट ब्लेयर से 3 किमी पूर्व में स्थित है. इस द्वीप पर स्थित खण्डहर एक पर्यटक आकर्षण है.
आज आप को ले चलते हैं एक सैर पर. ये द्वीप अंडमान निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है. हिंद महासागर में स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूह में कुल 572 द्वीप हैं. इनमें से केवल 38 में ही लोग रहते हैं. समंदर से नजदीकी की बात करें, तो अंडमान निकोबार के द्वीप भारत के बजाय दक्षिण पूर्व एशिया से ज्यादा करीब हैं. अंडमान के द्वीप अपने खूबसूरत समुद्र तटों, क़ुदरती दिलकशी, अनछुए जंगलों, दुर्लभ समुद्री जीवों और मूंगे की चट्टानों के लिए मशहूर हैं. इस खूबसूरती के पर्दे के पीछे छुपा है अंडमान का काला इतिहास. पहले यह बहुत भूतिया था लेकिन अब इसका विकास हो चुक है और यह एक पर्यटन स्थल बन चूका है.
1857 में भारत की आजादी के पहले संग्राम के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने बागियों को अंडमान के सुदूर द्वीपों पर लाकर कैद रखने की योजना बनाई. 1858 में 200 बागियों को लेकर एक जहाज अंडमान पहुंचा. उस वक्त सारे के सारे द्वीप घने जंगलों से आबाद थे. इंसान के लिए वहां रहना मुश्किल था. महज 0.3 वर्ग किलोमीटर के इलाके वाला रॉस आइलैंड इन कैदियों को रखने के लिए चुना गया पहला जजीरा था. इसकी वजह ये थी कि यहां पर पीने का पानी मौजूद था. लेकिन इस द्वीप के जंगलों को साफ करके इंसानों के रहने लायक बनाने की जिम्मेदारी उन्हीं कैदियों के कंधों पर आई. इस दौरान ब्रिटिश अधिकारी जहाज पर ही रह रहे थे.
धीरे-धीरे अंग्रेजों ने अंडमान में और राजनैतिक कैदियों को लाकर रखना शुरू कर दिया और जेलें और बैरकें बनाने की जरूरत पड़ी. इसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने रॉस आइलैंड को अंडमान का प्रशासनिक मुख्यालय बनाने की ठानी. बड़े अफसरों और उनके परिवारों के रहने के लिए रॉस आइलैंड को काफी विकसित किया गया.
अंडमान के द्वीपों पर बहुत सारी बीमारियां फैलती रही थीं. इससे अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिजनों को बचाने के लिए रॉस आइलैंड में बेहद खूबसूरत इमारतें बनाई गईं. शानदार लॉन विकसित किए गए. बढ़िया फर्नीचर से बंगले आबाद हुए। टेनिस कोर्ट भी बनाए गए. बाद में यहां एक चर्च और पानी साफ करने का प्लांट भी बनाया गया.
इसके अलावा रॉस आइलैंड पर सेना के बैरक और एक अस्पताल भी बनाया गया. बाद में डीजल जेनरेटर वाला एक पावरहाउस भी यहां बनाया गया ताकि यहां आबाद लोगों के लिए रौशनी का इंतजाम हो सके. इन सुविधाओं की वजह से रॉस आइलैंड चारों तरफ बिखरे तबाही के मंजर के बीच चमकता सितारा बन गया.
1942 तक रॉस आइलैंड सुनसान हो चला था, क्योंकि सियासी वजहों से अंग्रेजों को 1938 में सभी राजनैतिक बंदियों को अंडमान से रिहा करना पड़ा था. फिर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के हमले की आशंका के चलते अंग्रेज यहां से भाग खड़े हुए. हालांकि युद्ध के खात्मे तक मित्र सेनाओं ने अंडमान निकोबार पर फिर से कब्जा कर लिया था. जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो अंडमान निकोबार भी इसका हिस्सा बने. इसके बाद लंबे वक्त तक रॉस आइलैंड को उसके हाल पर ही छोड़ दिया गया. 1979 में एक बार फिर भारतीय नौसेना ने इस द्वीप पर कब्जा कर लिया.
रॉस आइलैंड के खंडहर इसके काले इतिहास की गवाह हैं. यहां के बाजार पहले वीरान थे लेकिन अब नहीं. बीसवीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश अधिकारियों ने अंडमान के द्वीपों पर ला कर हिरनों की कुछ प्रजातियों को बसाया था. इन्हें द्वीप पर लाने का मकसद था, शिकार के खेल के लिए जानवर मुहैया कराना. लेकिन, हिरनों को खाने वाले जानवर न होने से इनकी आबादी बेतहाशा बढ़ गई. इसकी वजह से अंडमान के द्वीपों में पेड़-पौधों को बहुत नुकसान हुआ, क्योंकि, हिरन नए, छोटे पौधों को खा जाते थे. आज ये हिरन, खरगोश और मोर ही रॉस आइलैंड के बाशिंदे हैं. यहां आने वाले सैलानियों के लिए ये जानवर दिलकश नजारे पेश करते हैं.
जूनियर अफसरों का दिल बहलाने के लिए बनाए गए सब-ऑर्डिनेट क्लब का लकड़ी का फर्श अभी भी काफी हद तक बचा हुआ है. एक दौर ऐसा रहा होगा, जब यहां गीत-संगीत की धुनों पर लोग थिरकते रहे होंगे. लेकिन आज सिर्फ परिंदों की चहचहाहट ही यहां के खंडहरों के बीच गूंजने वाली इकलौती आवाज है.
अंडमान में काले पानी की सजा वाली जेल को बंद हुए आठ दशक से ज्यादा वक्त बीत चुका है. इसके साथ ही भारत के इतिहास के एक काले अध्याय पर भी पर्दा गिरा था. आज रॉस आइलैंड के खंडहर उस गुजर चुके काले इतिहास के दाग के तौर पर हिंद महासागर में मौजूद हैं.