बरकतुल्लाह खान उर्फ प्यारे मियां, जो बने राजस्थान के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
बरकतुल्लाह खान
बरकतुल्लाह खान

 

अभिषेक कुमार सिंह

अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ने की चर्चाओं के बीच सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि अब राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन बनेगा. लोग सचिन पायलट बनेंगे या सीपी जोशी या फिर कोई और नेता, इस पर चर्चा कर रहे हैं. लेकिन एक भी मुस्लिम लीडर का नाम आगे नहीं है.

आज जबकि मुस्लिम लीडरशिप शीर्ष पर बेहद कम दिखता है, ऐसे में राजस्थान में एक ऐसे नेता हुए जो मुख्यमंत्री भी बने. ऐसे ही एक नेता थे बरकतुल्लाह खान, जो राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे.

बरकतुल्लाह खान, फ़िरोज़ गाँधी के दोस्त थे और एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो इन्दिरा गाँधी को भाभी कह कर बुलाते थे.

बरकतुल्लाह खान (प्यारे मियां) जोधपुर के कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखते थे. हिंदू-मुस्लिम लव स्टोरी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही बेहतरीन संयोगों से लिपटी उनके सीएम बनने की कहानी है. उन्होंने अपने मुख्यमंत्री बनने की बात कभी सपने में भी नहीं सोची थी. उनको सीएम बनाए जाने की खबर लंदन में प्राप्त हुई. इंदिरा गांधी के एक फोन कॉल ने बरकतुल्ला खान कि जिंदगी में मुख्यमंत्री की बरकत बख्शी.

 राजस्थान के 17 साल से लगातार मुख्यमंत्री रहे मोहन लाल सुखाड़िया की कुर्सी बरकतुल्लाह खान को मिल गई.

बरकतुल्लाह खान का जन्म 25 अक्टूबर, 1920 को जोधपुर के कारोबारी परिवार में हुआ. लोग उन्हें प्यार से प्यारे मियां भी कहते थे. वह पढ़ाई के लिए लखनऊ गए, जहां उनकी मुलाकात फिरोज गांधी से हुई और फिर आगे चलकर उनकी मुलाकात दोस्ती में तब्दील हो गई. और उनकी यही दोस्ती आगे चलकर बरकतुल्लाह खान के राजनितिक सफर की मजबूत बुनियाद बनी.

बरकतुल्लाह खान जितने अपनी राजनैतिक छवि के लिए चर्चित थे, उनकी लव स्टोरी के चर्चे उससे कहीं कम न थे. उनकी पत्नी का नाम ऊषा चतुर्वेदी था. जो शादी के बाद बदलकर उषी खान हो गया था. वे कानपुर के एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थीं. लंदन में पढ़ाई करने के बाद वे दिल्ली में वकालत कर रही थीं. उषा जयपुर घूमने आईं थी और वहीं पर इन दोनों की मुलाकात हुई थी.

लखनऊ से वकालत की पढ़ाई समाप्ति के बाद बरकतुल्लाह खान छुट्टियों में जोधपुर आए. 1948 में जय नारायण व्यास एक लोकप्रिय सरकार बनाने की तैयारी कर रहे थे. व्यास एक रोज बरकतुल्लाह खान के घर पहुंचे और उनके पिता से बोले, ‘हम लोकप्रिय सरकार बना रहे हैं. एक मंत्री आपकी बिरादरी से भी चाहिए. आपके बैरिस्टर बेटे को मंत्री बनाना चाहते हैं.’ इस तरह बरकत मंत्री बन गए. 1949 में राजस्थान बना और लोकप्रिय सरकार खत्म हो गई. नेतागिरी में कदम रख चुके बरकत स्थानीय राजनीति में सक्रिय हुए और नगर परिषद अध्यक्ष बने.

नेतागिरी में कदम रख चुके बरकत स्थानीय राजनीति में सक्रिय हो रहे थे वही दूसरी तरफ उनके मित्र फ़िरोज़ का राजनैतिक कद युवा कांग्रेसी से काफी ऊंचे दरजे तक पहुंच चुका था. 1942 में उनकी शादी इंदिरा गांधी से हुई, और अब वह प्रधानमंत्री के दामाद बन चुके थे और फिर 1952 में रायबरेली से सांसद बने.

राजस्थान से जब राज्यसभा के लिए नाम तय हो रहे थे तब अपनी दोस्ती का हक़ निभाते हुए फिरोज ने बरकत का नाम आगे कर दिया. बरकतुल्लाह खान सांसद बनाए गए. मगर कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. राज्यसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है.मगर 1952 के पांच साल बाद ही राजस्थान में विधानसभा चुनाव थे.

बरकतुल्लाह खान को दिल्ली नहीं सूबे की राजनीति अधिक भाती थी और उधर राजस्थान में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई थी. तब उन्होंने राजस्थान वापसी का मन बनाया और वो लौटे, लड़े, जीते और विधायक बने फिर सुखाड़िया सरकार में मंत्री भी.

फिर आया 1967 का चुनाव. केंद्र में कांग्रेस लौटी, मगर कमजोर होकर. इंदिरा अब सिंडिकेट वाले बुजुर्गों के और भी अधिक दबाव में थीं. उन्हें मर्जी के खिलाफ मोरारजी देसाई को उप-प्रधानमंत्री बनाना पड़ा. राजस्थान में भी ऐसा ही हुआ. कमजोर कांग्रेस बहुमत से दूर थी.

184 सीटों में उसके खाते में सिर्फ 89 सीटें थीं, यानी बहुमत से चार कदम पीछे. फिर भी सुखाड़िया ने दावा पेश किया. राज्यपाल कांग्रेसी ही थे तो सरकार बनाने का न्योता भी मिल गया.

मगर विपक्ष और उनके पीछे खड़ी जनता भड़क गई. पुलिस ने जयपुर में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोली चला दी. इस झड़प में सात लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. राष्ट्रपति शासन लग गया.  मगर सुखाड़िया भी लगे रहे और बहुमत जुटा लिया.

सुखाड़िया मुख्यमंत्री बन गए.  मगर जैसे बने थे, उससे साफ था कि सुखाड़िया के सुख के दिन अब गिने-चुने थे. वैसे भी सुखाड़िया सिंडिकेट के आदमी थे और कांग्रेस में अब इंदिरा युग अपने चरम पर पहुंचने वाला था.

इसकी शुरुआत 1969 के राष्ट्रपति चुनाव से हुई. तब राजस्थान में सुखाड़िया और ज्यादातर विधायकों ने ऑर्गेनाइजेशन के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के पक्ष में वोट डाला. मगर चार विधायक ऐसे थे, जिन्होंने इंदिरा की अंतरात्मा की आवाज पर वोटिंग की बात सुनी और वीवी गिरि के हक में गए. इन चार में से दो बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. एक प्रदेश अध्यक्ष बनी और एक स्पीकर. इनके नाम थे बरकतुल्लाह खान, शिवचरण माथुर, लक्ष्मीकुमारी चूंड़ावत और पूरनचंद बिश्नोई.

फिर मौका आया 1971 के चुनाव का. नारा था गरीबी हटाओ का और चेहराइंदिरा का. इधर राजस्थान में आलाकमान के इशारे पर सत्ता में बदलाव की तैयारी शुरू हो गई.

विधायकों ने सुखाड़िया की भ्रष्ट सरकार हटाओ की मांग तेज कर दी. इसी समय पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आ रहे थे. भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव था. भारत सैन्य हमले से पहले राजनयिक मोर्चे दुरुस्त करने में लगा था और इसी सिलसिले में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल लंदन गया.  प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे प्यारे मियां.

खबरिया वेबसाइट ‘दि लल्लनटॉप’ के मुताबिक, “होटल में इंदिरा गांधी का फोन आता है और उधर से आवाज़ आती है- मैडम प्यारे मियां से बात करना चाहती हैं. प्यारे मियां यानी बरकतुल्लाह ने जब फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई- वापस आ जाओ, तुम्हे राजस्थान का सीएम बनाया गया है. आकर शपथ लो. ये सुनते ही प्यारे मियां जवाब देते हैं- जी भाभी.

प्यारे मियां उस टाइम राजस्थान की सुखाड़िया सरकार में मंत्री थे, वो फोन कॉल के आदेश को ज्यादा कुछ समझ नहीं पाए. फिर भी अगली फ्लाइट पकड़कर दिल्ली पहुंचे और कुछ दिन बाद… 9 जुलाई 1971 को प्यारे मियां राजस्थान के छठे मुख्यमंत्री बन गए.

मुख्यमंत्री के रूप में बरकतुल्लाह खान की छवि पहले कार्यकाल में ही सख्त प्रशासक की बन गई. दूसरे कार्यकाल में भी यह जारी रही. इसमें उन्होंने आरक्षण और स्ट्राइक से जुड़े सख्त फैसले लिए.

फिर आई 11 अक्टूबर 1973 की तारीख. जयपुर में बरकत को हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया. वो बस 53 साल के थे.