अरिफुल इस्लाम / गुवाहाटी
शंकर-अजान के असम में सद्भाव, भाईचारे और एकता के कई उदाहरण हैं. विभिन्न प्रतिकूलताओं के बीच, विभिन्न लोगों ने नव-वैष्णव संत सुधारक श्रीमंत शंकरदेव और सूफी संत अजान पीर की विचारधाराओं को अलग-अलग तरीकों से प्रचारित किया है और जिया है. उनमें से एक 22वीं असम पुलिस (आईआर) बटालियन के कमांडेंट मोस्लेह उद्दीन अहमद हैं.
मोस्लेह उद्दीन अहमद ने असम में हिंदू-मुस्लिम सद्भाव के एक और प्रतीक के तौर परएक नामघर (नव-वैष्णव समुदाय प्रार्थना कक्ष) की स्थापना और निर्माण किया है.
अहमद ने हाल ही में पूर्वी असम के धेमाजी जिले के लिकाबली में एक आकर्षक नामघर स्थापित किया है. अहमद के संरक्षण में बने नामघर ने असम और अरुणाचल प्रदेश के कई लोगों को आकर्षित किया है.
नामघर के निर्माण के अलावा विशाल ढांचे में गुरु आसन भी स्थापित किया गया है. नामघर 9जून 2019को स्थापित किया गया था. यह नामघर अब पूरे असम का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम है.
गौरतलब है कि अहमद ने इससे पहले पूर्वी असम के डिब्रूगढ़ जिले के तेंगाखाट में भी नामघर बनवाया था, जब वह 19वीं असम पुलिस बटालियन में थे. असम पुलिस शिविरों में आमतौर पर शिव मंदिर होते हैं, लेकिन नामघर के लिए कोई प्रावधान नहीं था. अहमद ने नामघर की स्थापना की पहल की.
लिकाबली में 22वीं असम पुलिस बटालियन में शामिल होने के बाद, अहमद से 19वें एपीबीएन की तरह एक समान नामघर स्थापित करने का अनुरोध किया गया था. उसके बाद अहमद ने सबके सहयोग से विशाल और आकर्षक नामघर स्थापित करने का काम शुरू किया. नामघर के निर्माण की लागत के लिए पुलिस कर्मियों ने स्वयंयोगदान दिया.
नामघर का भव्य द्वार
आवाज-द वॉयस से बात करते हुए अहमद ने कहा, ‘हालांकि लिकाबली में नामघर बटालियन के परिसर के अंदर स्थित है. हमने जानबूझकर पुलिस परिसर के बाहर मुख्य प्रवेश द्वार रखा है, ताकि आसपास के लोग स्वतंत्र रूप से नामघर जा सकें और नाम-प्रसंग कर सकें. नामघर में विभिन्न धर्मों के लोग आते हैं.
चूंकि हम पुलिस वाले हैं, जो एक धर्म पर नहीं टिकते. हमारा मुख्य धर्म मानवता की सेवा है और यह हमारी सेवा करने का एक तरीका है. हमारे कर्मी प्रत्येक सोमवार और गुरुवार को नामघर में पारंपरिक असमिया पोशाक में नाम-प्रसंग करते हैं.
उन्होंने कहा, “नामघर न केवल आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति कर रहा है, बल्कि कई पुलिस कर्मियों को धूम्रपान, गुटखा और अन्य नशीले पदार्थों को छोड़ने में भी मदद कर रहा है. वे खुद को श्रीमंत शंकरदेव के आदर्शों के अनुरूप ढाल रहे हैं.”
नामघर के निर्माण पर विस्तार से बताते हुए, अहमद ने कहा, “बेलुगुरई सत्र के सत्राधिकारी मुनिंद्र नारायण गोस्वामी ने नामघर का लैखुटा (नींव स्तंभ) बनवाया था और गुरु आसन भी स्थापित किया था. हमारी बटालियन के राजमिस्त्री ने गुरु आसन बनाया था. नामघर के निर्माण में हमारी बटालियन के राजमिस्त्री शामिल थे. नामघर के सभी रखरखाव कार्य हमारे पुलिस कर्मियों द्वारा देखे जाते हैं. हमारे बीच एक वरिष्ठ व्यक्ति को नामघर का नामघरिया (प्रधान पुजारी) नियुक्त किया गया है. हमने संरचना के निर्माण के लिए बाहर से कोई योगदान नहीं लिया है. हमने इसे पूरी तरह से विभाग के कर्मियों की मदद से किया है. यह क्षेत्र का सबसे बड़ा नामघर है और राज्य के विभिन्न हिस्सों से लोग इन दिनों नामघर आते हैं.”
धेमाजी के लिकाबली में 22वीं असम पुलिस बटालियन के पास स्थित नामघर ने इलाके को एक अलग माहौल प्रदान किया है. अहमद ने कहा कि असम के विभिन्न हिस्सों से पर्यटकों को आकर्षित करने के अलावा, नामघर में विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करने की क्षमता है.