अफगानिस्ताननामा : तैमूर शाह को मिली विरासत के दबाव और तनाव

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 14-12-2021
अफगानिस्ताननामा :  तैमूर शाह को मिली विरासत के दबाव और तनाव
अफगानिस्ताननामा : तैमूर शाह को मिली विरासत के दबाव और तनाव

 

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भारत पर नौवें हमले के बाद अहमद शाह अब्दाली ने एक बार जब सिधु नदी पार की तो फिर इस तरफ कभी मुड़ कर नहीं देखा.और जब वह भारत आया तब भी उसने कभी दिल्ली से आगे जाने की कोशिश नहीं की.यह वही दौर था जब बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी काफी मजबूत हो चुकी थी.

प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब को मात देने के बाद अब उस पूरे इलाके में कंपनी का ही राज था.अगर वह दिल्ली से आगे बढ़ता तो कंपनी से उसके टकराव का खतरा था.लेकिन अहमद शाह ने आगे न जाने का फैसला किया.

यह भी कहा जाता है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई को देखने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस झगड़े से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझी.पानीपत की इस लड़ाई पर कंपनी ने एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार करवाई थी.

भारत में हार से अहमद शाह को दो नुकसान हुए.एक तो यह कि अफगानिस्तान में ही उसके खिलाफ दूसरों कबीले बगावत करने लगे.दूसरे अमृतसर की लड़ाई में एक चोट उसकी नाक पर लगी थी जो बाकी पूरी जिंदगी उसे परेशान करती रही और और अंत में शायद उसकी मौत का कारण भी बनी.

भारत में मिली हार का मतलब यह भी नहीं था कि बाकी समय उसने अपनी राजधानी कंधार में गुजारा.अब्दाली मूल रूप से एक लड़ाका था और अपने 25साल के शासनकाल में ज्यादातर समय वह कंधार से हजारों मील दूर लड़ाइयों में ही व्यस्त रहा.कईं बार तो उसे कंधार सिर्फ इसलिए लौटना पड़ा क्योंकि वहां बगावत की आशंकाओं की खबरें उस तक पहंुचने लगीं थीं.

अपने पूरे शासनकाल में अहमद शाह ने बहुत सारी छोटी-मोटी लड़ाइयों के अलावा 15बड़ी जंग लड़ीं.उसने भारत पर नौ हमले किए, ईरान पर तीन और तुर्किस्तान पर तीन.हालांकि उसका राज न तो चंगेज खान की तरह था, न तैमूर की तरह और न ही नादिर शाह की तरह लेकिन उस समय वह एशिया का सबसे ताकतवर शासक जरूर बन गया था.

अहमद शाह कभी बहुत अच्छा प्रशासन नहीं रहा.आमतौर पर उसने शासन के लिए वही तौर तरीके अपनाए जो उसके पूर्ववर्ती नादिर शाह के थे.कुछ चीजें उसने मुगल शासकों से सीखीं.मुगल शासन की तरह ही वह रियासत देते समय उसकी बोली लगवाता था.उसके खजाने में ज्यादा टैक्स लगाने की जो भी बोली लगाता उसे ही वह रियासत सौंपता.

हालांकि बाद में शायद यह परंपरा भी छोड़ दी गई, दूसरे कईं कबीलाई नेताओं का आरोप था कि ज्यादातर रियासतें अहमद शाह के अब्दाली मलिक कबीले के लोगों को ही सौंपी जा रही हैं.  बाकी कबीलों में उसके प्रति नाराजगी का एक कारण और भी था कि उसने अपने कबीले के लोगों को टैक्स देने से मुक्त कर दिया था.

नादिर शाह की तरह ही उसके खजाने में जितना भी धन आया उसने वह सब युद्ध लड़ने में ही स्वाहा कर दिया गया.इतिहास में अहमद शाह अब्दाली को आम लोगों के लिए कोई बड़ा काम करने के लिए नहीं जाना जाता.

लेकिन उसे अफगानिस्तान का निर्माता जरूर माना जाता है.उसने पहली बार पूरे अफगानिस्तान को एक इकाई के तौर पर संगठित किया और उसे बाहरी हमलों से बचाया भी.उसने अफगानिस्तान को यह आत्मविश्वास दिया कि यह मुल्क सिर्फ बाहरी ताकतों के लिए खेल का मैदान नहीं है बल्कि खुद अफगानिस्तान के लोग भी इस इलाके पर शासन करते हुए आस-पास के देशों की नाक में दम कर सकते हैं.

साल 1772की शुरुआत में अहमद शाह अब्दाली ने अपने बेटे तैमूर शाह को हेरात से बुलाया और उसे युवराज घोषित कर दिया.इसके बाद अक्तूबर में अहमद शाह का निधन हो गया.सत्ता अब तैमूर शाह के हवाले थी.अब्दाली वंश के इस दूसरे शासक को एक तरफ तो खाली खजाना मिला और दूसरी तरफ कईं तरह के रक्तरंजित दबाव और तनाव उसे विरासत में मिले.

नोट: यह लेखक केअपने विचार हैं ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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