डॉ. आरिफ़ ख़ान: दूध से जुड़ी बीमारियों के विरुद्ध एक वैज्ञानिक की जंग

Story by  फरहान इसराइली | Published by  [email protected] | Date 19-09-2025
Dr. Arif Khan: A scientist's fight against milk-related diseases
Dr. Arif Khan: A scientist's fight against milk-related diseases

 

dराजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले के छोटे से गाँव "मसानी" में जन्मे डॉ. आरिफ़ ख़ान की कहानी साधारण पृष्ठभूमि से असाधारण सफलता की मिसाल है.खेतों की मिट्टी से सने इस गाँव में, जहाँ दिन खेतों में श्रम और रातें तारों की छाँव में बीतती थीं, वहीं से आरिफ़ ने एक ऐसी उड़ान भरी जिसने उन्हें विज्ञान की दुनिया में एक नई पहचान दिलाई.आज वे सिर्फ एक जीवविज्ञानी नहीं हैं, बल्कि एक समाज-सुधारक, नवाचारकर्ता और युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं.राजस्थान के हमारे संवाददाता फरहान इसरायली ने जयपुर से द जेंच मेकर्स के लिए डॉ आरिफ़ ख़ान पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है.

डॉ. आरिफ़ का जीवन इस बात का उदाहरण है कि कठिनाइयों के बावजूद यदि लक्ष्य स्पष्ट हो और इरादे अडिग हों, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है.उनके पिता, एडवोकेट फ़रीद ख़ान, चाहते थे कि उनका बेटा डॉक्टर बनेऔर यह सपना उनकी माँ हाजिन आमना बीबी और दादा हाजी यूसुफ़ ख़ान का भी था.

लेकिन किस्मत ने एक अलग राह चुनी.आरिफ़ ने मात्र साढ़े पंद्रह वर्ष की उम्र में बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली, जिससे वे मेडिकल प्रवेश परीक्षा के लिए अयोग्य हो गए.यह एक झटका था, पर यही मोड़ उनके जीवन का निर्णायक मोड़ बन गया.उन्होंने हार नहीं मानी, और अपने दादा-दादी के प्रेरणादायक शब्दों को आत्मसात करते हुए शोध की दिशा में कदम बढ़ाया.

rअपनी प्रारंभिक शिक्षा हनुमानगढ़ के चौधरी मनीराम मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल से शुरू करते हुए, उन्होंने श्रीगंगानगर के डीएवी स्कूल में "उत्कृष्ट छात्र पुरस्कार" प्राप्त किया.इसके बाद, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर से जीव विज्ञान में स्नातक और स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय से जैव प्रौद्योगिकी में एम.एससी. किया.उनकी विद्वत्ता ने उन्हें NET और SET जैसी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय परीक्षाओं में भी सफलता दिलाई.

पीएचडी के दौरान, जयपुर स्थित पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान में, डॉ. आरिफ़ ने दूध जनित रोगाणुओं पर विशेष शोध किया.राजस्थान जैसे राज्य में, जहाँ असंवेदनशील दूध का प्रयोग आम है, वहाँ उन्होंने यह उजागर किया कि बीमार पशुओं से उत्पन्न हानिकारक जीवाणु कैसे दूध के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं.

उन्होंने न केवल इन रोगाणुओं के आनुवंशिक लक्षणों को पहचाना, जो उन्हें अधिक विषैला बनाते हैं, बल्कि यह भी दर्शाया कि पशुओं में एंटीबायोटिक का अत्यधिक उपयोग कैसे बैक्टीरिया को दवाओं के प्रति प्रतिरोधक बना देता है.ये निष्कर्ष ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुए.

इस शोध में उन्हें कई व्यावहारिक समस्याओं का सामना करना पड़ा.दूध के नमूनों को प्रयोगशालाओं तक पहुँचने में इतना समय लग जाता था कि वे खराब हो जाते थे और परीक्षण असफल हो जाता था.इस चुनौती का समाधान डॉ. आरिफ़ ने एक अभिनव आविष्कार के रूप में किया—पोर्टेबल फ़ूड माइक्रोबायोलॉजी एनालाइज़र.

dयह एक ऐसा उपकरण है जो केवल दो घंटों के भीतर दूध की गुणवत्ता और उसमें मौजूद रोगाणुओं की पहचान कर सकता है.इस नवाचार को पेटेंट मिला और इसे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुधार के एक प्रभावशाली उपकरण के रूप में देखा गया.डॉ. आरिफ़ ने इस आविष्कार से होने वाली संभावित आय को भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया,यह निर्णय उनके उस सिद्धांत को दर्शाता है जिसमें मानवता को लाभ देना किसी भी व्यक्तिगत लाभ से ऊपर है.

वर्तमान में, वे शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कुराज (अजमेर) में एकीकृत जीव विज्ञान प्रयोगशाला का नेतृत्व कर रहे हैं.उनके अनुसंधान का क्षेत्र जैव प्रौद्योगिकी, सूक्ष्म जीव विज्ञान और जैव रसायन तक विस्तृत है.वे न केवल प्रयोगशालाओं में शोध कर रहे हैं, बल्कि युवाओं को मार्गदर्शन देकर उन्हें वैज्ञानिक सोच अपनाने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं.

इसी दिशा में एक और बड़ा कदम है उनका नया प्रोजेक्ट—एंटीबायोटिक संवेदनशीलता विश्लेषक.यह एक ऐसा उपकरण होगा जो 4-6 घंटे के भीतर यह बता सकता है कि किस एंटीबायोटिक से किसी विशिष्ट संक्रमण का इलाज प्रभावी रहेगा, जबकि वर्तमान प्रणाली में इसमें 48घंटे तक का समय लगता है.यदि यह प्रयास सफल होता है, तो इससे अनगिनत जीवन बचाए जा सकते हैं.

डॉ. आरिफ़ की व्यक्तिगत प्रेरणा की बात करें तो 2021में उनकी माँ के कैंसर से निधन ने उनके जीवन में एक गहरा प्रभाव डाला.इस अनुभव को उन्होंने एक पुस्तक के रूप में साकार किया—"Cancer: From Cell to Cure", जो कैंसर जीव विज्ञान पर आधारित है और फ्लिपकार्ट व अमेज़न जैसी वेबसाइटों पर उपलब्ध है.साथ ही, उन्होंने युवा शोधकर्ताओं के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शिका भी लिखी है, जो शोध की दुनिया में कदम रखने वाले विद्यार्थियों के लिए एक उपयोगी संसाधन है.

उनकी उपलब्धियों को कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया है, जिनमें 2018का एनआईटी जयपुर से "युवा वैज्ञानिक पुरस्कार" शामिल है.वे अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी के सदस्य भी हैं.इसके बावजूद, वे आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं.वे अपने मार्गदर्शकों—डॉ. गोविंद सिंह, प्रो. आनंद भालेराव, प्रो. इरशाद अली ख़ान और डॉ. एल.के. शर्मा—के प्रति आभार व्यक्त करते हैंऔर अपने भाई एडवोकेट इमदाद ख़ान के सहयोग को भी अपने जीवन की महत्वपूर्ण कड़ी मानते हैं.

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डॉ. आरिफ़ मानते हैं कि राजस्थान जैसे राज्यों में वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में सुविधाओं की कमी और सीमित भर्तियाँ एक बड़ी चुनौती हैं.फिर भी, वे यह मानते हैं कि स्थानीय समस्याएँ ही वैश्विक समाधानों को जन्म दे सकती हैं.वे युवाओं को केवल पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्र तक सीमित न रहकर जैव प्रौद्योगिकी, सूक्ष्म जीव विज्ञान और कृषि विज्ञान जैसे उभरते हुए क्षेत्रों की ओर भी ध्यान देने की सलाह देते हैं—जहाँ न केवल अवसर अधिक हैं, बल्कि नवाचार की भी असीम संभावनाएँ हैं.

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उनकी पूरी यात्रा इस बात की गवाही देती है कि सीमित संसाधनों और साधनों के बावजूद भी कोई व्यक्ति वैज्ञानिक उत्कृष्टता के शिखर तक पहुँच सकता है.उनका जीवन प्रेरणा है उन लाखों युवाओं के लिए जो छोटे गाँवों से बड़े सपने देखते हैं.डॉ. आरिफ़ ख़ान के शब्दों में, "हर कदम पर कोई न कोई मुझे प्रेरित करता था"और अब वे स्वयं लाखों लोगों की प्रेरणा बन चुके हैं.उनके नवाचार, समर्पण और शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें विज्ञान की दुनिया में एक चमकता हुआ सितारा बना दिया है.