लग्ज़री और परंपरा का मेल: प्राडा 84 हजार रुपये की 'मेड इन इंडिया' कोल्हापुरी सैंडल लॉन्च करेगा

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 12-12-2025
Kolhapuri controversy: Prada to launch 'Made in India' sandals worth Rs 84k
Kolhapuri controversy: Prada to launch 'Made in India' sandals worth Rs 84k

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली  

इटली की लक्ज़री ब्रांड प्रादा भारतीय कारीगरों के साथ सहयोग करके कोल्हापुरी चप्पल जैसे पारंपरिक फुटवियर को वैश्विक लक्ज़री मार्केट में पेश करेगा। यह कदम भारत के समृद्ध कारीगरी और संस्कृति को दुनिया भर में पहचान दिलाने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इटली की प्रमुख लक्ज़री ब्रांड प्रादा (Prada) ने भारतीय कारीगरों के साथ एक सहयोग कर पारंपरिक फुटवियर का एक सीमित संस्करण संग्रह लॉन्च करने का फैसला किया है। यह संग्रह, जो भारतीय हस्तशिल्प और इटली की तकनीक का मिश्रण होगा, प्रत्येक जोड़ी के लिए लगभग 83,000 रुपये (930 अमेरिकी डॉलर) में उपलब्ध होगा। प्रादा के वरिष्ठ कार्यकारी लोरेंजो बर्टेली (Lorenzo Bertelli) ने रॉयटर्स से बातचीत में यह जानकारी दी।

कोल्हापुरी चप्पल: भारत की सांस्कृतिक धरोहर

कोल्हापुरी चप्पल एक प्राचीन भारतीय कारीगरी का प्रतीक है, जो महाराष्ट्र और कर्नाटका के विशेष क्षेत्रों से उत्पन्न हुआ है। ये चप्पलें विशेष रूप से हाशिए पर मौजूद समुदायों द्वारा हाथ से बनाई जाती हैं और उनके निर्माण में एक जटिल प्रक्रिया शामिल होती है। इन चप्पलों का इतिहास 12वीं शताब्दी तक जाता है, जब इन्हें सम्राटों और रईसों के बीच एक लक्ज़री आइटम के रूप में माना जाता था।

कोल्हापुरी चप्पल की खासियत उसकी मजबूत बनावट, खाल की प्राकृतिक गुणवत्ता और उसे बनाने में इस्तेमाल होने वाली पारंपरिक तकनीकों में निहित है। इन चप्पलों का डिज़ाइन, उनकी शैली और गुणवत्ता उनके निर्माता समुदायों के सांस्कृतिक और कारीगरी कौशल को दर्शाता है। यह कारीगरी दशकों से इन समुदायों की आजीविका का प्रमुख हिस्सा रही है, लेकिन सस्ते नकल उत्पादों के कारण अब इस कारीगरी को संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस स्थिति में प्रादा का यह कदम इस पारंपरिक कला को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

प्रादा का भारतीय कारीगरों के साथ सहयोग: एक नई दिशा

प्रादा ने भारतीय कारीगरों के साथ अपने नए संग्रह को लेकर एक साझेदारी की है, जो न केवल इस पारंपरिक कला को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत के लक्ज़री बाजार में एक नया आयाम स्थापित करेगा।

संझौता और निवेश

प्रादा ने भारतीय कारीगरों के साथ सहयोग करने के लिए संत रोहिदास लेदर इंडस्ट्रीज़ और चर्मकार डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (LIDCOM) के साथ साझेदारी की है। इसके तहत, भारतीय कारीगरों को इटली में प्रादा के अकादमी में प्रशिक्षण लेने का अवसर मिलेगा। इस प्रोजेक्ट में प्रादा द्वारा "कई मिलियन यूरो" का निवेश किया जाएगा और कारीगरों को उचित पारिश्रमिक दिया जाएगा।

प्रादा के वरिष्ठ कार्यकारी लोरेंजो बर्टेली ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, “हम भारतीय कारीगरों को उनकी कारीगरी की सही पहचान दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी योजना इन कारीगरों के कौशल को इटली की तकनीक के साथ मिलाकर एक प्रीमियम और आकर्षक उत्पाद पेश करने की है।”

संसाधनों का संवर्धन और प्रशिक्षण

प्रादा का यह कदम भारतीय कारीगरों को न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा, बल्कि यह उनके कौशल में भी वृद्धि करेगा। कारीगरों को तकनीकी और डिज़ाइन संबंधित प्रशिक्षण प्राप्त होगा, जो उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का अवसर देगा। बर्टेली ने कहा, "हम चाहते हैं कि इस प्रोजेक्ट के माध्यम से कोल्हापुरी चप्पल जैसे पारंपरिक उत्पादों की पहचान दुनिया भर में बढ़े।"

भारत में लक्ज़री उत्पादों का बढ़ता हुआ बाजार

भारत में लक्ज़री उत्पादों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। 2024 में इस बाजार का मूल्य लगभग 7 बिलियन डॉलर था और यह 2030 तक लगभग 30 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। उच्च-मध्यम वर्ग की बढ़ती आय और देश की आर्थिक विकास दर ने इस क्षेत्र में वृद्धि को उत्प्रेरित किया है।

प्रादा, जो पहले से ही दिल्ली में अपनी ब्यूटी स्टोर खोल चुका है, अगले तीन से पांच वर्षों में भारत में अपने स्टोर खोलने का विचार कर रहा है। बर्टेली ने कहा, “भारत का लक्ज़री उत्पादों के लिए बहुत बड़ा बाजार है और हम इसे न केवल उत्पादों के स्तर पर, बल्कि हमारे सहयोग के माध्यम से भी विकसित करना चाहते हैं।"

प्रादा का बिजनेस स्ट्रैटेजी: भारतीय बाजार में दीर्घकालिक निवेश

भारत में प्रादा के कदम का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह भारतीय साझेदारों के साथ सीधे तौर पर व्यवसाय करने के बजाय, लंबे समय तक के लिए अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। बर्टेली ने कहा कि प्रादा भारत में सीधे तौर पर स्टोर खोलने का विचार कर रहा है, लेकिन इसके लिए कुछ समय और सावधानीपूर्वक योजना की आवश्यकता है।

उन्होंने बताया, "हमारे लिए भारत एक महत्वपूर्ण बाजार है, और हम यहाँ अपनी स्थिरता और ब्रांड की पहचान स्थापित करना चाहते हैं, जिसे हम आने वाले वर्षों में विस्तार करने के रूप में देख रहे हैं।"

सांस्कृतिक सम्मान और व्यापारिक दृष्टिकोण का संगम

प्रादा का यह कदम भारतीय कारीगरी के प्रति एक गहरी समझ और सम्मान को दर्शाता है। भारतीय पारंपरिक कला को वैश्विक लक्ज़री बाजार में पेश करके, प्रादा न केवल एक व्यावसायिक अवसर का निर्माण कर रहा है, बल्कि वह सांस्कृतिक धरोहर को भी सम्मान दे रहा है। यह सहयोग न केवल कोल्हापुरी चप्पल जैसी कारीगरी को पुनः जीवित करेगा, बल्कि इससे भारतीय कारीगरों को एक नई दिशा और बेहतर भविष्य की उम्मीद भी मिलेगी।

इस प्रकार, प्रादा का यह कदम एक महत्वपूर्ण व्यापारिक रणनीति के रूप में सामने आ रहा है, जो भारतीय कारीगरी को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के साथ-साथ भारतीय लक्ज़री बाजार में स्थिरता और विकास को भी सुनिश्चित करेगा।