जाकिर पाशाः दो हाथों से महरूम हरफनमौला

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 02-08-2021
पाशा का आदर्श जीवन
पाशा का आदर्श जीवन

 

शेख मुहम्मद यूनिस / हैदराराबाद

वह दोनों हाथों से वंचित है, लेकिन वह जरूरतमंद नहीं है और वह हरफनमौला भी है. वह बिना हाथों के सब कुछ कर सकता है. इस तरह वह जीवन जीने का महत्वपूर्ण उदाहरण है.

उसके हाथ तो चले गए हैं, लेकिन वह कंप्यूटर विशेषज्ञ है, वह कलाकार भी है, वह स्कूटी भी चलाता है. वह अपने पैरों से कुल्हाड़ी पकड़कर लकड़ी भी काटता है.

वह कुएं से पानी भी खींचता है. ऐसा कोई काम नहीं है, जो उसकी पहुंच से बाहर हो.

दोनों हाथ गंवाने वाले जाकिर पाशा सभी के लिए बेहतरीन उदाहरण हैं. लेकिन इस विकलांगता के कारण उनकी कोई जरूरत नहीं पड़ी. उन्होंने खुद को कीाी दयनीय नहीं बनाया.

इसलिए जाकिर पाशा संकल्प और सभी के लिए एक आंदोलन का सबसे अच्छा उदाहरण हैं.

उनका जीवन संघर्ष से भरा है और वे निरंतर संघर्ष का एक आदर्श उदाहरण हैं.

दोनों हाथ गंवाने के बावजूद जाकिर पाशा कभी किसी पर निर्भर नहीं रहे.

वे अपने दोनों पैरों की मदद से अपना काम करते हैं. विकलांगता ने उनकी शिक्षा और दैनिक दिनचर्या में कभी हस्तक्षेप नहीं किया. जाकिर पाशा जन्मजात रूप से दोनों हाथों से वंचित हैं.

हाथ नहीं हैं, लेकिन

वह पैरों से लिखते हैं, उनकी चिट्ठी भी बहुत अच्छी है. वह ड्राइंग में भी माहिर हैं.

जाकिर पाशा बहुत बुद्धिमान हैं. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बाल विद्या मंदिर हाई स्कूल, कघन नगर से प्राप्त की.

उन्होंने एसएससी में प्रथम श्रेणी में सफलता हासिल की. उन्होंने इंटरमीडिएट एमईसी ग्रुप में विवेका नंदा जूनियर कॉलेज से पूरा किया और 88प्रतिशत अंक प्राप्त किए. जाकिर पाशा ने अपनी शिक्षा के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए कड़ी मेहनत की.

उनके पिता ऑटो चालक हैं और परिवार बेहद डिप्रेशन में जी रहा है. जाकिर पाशा अपनी विकलांगता के लिए कभी नहीं रोए, बल्कि उन्होंने अपनी मेहनत से उच्च शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने वसुंधरा डिग्री कॉलेज, कघन नगर से डिस्टिंक्शन के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में आचार्य नागार्जुन विश्वविद्यालय से डिस्टिंक्शन के साथ एम.कॉम की डिग्री प्राप्त की.

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पाशा को भी है स्केचिंग का शौक


जाकिर पाशा के पिता शेख बाबा पेशे से ऑटो चालक हैं और उनके पास निजी कार नहीं है. उन्होंने अपने बेटे जाकिर पाशा को शिक्षा दिलाने में हर संभव मदद की. वह जाकिर पाशा को अपनी गाड़ी में स्कूलों और कॉलेजों में ले गया

पैरों से टाइपिंग

जाकिर ने न केवल पाशा की मदद की, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी किया. अपने पिता और माता की कड़ी मेहनत के कारण, जाकिर पाशा उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल रहे.

जाकिर पाशा लिखने के अलावा टाइपिंग भी करते हैं. उन्होंने सॉफ्ट टेक इंस्टीट्यूट पेपर नगर से पीजीडीसीए कोर्स भी पूरा किया है.

जाकिर पाशा की तीन बहनें हैं, एक बहन डिग्री में सफल है, जबकि दो बहनें इंटरमीडिएट में सफल हुई हैं. जाकिर पाशा ने साल 2019में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया. वे अब एक उपयुक्त नौकरी की तलाश में हैं.

जाकिर पाशा के पिता डायबिटिक हैं. यह परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. समस्याओं के बावजूद, जाकिर पाशा को उम्मीद है कि उन्हें जल्द से जल्द सबसे अच्छी नौकरी मिलेगी और वह अपने परिवार की समस्याओं को हल करने में सक्षम होंगे. पिता की बीमारी के चलते घर की जिम्मेदारी भी जाकिर पाशा पर थोपी गई है. उन पर बहनों की शादी की जिम्मेदारी भी है.

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लकड़ी काटने से लेकर कुएं से पानी निकालने तक किसी की जरूरत नहीं


जाकिर पाशा अपने पैरों से स्कूटी चलाते हैं. वह अपना काम करते हैं. उनके काम करने के तरीके से हर कोई हैरान है. वे अपने पैरों की मदद से अपना चेहरा धोते हैं, खाते हैं और अपने कपड़े बदलते हैं. जाकिर पाशा अपने काम के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं.

जाकिर पाशा ने आवाज-द वॉयस को बताया, “दुनिया में कुछ भी असंभव या मुश्किल नहीं है. शिक्षा के लिए संघर्ष अपरिहार्य है.”

उन्होंने कहा कि अपनी विकलांगता के बावजूद उन्होंने कभी हीन भावना महसूस नहीं की. उन्होंने न केवल अपनी विकलांगता को दूर किया, बल्कि 99प्रतिशत काम अपने पैरों पर किया. जाकिर पाशा ने कहा कि विकलांग लोगों को कभी भी हीन महसूस नहीं करना चाहिए, बल्कि मेहनत और लगन से समाज में एक प्रमुख स्थान और प्रगति हासिल करें.

उन्होंने कहा कि शिक्षा और कड़ी मेहनत कभी बेकार नहीं जाती.

परों को खोल जमाना उड़ान देखता है,
जमीन पर बैठकर, क्या आसमान देखता है.
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पाशा वोट के अधिकार का प्रयोग करना जानते हैं


जाकिर पाशा ने कहा कि यह माता-पिता की कड़ी मेहनत और खोज का परिणाम है कि वे आज इस पद पर हैं और वे अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं. जाकिर पाशा ने कहा कि उनकी तरह मेहनत करने वाले विकलांगों की मदद की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षित होने के बावजूद वे बेरोजगार हैं और नौकरी पाने के लिए पिछले दो साल से दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं. जाकिर पाशा ने कहा कि नौकरी मिलने से उनके परिवार की समस्याएं दूर हो जाएंगी और वह भी सुखी जीवन जी सकेंगे.

उन्होंने कहा कि अगर वे विकास हासिल करते हैं और एक खुशहाल जीवन जीते हैं तो अन्य विकलांग लोगों को भी कड़ी मेहनत करने और अपने जीवन की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. उन्होंने समाज में विकलांगों के साथ-साथ नौकरियों के लिए योग्य स्थान प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया. जाकिर पाशा ने कहा कि सब्र का फल हमेशा मीठा होता है.

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नहीं हों नाउम्मीद इकबाल अपनी किश्त-वीरां से,
जरा नम हो तो यह मिट्टी बड़ी जरखेज है साकी.