शाइस्ता फातिमा/नई दिल्ली
डॉ इफ्फत फरीदी पीएचडी बताती हैं, “अमरोहा में जब मैं अपनी 10वीं कक्षा में थी, मुझे अपनी कॉलोनी के बच्चों को पढ़ाना याद है.” इफ्फत को कम ही पता था कि उनका यह शौक उनके पूर्णकालिक जुनून में बदल जाएगा और बेंगलुरु में कई लोगों की जिंदगी बदल देगा.
डॉ. इफ्फत कुछ समय के लिए दिल्ली में रहीं, जहां उन्होंने एनजीओ के असंख्य लोगों के साथ काम किया, “लोगों की मदद करना और किसी के जीवन में थोड़ा बदलाव लाना मेरे लिए बहुत मायने रखता है. बाद में वह अपने पति के साथ बेंगलुरु चली गईं.”
अपनी व्यायामशाला से घर लौटते समय एक दिन ऐसा हुआ कि उन्होंने देखा कि बच्चों के चेहरे पर उदासी है.
झुग्गी-झोपड़ी के बच्चे जो अब स्कूल जाने के साथ-साथ डॉ. इफ्फत से ट्यूशन लेते हैं
उन्होंने जल्द ही उन बच्चों से दोस्ती कर ली, जो अक्सर पार्क और सार्वजनिक स्थानों पर घूमते थे और उन्होंने उन्हें शिक्षा का उपहार देकर उनका अभिभावक देवदूत बनने का फैसला किया.
वह साल 2014 की बात है.
आवाज-द वॉयस से बात करते हुए, डॉ इफ्फत याद करती हैं, “मैंने उनसे पूछा कि वे किस स्कूल में पढ़ रहे हैं और क्या वे पढ़ना चाहते हैं ..”
ये बच्चे अक्सर अपना समय छोटी-छोटी बातों की लड़ाई-झगड़ों और घूमने-फिरने में बिताते थे. वे मूल बातें सीखने से ज्यादा खुश थे. वह आगे कहती हैं, “मेरा काम मेरा जुनून है, मैंने समाज से बहुत कुछ हासिल किया है, एक शिक्षित और विशेषाधिकार प्राप्त परिवार में पैदा होना मेरा सौभाग्य था. मुझे लगता है कि यह मेरे लिए समाज को कुछ वापस देने का मौका है.”
उनका पहला बैच 22 बच्चों का था, “मैंने उन्हें स्कूल में भर्ती कराया और एक कन्नड़ शिक्षक भी नियुक्त किया. जैसे उनमें से कुछ 14 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुके थे और मैंने उनसे 10वीं कक्षा की परीक्षाएँ दिलवाईं.”
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के शिक्षा विभाग की पूर्व छात्र डॉ इफ्फत ने कहा कि आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मुझे लगभग 50 बच्चे दिखाई देते हैं, जो पढ़ना-लिखना जानते हैं और उनमें से कुछ उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
स्कूल के लिए तैयार बच्चों के खुश चेहरे
डॉ. इफ्फत को लगता है कि ये बच्चे आर्थिक रूप से सुरक्षित परिवारों के अन्य बच्चों की तरह ही बुद्धिमान हैं. यह सिर्फ इतना है कि उनके पास संसाधनों की कमी है.
उन्होंने गर्व की भावना के साथ कहा, “मेरी एक छात्रा, मोनिका एक आईएएस अधिकारी बनना चाहती है.”
जबकि सभी अपने भविष्य के प्रयासों के समर्थन में हैं. फिर भी वह चाहती हैं कि उनके छात्र पहले नौकरी सुरक्षित करें, “मैं चाहती हूं कि मेरे अंडरग्रेजुएट छात्र बीए के बाद बी.एड करें और नौकरी करें. इस तरह वे अपने परिवार की मदद कर पाएंगे.”
बीए की पढ़ाई कर रही डॉ. इफ्फत की सबसे बड़ी शागिर्द मोनिका अब अन्य बच्चों की पढ़ाई में मदद करती है
वह अन्य बच्चों को तकनीकी पाठ्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए सलाह देती हैं, ताकि वे एक सम्मानजनक नौकरी पा सकें और अपने संघर्ष को तार्किक निष्कर्ष पर ले जा सकें. वे बताती हैं, “मेरी लड़कियां बहुत सभ्य हैं, हालांकि लड़कों को संभालना थोड़ा मुश्किल है ..”
बच्चों के साथ अपने भावनात्मक संबंध के बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं, “मैं चाहती हूं कि मेरे सभी बच्चे अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ हासिल करें, लेकिन मैं भावनात्मक रूप से जुड़ी नहीं हूं. मेरा मानना है कि भावनाएं कभी-कभी कमजोर हो जाती हैं, क्योंकि वे आपको स्वार्थी बना देती हैं.”
बहुत भावुक इफ्फत कहती हैं, “इन बच्चों को जर्जर छतों के नीचे देखकर मेरा दिल रोता है, मैं इसे बदल नहीं सकती. इसलिए मैं उन्हें सशक्त बनाना चाहती हूं...ष्
अपनी पलटन के साथ डॉ. इफ्फत
डॉ. इफ्फत का उद्देश्य निस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करना है, “मुझे लगता है कि मेरे आसपास के वंचित वर्ग की देखभाल करना मेरा कर्तव्य है और शिक्षा सबसे अच्छा उपहार है, जिसके साथ मैं अपने समाज और अपने देश की सेवा कर सकता हूं. अब आठ साल हो गए हैं, हमने धीरे-धीरे अपनी पहल को वर्ष 2017 में एक एनजीओ के रूप में पंजीकृत कराया और इसका नाम कोषिश फाउंडेशन रखा है.”
वर्तमान में, वह प्लेनेट होम नामक एक गैर सरकारी संगठन से भी जुड़ी हुई है, जो विस्थापित बच्चों को आश्रय प्रदान करती है.
डॉ. इफ्फत अपने छात्रों के साथ
इफत का कहना है कि उसके दोस्त, परिवार और परिचित उसके एनजीओ के लिए प्रायोजक के रूप में काम कर रहे हैं.
महामारी के बारे में पूछे जाने पर और इसने उसके कारण को कैसे प्रभावित किया, वह कहती है, “इस बार बच्चों को स्कूल से सड़कों पर ले जाया गया ...”
वह कहती हैं कि महामारी एक कठिन समय था, क्योंकि अल्प संसाधन थे और सहायता के लिए कोई नहीं था. हालांकि उन्होंने प्रयास किए और अपने अंडरग्रेजुएट छात्रों के लिए मोबाइल फोन की व्यवस्था की. “बच्चों को निरंतर मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, लेकिन तब बचा रहना वास्तव में कठिन था ..”
डॉ इफ्फत का कहना है कि वह व्हाट्सएप के माध्यम से अपने छात्रों के संपर्क में रहीं और लॉकडाउन के दौरान उनके परिवारों के लिए राशन की व्यवस्था भी की.
डॉ इफ्फत ‘महिला सशक्तिकरण’ को फिर से परिभाषित कर रही हैं
अपनी समापन टिप्पणी में, डॉ इफ्फत कहती हैं, “जब मैं झुग्गी-झोपड़ी में बच्चों के रहने का तरीका देखती हूं, तो मुझे बहुत दुख होता है, जब भारी बारिश होती है, तो मुझे उनकी झोंपड़ियों में पानी रिसने की चिंता होती है, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकती. इसलिए मैं उनके जीवन को बदलने पर ध्यान केंद्रित करती हूं. शिक्षा के माध्यम से...”