एडिनबर्ग
एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं एंडोनिया जॉन डिक्सन, सेट्टा मेनवारिंग और थॉम टायरमैन द्वारा तैयार एक विश्लेषण में यह सवाल उठाया गया है कि कैसे दुनियाभर की सरकारें आज प्रवासियों को खतरनाक और अमानवीय तरीकों से निर्वासित कर रही हैं — और यह अब सामान्य प्रक्रिया बनती जा रही है।
अमेरिका में, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में निर्वासन और प्रवासी हिरासत की नीतियों को बेहद आक्रामक रूप दिया गया। हाल के वर्षों में अमेरिकी प्रशासन ने कई ऐसे "तीसरे देशों" से समझौते किए, जिनका निर्वासित प्रवासियों से कोई सीधा संबंध नहीं होता। इन देशों में भेजे जा रहे प्रवासियों की सुरक्षा और अधिकारों की कोई गारंटी नहीं होती।
ऑस्ट्रेलिया की लेबर सरकार ने नाउरू जैसे छोटे द्वीप देश के साथ गुप्त समझौते किए हैं। नाउरू को 2.5 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की आर्थिक सहायता दी जा रही है ताकि वह तीसरे देश के रूप में निर्वासित प्रवासियों को आश्रय दे सके — भले ही उनका उससे कोई नाता न हो।
ब्रिटेन में, प्रधानमंत्री केयर स्टार्मर की लेबर पार्टी ने चुनाव से पहले रवांडा निर्वासन योजना को "मृत और दफन" बताया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद 2024 में उनकी सरकार ने लगभग 35,000 लोगों को निर्वासित किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 25% अधिक है।
उधर, दक्षिणपंथी रिफॉर्म पार्टी ने प्रस्ताव रखा है कि यदि वे अगला आम चुनाव जीतते हैं तो प्रवासियों को सैन्य ठिकानों में रखकर सामूहिक रूप से निर्वासित किया जाएगा।
मई 2025 में, यूरोपीय आयोग ने एक प्रस्ताव रखा कि ईयू देश शरणार्थियों को उन देशों में भेज सकते हैं जिनसे उनका कोई पूर्व संबंध नहीं है। यह नीति भी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के मॉडल से मेल खाती है।
प्रवासियों का निर्वासन कोई नई बात नहीं है। इतिहास गवाह है कि उपनिवेशवादी शक्तियां, जैसे कि ब्रिटेन ने, लोगों को जबरन निर्वासित कर दंडात्मक उपनिवेश बनाए — ऑस्ट्रेलिया इसका प्रमुख उदाहरण है।
लेकिन आज जो देखने को मिल रहा है, वह अलग है — यह सिर्फ निर्वासन नहीं बल्कि प्रवासियों का अपराधीकरण और उनके खिलाफ दंडात्मक व्यवस्था का विस्तार है।
अब सरकारें शरण मांगने के मूलभूत मानव अधिकार को एक आपराधिक कृत्य के रूप में चित्रित कर रही हैं। प्रवासियों को "अवैध" करार देकर उन्हें हिरासत में रखना और निर्वासित करना अब बहस का नहीं बल्कि प्रशासन का हिस्सा बन गया है।अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतांत्रिक देशों में भी अधिनायकवादी नीतियों का यह रूप तेजी से सामान्य हो रहा है।
यह सवाल बेहद गंभीर है: क्या हमने अमानवीय निर्वासन को एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में स्वीकार कर लिया है? प्रवासियों की पीड़ा, असुरक्षा और मानवाधिकार हनन की इन घटनाओं को केवल राजनीतिक नीतियों के नाम पर जायज़ ठहराना, वैश्विक लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है।