नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुए बड़े प्रदर्शन और जेलब्रेक के बाद अब कुछ कैदी आत्मसमर्पण कर चुके हैं। 8 सितंबर को शुरू हुई युवा‑आन्दोलन की आग ने वहाँ ऐसा तूफान ला दिया कि लगभग 13,500 कैदी जेलों से बाहर निकल गए। यह सब तब हुआ जब प्रदर्शनकारियों ने संसद पर धावा बोला, सरकार को गिरा दिया, सड़कों पर आग लगाई और कैदियों ने सुरक्षित गेट खुलते ही बाहर निकलने की राह पकड़ ली।
उनमें से एक नाम है अविनाश राय का, जो तस्करी के आरोप में सज़ा काट रहा था और 22 महीने की सजा में से लगभग 20 महीने पूरा कर चुका था। प्रदर्शन के दौरान हिंसा बढ़ने पर उसने अपने परिवार वालों के होश उड़ा दिए जब अचानक उनका घर पे आना हुआ। लेकिन कुछ दिन की आज़ादी के बाद, भयावह माहौल, पुलिस‑तलाशी और यह अहसास कि भागना आसान नहीं है, उसे वापस लौटने को मजबूर कर गए। अविनाश ने दो छोटे बैग अपने कंधों पर टाँगे, एक अच्छा भोजन किया, पेट भरने के बाद नखू जेल के दरवाज़े पर आत्मसमर्पण कर दिया।
इतना ही नहीं, अविनाश के जैसे कई अन्य कैदी भी खुद ही जेलों के बाहर से वापस लौटे हैं। इनकी संख्या बड़ी है: लगभग 5,000 में से हिस्सेदारी इतनी है कि पुलिस ने बताया कि कुल 13,500 में से करीब तीस रथ भागने वाले अब फिर से पकड़ लिए गए हैं। इनमें वे लोग शामिल हैं जिन पर हल्के अपराध लगे थे या जो सजा पूरी करने की कगार पर थे।
नखू जेल की हालत अभी भी भयावह है। दीवारों पर काले धुएँ के निशान, प्रदर्शकों के नारे प्रवेश द्वार और चारों ओर उजागर अफरातफरी, सब कुछ दिखाता है कि कैसे व्यवस्था चरमरा गई थी। स्थानीय स्वयंसेवक बिस्तर, कंबल और बरतन लेकर जेल में मदद पहुंचा रहे हैं, क्योंकि जेल के अंदर हालात बेहद गड़बड़ हो गए थे।
इन आत्मसमर्पणों में भावनाएँ दोनों तरफ़ थीं। जेल लौटने वालों के परिवार रोए, झुकाव हुआ कि बेहतर होता अगर कुछ दिन और आज़ादी होती, मगर डर और अस्थिरता ने कई को वापस लाने पर मजबूर किया। कुछ ने कहा कि जब पुलिस तलाश रही हो, भागना ही बेअसर होता है, और Sजा समाप्त होने को हो, तो आत्मसमर्पण करना ज़्यादा समझदारी है।
प्रदेशों में सरकार की आलोचना भी हो रही है कि कैसे आर्थिक समस्याएँ, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के कारण जनता इतनी ज़्यादा असंतोष में थी कि राजधानी में व्यवस्था ध्वस्त हो गयी। नया अंतरिम सरकार, जो मार्च 2026 में आम चुनाव की ओर बढ़ रही है, से लोगों को उम्मीद है कि बदलाव होगा—कि न्याय मिले, जेलों की स्थिति सुधरे, और कानून व्यवस्था बहाल हो।
यह घटना सिर्फ़ एक जेलब्रेक नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि जब हिंसा और सामाजिक असंतोष की आग फैलती है, तो लोग खुद को और अपने परिवारों को बचाने के लिए मर्यादा से परे कदम उठाते हैं। साथ ही यह याद दिलाती है कि राजनीतिक नेतृत्व और संस्थाएँ कितनी ज़रूरी हैं जो संकट की घड़ी में लोगों के भरोसे बनें, न कि उनमें भय और अविश्वास पैदा करें।